Article

क्या है स्कन्द षष्ठी का महत्त्व एवं पौराणिक कथा ?

स्कंद षष्ठी के दिन स्कंद देव यानि भगवान कार्तिकेय का पूजन किया जाता है, भगवान शिव और पार्वती के पुत्र हैं कार्तिकेय और गणेश जी के बड़े भाई हैं, भगवान कार्तिकेय का वाहन है मयूर, इसीलिये कार्तिकेय को मुरूगन भी कहा जाता है, स्कंद भगवान को शक्ति का अधिदेव कहते हैं इनको देवताओं का सेनापतित्व भी प्रदान है।
 
कार्तिकेय के पूजन का महत्वः-

कार्तिकेय को दक्षिण भारत के लोग अपना रक्षक मानते हैं और उनका पूजन करते हैं, मनोकामना सिद्धि को पूर्ण करने के लिए भगवान कार्तिकेय का पूजन किया जाता है, मान्यता है कि इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से रोगों का, दरिद्रता का और दुखों का निवारण होता है, इस दिन व्रत और पूजा करने से काम, क्रोध, मद, मोह और अहंकार से मुक्ति मिलती है, एक अन्य मान्यता के अनुसार, मोह में पड़े नारद जी का भगवान विष्णु ने इस दिन उद्धार किया था तथा लोभ से मुक्ति दिलाई थी, इसीलिये बहुत से स्थानों पर कार्तिकेय के साथ भगवान विष्णु को भी पूजा जाता है।
 
 
 
 
दक्षिण में निवासः-

भगवान कार्तिकेय को दक्षिण में विशेष रूप से पूजा जाता है, माना जाता है कि वह अपने माता पिता से रूष्ठ होकर दक्षिण दिशा में आकर रहने लगे थे, भगवान कार्तिकेय ने दक्षिण भारत में स्थित मल्लिकार्जुन मंदिर में निवास किया था, इसी कारण स्कंद षष्ठी के दिन व्रती को दक्षिण दिशा में बैठकर ही पूजन करना चाहिए।

स्कंद षष्ठी त्यौहार की पौराणिक कथाः-

स्कंद पुराण विशाल है इसमें तारकासुर, सुरपद्मा, सिम्हामुखा ने देवताओं को हराया और स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया, पृथ्वी पर भी उन राक्षसों ने आतंक मचा रखा था, इनमें से एक राक्षस सुरपद्मा को वरदान प्राप्त था कि उसे केवल भगवान शिव का पुत्र ही मार सकता है, और उस समय देवी सती के अग्नि को प्राप्त होने से शिव जी क्रोध में थे और घोर तप में लीन थे इसलिये सभी राक्षसों को किसी का भी भय नहीं था, राक्षसों के आतंक से परेशान होकर सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुँचे और सहायता की मांग करने लगे, ब्रह्मा जी ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने के लिये भेजा, यह कार्य बहुत कठिन था क्योंकि भगवान शिव के क्रोध से बच पाना असंभव था, लेकिन विपदा भी बड़ी थी इसलिये कामदेव ने इस कार्य को किया जिसमें वह सफल रहे, परंतु शिव का तीसरा नेत्र खुलने के कारण उनकी क्रोधाग्नि ने कामदेव को भस्म कर दिया, भगवान शिव का अंश उस समय 6 भागों में बंट गया जो कि गंगा नदी में गिरा, देवी गंगा ने उन 6 अंशों को जंगल में रखा और उनसे 6 पुत्रों का जन्म हुआ जिन्हें कई वर्षों बाद देवी पार्वती ने एक कर भगवान मुरूगन को बनाया, पुराण के अनुसार भगवान मुरूगन स्वामी के कई रूप हैं जिनमें एक चेहरा दो हाथ, एक चेहरा चार हाथ, छः चेहरे और बारह हाथ हैं।
वहीं दूसरी ओर राक्षसों का आतंक बढ़ता जा रहा था, उनके इसी आतंक के कारण भगवान मुरूगन ने उनके संहार का निर्णय लिया, यह युद्ध बहुत दिनों तक चला और अंतिम दिन भगवान मुरूगन ने सुरपद्मा राक्षस का वध कर दिया, और इस प्रकार संसार का और देवताओं का उद्धार किया और राक्षसों के आतंक से सभी को मुक्ति दिलाई।
 
 

 

कब और कैसे मनाई जाती है स्कंद षष्ठीः-

प्रतिमाह जब शुक्ल पक्ष की पंचमी और षष्ठी एक साथ आती हैं तब स्कंद षष्ठी मनाई जाती है, ज्यादातर यह त्यौहार तमिल कैलेंडर के अनुसार ऐप्पसी माह (अक्टूबर-नवंबर) में मनाया जाता है, यह त्यौहार छः दिनों तक मनाया जाता है, इनमें बहुत से नियमों का पालन किया जाता है।

इन दिनों में मासाहारी भोजन का सेवन नहीं किया जाता, यहाँ तक कि प्याज और लहसुन का भी प्रयोग नहीं किया जाता।

जो श्रद्धालु इस उपवास को करते हैं वो मुरूगन का पाठ, कांता षष्ठी कवसम एंवम सुब्रमणियम भुजंगम का पाठ करते हैं।

कई श्रद्धालु सुबह सुबह स्कंदा मंदिर जाते हैं।

बहुत से लोग स्कंदा उपवास के दिनों में एक वक्त का उपवास भी करते हैं जिनमें वे या तो केवल दोपहर में भोजन करते हैं या केवल रात्रि में।
कई श्रद्धालु पूरे छः दिनों तक फलाहार करते हैं।