रामायण में संजीवनी का उल्लेख :-
रामायण का एक मार्मिक प्रसंग है जहाँ श्री राम के भाई लक्षमण को शक्ति लगी थी और वे मूर्छित पड़े थे। प्रभु राम अपने भ्राता की ऐसी हालत देख कर लगातार रो रहे थे। ऐसे में हनुमान जी वैध सुषेण के कहने पर संजीवनी की खोज में निकल पड़े। संजीवनी को न पह्चानने के कारण वे पूरा पर्वत ही उखाड़ कर ले गए। संजीवनी के उपचार से लक्ष्मण जी की मूर्छा टूट गयी और वे स्वस्थ हो गए। वही संजीवनी पर्वत आज भी इस धरती पर मौजूद है, और माना जाता है की वह श्रीलंका में स्थित है। पहाड़ का यह अद्भुत टुकड़ा हनुमान जी ने श्रीलंका के क्षेत्र में डाला था।
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श्रीलंका में संजीवनी :-
श्रीलंका में एक जगह है जिसे 'श्रीपद' नाम से जाना जाता है, और यहां स्थित एक पर्वत जिसे 'एडम्स पीक' कहा जाता है, लोगों का मानना है की यही पहाड़ हनुमान जी का लाया हुआ पहाड़ है जो की द्रोणागिरी का ही एक टुकड़ा है। यह श्रीलंका के दक्षिणी भाग में स्थित है, इसे श्रीलंका में रहुमाशाला कांडा भी कहते हैं। इस पर्वत पर एक सुन्दर मंदिर भी बना हुआ है, जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। कहा जाता है की इस मंदिर में महादेव के पैरों के निशान हैं।
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यहां के पेड़-पौधे हैं खास :-
कहते हैं जहाँ जहाँ इस पर्वत के टुकड़े या मिट्टी गिरी, वहां वहां जलवायु और उत्पादकता बदल गयी। ऐसा ही एक जलवायु परिवर्तन रहुमाशाला कांडा में देखने को मिलता है, यहां पाए जाने वाले पेड़-पौधे श्रीलंका के बाकि के इलाकों में मिलने वाले पेड़ पौधों से बहुत भिन्न है। रीतिगाला नामक स्थान भी उन स्थानों में आता है जहाँ की जलवायु तथा वनस्पति अलग हैं, कहा जाता है यहां भी उस पर्वत का एक बड़ा टुकड़ा गिरा था।
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संजीवनी की खोज :-
संजीवनी की खोज का विषय हमेशा से विशेषज्ञों की रूचि का विषय रहा है। संजीवनी चार प्रकार की होती है- मृतसंजीवनी, विशल्यकरणी, सुवर्णकरणी और संधानि बूटियां। संजीवनी का इक्कीसवीं सदी में सिद्ध होना अभी शेष है। किन्तु माना जाता है मृतसंजीवनी की खोज हो चुकी है, इस संजीवनी की खासियत यह है की नमी न मिलने पर यह सूख कर पपड़ी हो जाती है किन्तु जैसे ही इसे नमी मिलती है यह फिर से खिल जाती है अर्थात यह सूखने से मरती नहीं है बल्कि जीवित ही रहती है।
अभी तक केवल इसी बूटी की जांच हो पाई है, वैज्ञानिकों के अनुसार यदि इस संजीवनी के जीन्स फसलों के साथ मिला दिए जाएँ तो शायद सूखे की समस्या का अंत हो जाये। अन्य संजीवनियों की खोज भी जारी है, निश्चित तोप से त्रेता युग से कलयुग में आने तक इन बूटियों में काफी बदलाव भी आये होंगे क्योकि आजकल की जलवायु में चीजें तेजी के साथ बदल रही हैं और इन्हें तो युगों बीत गए।
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