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हनुमान जी ने नहीं माता पार्वती ने किया था लंका दहन! (Not Hanuman, Mother Parvati did Lanka Combustion!)

रामायण महाकाव्य के बारे में हम सबको पता है। परन्तु फिर भी ऐसे बहुत से तथ्य हैं जिन्हे हम नहीं जान पाते। ऐसी ही एक रोचक कथा हम आपको बताने जा रहे है, क्या आप जानते है, जिस सोने की लंका को आप रावण की लंका मानते हैं, वो असल में किसकी थी और उसे किसने जलाया था? 

माता पार्वती के मन में महल की लालसा :-

एक बार श्री विष्णु लक्ष्मी जी सहित शिव पार्वती के दर्शनों के लिए कैलाश आये।  कैलाश पूर्णतया बर्फ से आच्छादित था, जिस कारण लक्ष्मी जी ठण्ड से ठिठुरने लगीं। उन्होंने माता पार्वती से कहा की वे एक राजकुमारी होते हुए भी किस प्रकार ऐसी कठिन परिस्थिति में रह लेतीं हैं, पार्वती जी केवल मुस्कुरा दीं। और बैकुंठ को लौटते हुए उन्होंने शिव पार्वती को बैकुंठ पधारने का न्योता दे दिया।

उनके निमंत्रण का मान रखते हुए एक दिन शिव तथा पार्वती बैकुंठ पहुंचे, वहां पहुंचते ही पार्वती जी वहां का वैभव देख कर आश्चर्यचकित रह गयीं। और लक्ष्मी जी के ऐश्वर्य को देख कर उनके मन में भी लालसा बढ़ गयी कि उनके पास भी एक वैभवशाली सुन्दर महल हो। कैलाश लौटने के बाद भी उनके मन से महल का विचार गया ही नहीं। उन्होंने विचार किया की महादेव सभी देवों के देव हैं, उनके पास तो सबसे अधिक वैभव होना चाहिए। वह एक बर्फीले पर्वत पर रहते हैं और कभी शमशान में रहते हैं इस से उनकी प्रतिष्ठा बिगड़ जायगी।

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वह महादेव से हठ करने लगीं कि हम सबको भी महलों में रहना चाहिए, यदि देवता स्वयं वैभव में नहीं रहेंगे तो भक्तों को किस प्रकार वैभव देंगे। उन्होंने कहा की उन्हें एक ऐसा महल बनाकर दें जो तीनों लोको में सबसे अधिक सुन्दर हो और जिसका वैभव स्वर्ग तथा बैकुंठ से भी अधिक हो।  ​

विश्वकर्मा ने किया स्वर्ण लंका का निर्माण :-

महादेव ने पार्वती जी को बहुत समझाया की वह औघड़ हैं उन्हें महलों में रहना नहीं भाएगा, और न उनके गण महलों में रह सकेंगे। उन्हें खुले आकाश के नीचे रहना अच्छा लगता है, जहाँ कोई सीमा न हो। और महलों के सुख तो मनुष्य ढूंढते हैं और उसी माया में बंध के रह जाते हैं। किन्तु माता पार्वती हठ पकड़ चुकीं थीं, और उनके आगे महादेव के सभी तर्क निष्फल हो जाते थे। अंत में हार कर उन्होंने विश्वकर्मा को बुलाया और उन्हें एक ऐसा महल बनाने को कहा जो त्रिलोक में सबसे सुन्दर हो और न ही जल में न ही थल में। विश्वकर्मा जी ने कल्पना से भी अधिक सुन्दर महल समुद्र के बीचों बीच खड़ा कर दिया। यह एक स्वर्ण महल था और उसके चारों ओर एक सुन्दर स्वर्ण नगरी भी स्थापित कर दी।​

इतना सुन्दर महल देखकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हो गयीं, उन्होंने गृह प्रवेश का मुहूर्त निकलवाने के लिए विश्रवा ऋषि को बुलाया। उन्होंने एक उचित समय बताया और सभी देवी देवताओं को गृह प्रवेश का निमंत्रण दिया गया। सभी अतिथि उस सुन्दर महल को देखकर आश्चर्य से भर गए और उसकी प्रशंसा करने लगे। गृहप्रवेश की रीती पूरी होने के पश्चात् आचार्य को दक्षिणा देने की बारी थी, देवी पार्वती अत्यंत प्रसन्न थीं इसलिए उन्होंने ऋषि से पूछा की उन्हें दक्षिणा में क्या चाहिए? महादेव की माया से ऋषि विश्रवा का मन स्वर्ण नगरी पर ललचा गया। और उन्होंने माता से दक्षिणा में वही नगर मांग लिया।​

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माता पार्वती का श्राप :-
और अपने वचन के अनुसार माता पार्वती को वह महल ऋषि को दान में देनी पड़ी। किन्तु उनकी इस धृष्टता से माता अत्यंत पार्वती अत्यंत क्रोधित हो गयीं, उन्होंने महर्षि विश्रवा से कहा तुमने महादेव की सरलता का लाभ उठाया है, और हमारा प्रिय महल हमसे छीना है। जिन महादेव से तुमने यह महल प्राप्त किया उन्ही के एक अंश से ये महल जलकर राख हो जायगा। इस समय मेरे मन में जो क्रोध की अग्नि धधक रही है वही तुम्हारे वंश के विनाश का कारण बनेगी। इस प्रकार ऋषि विश्रवा से वह महल कुबेर को मिला और उसके बाद रावण ने कुबेर से लंका हड़प ली।​

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लंका का दहन :-

कैलाश लौटने के बाद भी माता का क्रोध कम होने का नाम नहीं ले रहा था इसलिए शिव जी ने उन्हें शांत करने के लिए उन्हें बताया की त्रेतायुग में विष्णु धरती में श्री राम के रूप में जन्म लेंगे और मेरा एक अंश भी उनकी सेवा में रहेगा। और मेरा वही अंश आपके श्राप को फलीभूत करेगा। किन्तु माता पार्वती ने कहा प्रभु मेरी लालसा के कारण वह महल बनाया गया था, इसलिए मैं स्वयं उस महल को नष्ट करना चाहती हूँ। भगवान शंकर ने उन्हें कहा की वे हनुमान की पूंछ में बस जाना, इस प्रकार जब वह अपनी पूँछ से लंका का दहन करेगा और वह आपके द्वारा ही संपन्न होगा।

और समय आने पर जब हनुमान जी ने सोने की लंका को जलाया तब उनकी पूँछ में स्वयं पार्वती जी समाई थीं। लंका दहन के समय भी उनका क्रोध इतना अधिक था कि उनकी पूछ की आग बुझने का नाम ही नहीं ले रही थी। उन्हें शांत करने के लिए हनुमान जी को सागर में डुबकी लगानी पड़ी और इस प्रकार माता ने अपने छीने हुए राज्य को नष्ट कर दिया।

 

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