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शिव-पार्वती या कृष्ण-पूतना : क्या है होली की पौराणिक कथा ?

होली का त्यौहार हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है, इस त्यौहार को मनाने के पीछे कई प्रकार के तथ्य कहे गये हैं, बहुत सी कथाएँ इसमें जोड़ी जाती हैं जैसे कि प्रहलाद, कामदेव और पूतना की कथाएँ, आइये जानें क्या हैं होली की पौराणिक कथाएँ-​

शिव और पार्वती की कथाः-​

देवी पार्वती हिमालय की पुत्री थीं वह चाहती थी कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये, उनसे विवाह करने के लिये वह कई हज़ार वर्षों से कठोर तपस्या करती रहीं परन्तु भगवान शिव पर उनकी तपस्या का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और भगवान शिव अपने ध्यान में लीन रहे, तो कामदेव पार्वती की सहायता के लिये आये, कामदेव ने अपना प्रेम बाण चलाया और ध्यान में लीन भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी, शिवजी का क्रोध ज्वालामुखी की भांति आग उगलने लगा, शिव जी ने अपनी तीसरी आँख खोल दी और उनके क्रोध में जलकर कामदेव का शरीर राख हो गया, फिर भगवान शिव की नज़र पार्वती पर पड़ी, पार्वती की तपस्या सफल हो गई और शिव जी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया, होली की आग में जलकर वासनात्मक आकर्षण की हार हुई और प्रतीकात्मक रूप की जीत हुई इसीलिये सच्चे प्रेम की विजय में यह उत्सव मनाया जाता है।​

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कृष्ण और राधा के प्रेम का प्रतीकः-​

होली की एक और कथा प्रचलित है जिसमें कंस ने कृष्ण को मारने के लिये पूतना नामक राक्षसी को गोकुल धाम भेजा, पूतना एक मायावी राक्षसी थी उसने बहुत ही सुंदर स्त्री का रूप धारण कर लिया और गोकुल की महिलाओं के साथ बहुत आसानी से घुलमिल गई, उसने योजनानुसार गोकुल के कई नवजात शिशुओं को अपना दूध पिलाकर शिकार बना लिया था फिर वह कृष्ण को दुग्धपान कराया परन्तु कृष्ण ने उसी समय पूतना का वध कर दिया, पूतना के विषपान के कारण श्री कृष्ण का रंग नीला हो गया था, अपने रंग को देखकर श्री कृष्ण को लगा कि उन्हें न ही गोपियाँ और न ही राधा पसंद करेगी, वह उदास होकर बैठ गये उनको परेशान देखकर माता यशोदा ने कहा कि जाओ और अपनी राधा को किसी भी रंग में रंग दो, अपनी माता की बात मानकर कृष्ण ने राधा को अपनी पसंद के रंगों में रंग दिया, फिर क्या था राधा कृष्ण अपने प्रेम में डूब गये उसके बाद से रंगों के इस त्यौहार को उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा, मथुरा और वृंदावन की होली राधा कृष्ण के इसी अलौकिक प्रेम का प्रतीक है।​

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प्रहलाद और होलिका कथाः-​

होली की कथाओं में एक कथा यह भी प्रचलित है प्रहलाद और होलिका की कथा, प्रहलाद हिरण्यकश्यप का पुत्र था उसके पिता नास्तिक थे परन्तु प्रहलाद भगवान नारायण का परम भक्त था, उसके पिता चाहते थे कि वह नारायण की भक्ति करना छोड़ दे परन्तु प्रहलाद को ये मंज़ूर न था, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद के साथ आग में बैठने के लिये कहा क्योंकि होलिका को यह वरदान था कि वह अग्नि से नहीं जल सकती, परन्तु जब होलिका प्रहलाद को अग्नि में लेकर बैठी तब उसका यह वरदान समाप्त हो गया, होलिका तो अग्नि में जलकर भस्म हो गई और भगवान नारायण की कृपा से भक्त प्रहलाद का अग्नि बाल भी बांका न कर पाई।​

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