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कितना प्राचीन है हिन्दू मंदिरों का इतिहास ? (How old is the history of Hindu temples )

आज के दौर में श्री राम और कृष्ण के अनेकों मंदिर हैं जहाँ प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। ये दोनों ही भगवान विष्णु के मानव अवतार थे। दोनों ही अलग अलग युगों में अवतरित हुए थे, और उन युगों में ऋषि मुनियों के आश्रम हुआ करते थे जो श्रद्धा और ध्यान का केंद्र थे। पर कई बार कुछ प्रश्न मन में उठते हैं, जैसे- जब राम और कृष्ण दोनों ही भगवान् के अवतार हैं तो क्या वे भी किसी का पूजन करते थे? क्या वे भी मंदिरों में जाते थे? आखिर हिन्दू धर्म में ​ मंदिर निर्माण की शुरुआत कब हुई और क्यों? आदि। आज हम इस पोस्ट में ऐसे ही कुछ प्रश्नों का उत्तर ढूंढने का प्रयास करेंगे-

हिन्दू मंदिर की रचना :-

प्राचीनकाल में हिन्दू मंदिर खगोलीय स्थान को ध्यान में रखकर एक विशेष स्थान पर बनाए जाते थे​। हिन्दू मंदिर की रचना लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व की मानी जाती है। उस काल में वैदिक ऋषि जंगल के अपने आश्रमों में ध्यान, प्रार्थना और यज्ञ करते थे। आम जनता शिव और पार्वती के अलावा नगर, ग्राम और स्थान के देवी-देवताओं की प्रार्थना करते थे। देश में सबसे प्राचीन शक्तिपीठों और ज्योतिर्लिंगों को माना जाता है। प्राचीनकाल में यक्ष, नाग, शिव, दुर्गा, भैरव, इंद्र और विष्णु की पूजा और प्रार्थना का प्रचलन था।

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प्राचीन काल में मंदिर :-

रामायण काल में भी मंदिर होते थे इसके प्रमाण हैं। राम का काल आज से लगभग 7 हजार वर्ष पूर्व का माना जाता है। रामायण में वर्णित सीता द्वारा गौरी की पूजा करना इस बात का सबूत है कि उस काल में देवी-देवताओं की पूजा का महत्व था और उनके घर से अलग पूजा स्थल होते थे। इसी प्रकार महाभारत में दो घटनाओं में कृष्ण के साथ रुक्मणि और अर्जुन के साथ सुभद्रा के भागने के समय दोनों ही नायिकाओं द्वारा देवी की पूजा के लिए वन में स्थित गौरी माता (माता पार्वती) के मंदिर में उपस्थित होने की व्याख्या है। इसके अलावा युद्ध से पूर्व भी कृष्ण पांडवों के साथ गौरी माता के स्थल पर जाकर उनसे विजयी होने की प्रार्थना करते हैं। और श्री राम ने भी लंका विजय से पूर्व शिवलिंग बना कर शिव जी की पूजा अर्चना की थी।

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मंदिरों के प्राचीन होने का प्रमाण :-

सोमनाथ के मंदिर के होने का प्रमाण ऋग्वेद में भी मिलता है इससे यह सिद्ध होता है भारत में मंदिर परंपरा कितनी पुरानी रही है। इतिहासकार मानते हैं कि ऋग्वेद की रचना 7000 से 1500 ईसा पूर्व हुई​ थी अर्थात आज से 9 हजार वर्ष पूर्व। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है।

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मंदिर बनाने का वैज्ञानिक तर्क :-

पुराने समय में मंदिर ऐसी जगह पर स्थापित किये जाते थे जहाँ सकारात्मक उर्जा हर समय प्रवाहित होती थी। वह जाने से मन को शांति मिलती थी तथा परमात्मा से जुड़ाव महसूस होता था। मंदिर में या किसी भी पवित्र स्थान में नंगे पैर ही जाना होता है। मंदिर के अंदर नंगे पैर जाने से इलेक्ट्रोमैगनेटिक तरंगों का असर पैरों के जरिए शरीर पर होने लगता है जो आपकी सेहत को ठीक बनाए रखती है और आप उर्जावान होते हो। मंदिर में मूर्ति ऐसी जगह पर स्थापित होती है जो उर्जा का भंडार अपने पास रखती है। किसी भी मूर्ति के सामने आप जब खड़े होते हैं तब शरीर के अंदर अपने आप ही सकारात्मक उर्जा बहने लगती है।

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