"हे प्रभु ! तुमसे मेरी यही प्रार्थना है कि मुझे इतनी शक्ति दो कि मै दूसरों की सेवा में अपना जीवन सार्थक कर सकूँ और मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं प्रेम सहित तुम्हारी इच्छा के सन्मुख समर्पण कर सकूँ ।"
गुरु देव रविन्द्र नाथ टैगोर द्धारा लिखी ये पंक्तियाँ भजन संकीर्तन के इतिहास की संरचना करते हुये 'परम श्रद्धेय भइया जी' के नाम का सुनहरा अध्याय जाने में लगी थी इसे कोई नही जानता था ।
परम आदरणीय श्री अनिल हंसलस जी (भइया जी) का जन्म 22 अगस्त 1967 को नई दिल्ली के करोल बाग़ क्षेत्र में एक सम्भ्रांत परिवार में हुआ था । कहा जाता है कि पुत्र के पाँव पलने में दिखाई देने लगते है - इसी को चरितार्थ करता 'भइया जी' का विशाल व्यक्तित्व यही से शनै-शनै उड़ान भरने लगा ।
माता - पिता के संस्कारो एंव सदवृतियो ने 'भईया जी ' को बचपन से ही कुलीनता., सद्चरित्रता, सदभाव एंव ईश्वरीय लगन की ओर उन्मुख कर दिया । जहा एक और कर्म में विश्वास रखने वाले कमर्ठ पिता जी से उन्हें सच्चाई, ईमानदारी एव कर्मनिष्ठता के सद्गुण मिले वही दूसरी ओर माँ के आँचल की शीतल छाया में परमात्मा के प्रति दिव्या संस्कारो की प्राप्ति हुई। भक्ति- भावना धीरे - धीरे कब उनके चरित्र के साथ एकाकार होती गयी शायद वे स्वयं भी न जान पाये। संतजनों ने नवजात शिशु के ग्रह देखकर उसका मस्तक पढ़कर बचपन में ही कह दिया था कि यह बालक साधारण गृहस्थ नहीं अपितु ईश्वर की असीम अनुकंपा का हकदार होगा, परमात्मा द्धारा दिखाई गई राह पर चलकर जन-कल्याण का कार्य कर आपने परिवार का नाम रौशन करेगा |
आगे चलकर यही भविष्वाणी सत्य सिद्ध हुई । शिशु कल से ही 'भईया जी ' का मन भजन संकीर्तन एंव सद्पुरुषो की वाणी में रमता था । महज 10 वर्ष की छोटी अवस्था में ही उन्होंने अपनी मधुर वाणी का प्रथम परिचय भक्ति संगीत के माध्यम से दे दिया । दिल्ली के प्रतिष्ठित 'हंशराज कॉलेज' से मैथ ऑनर्स की डिग्री प्रथम डिवीज़न में प्राप्त करने के उपरांत 'भइया जी' ने अपनी औपचारिक शिक्षा तो पूरी कर ली किन्तु जनमानस तक भजनो के माध्यम से परमात्मा का सन्देश पहुचाने की ललक लगी रही । तत्पश्चात व्यापार सुरु करने पर भी आधुनिक काल के इस अर्जुन ने मछली की आँख की तरह आपने लक्ष्य को पाने का सतत प्रयास जारी रखा । कठिन तपस्या के रूप में ईश्वरीय साधना को न भुला, प्रतिपल स्वयं को भजन संकीर्तन की कसौटी पर कसते हुए प्रयास जारी रखा। समय बीतने के साथ- साथ भक्त की ओर उनका यह झुकाव दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करने लगा । परमात्मा स्वय माँ सरस्वती के वर्धन स्वरुप उनकी वाणी में बैठ गए और उन्हें जन-कल्याण हेतु संकीर्तन का अनूठा वरदान देने लगे । कोटि - कोटि जनता तक अपने मधुर कर्णप्रिय स्वर से मानस शांति का एकमात्र आधार बनते हुए 'भइया जी' दिन रात जन - कल्याण का कार्य संपन्न करने लगे। विपदाओं एव मोह - माया के जाल में लिप्त लोगो के लिय यह भजन गाना किसी तीर्थ यात्रा से कम सुखद नही है |