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कृष्ण प्रेम में शिव बने गोपी ! (Shiva Became a Gopi in the Love of Krishna!)

हमने महादेव शिव शंकर के विषय में बहुत सी कहानियां सुनी हैं- कभी उनके तांडव से उत्पन्न काल भैरव की, कभी उनके विष पीने की, कभी कामदेव को भस्म करने की आदि। शिव आदि योगी हैं, जो भी करते हैं उसके चरम तक जा कर करते हैं- फिर चाहे वो प्रेम हो या क्रोध। परन्तु क्या आपने कभी उनके गोपी बनने की कहानी सुनी है। आखिर ऐसा क्या हुआ होगा जिसके कारण भगवान शिव को नारी का अवतार लेना पड़ा आइये जानें भगवान शिव के गोपी रूप के बारे में –

कृष्ण की रासलीला देखने की अभिलाषा :-  

एक बार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर ध्यान में मग्न थे। ध्यान में उन्हें परम आनंद की प्राप्ति हो रही थी, तभी उनके कानों में अचानक बंसी की मधुर ध्वनि सुनाई दी। उन्होंने देखा की कृष्ण वृन्दावन में मनमोहक बांसुरी बजा रहे हैं और गोपियों के साथ रासलीला कर रहे हैं। भगवान शिव को आभास हुआ कि जो आनंद उन्हें ध्यान में मिल रहा था वही आनंद रास में लीन गोपियाँ बंसी की धुन पर नाच कर प्राप्त कर रहीं थीं।​

वह ये सब देख कर हैरान थे कि कैसे कृष्ण अपनी मुरली की मोहक धुन पर सभी को नचाकर परम आनद के सागर में गोते लगवा रहे थे, अब शिव से रहा नहीं जा रहा था, वे यह रास लीला देखना चाहते थे। इसलिए तुरंत ध्यान से उठे और वृन्दावन जाने के लिए निकल पड़े। उनकी रासलीला देखने की जिज्ञासा अपने चरम पर थी।

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वृन देवी की शर्त :-

लेकिन जैसे ही वह प्रवेश करने वाले थे रास्ते में ही नदी की देवी “वृन देवी” बीच में आ गयी। वृन देवी ने उन्हें रोकते हुए कहा की वे उस स्थान पर नहीं जा सकते। इस पर शिवजी को बहुत आश्चर्य हुआ, उन्होंने हँसते हुए पूछा ‘क्यों मैं वहां क्यों नहीं जा सकता? वृनदेवी ने बतलाया, ‘क्योकि वहां कृष्ण रासलीला कर रहे है, कृष्ण के अलावा वहां कोई अन्य पुरुष नहीं जा सकता। अगर आप वहां जाना चाहते हैं तो आपको नारी रूप लेना पड़ेगा।’ भगवान शिव के लिए ये एक विचित्र स्थति थी क्योकि जो भगवान शिव पौरुष का प्रतीक हैं, वह एक नारी का रूप कैसे ले सकते हैं। वह एक योगी हैं, अघोरी की तरह रहते हैं।​

भगवान शिव की दुविधा :-

अब ऐसे में शिव जी क्या करें उनके सामने बड़ी दुविधा खड़ी हो गयी थी कि वह महिला के रूप में कैसे आएं। वही दूसरी ओर धीरे धीरे रास अपने चरम पर पहुंच रहा था तथा भगवान शिव और अधिक प्रतीक्षा नहीं कर पा रहे थे।

किन्तु वृनदेवी उन्हें जाने नहीं दे रही थीं, उन्होंने कहा "आप वहां इस प्रकार नहीं जा सकते, कम से कम आपको गोपी के वस्त्र तो धारण करने ही होंगे , यदि आपने गोपी का भेष धारण कर लिया तो मैं आपको सम्मानपूर्वक जाने दूंगी।" शिव ने अपनी आँखें चारों तरफ घुमाई, उन्हें आस पास कोई नहीं दिखा। एकांत देख धीरे से बोले ठीक है आप हमें गोपी के वस्त्र दे दीजिये। वृनदेवी ने उन्हें चमकते धमकते लहंगा चोली और चुनरी दे दी। शिवजी ने उन्हें पहना और घूँघट डाल के नदी पार कर रास देखने चले गए।

रास में हुए लीन भोलेनाथ :-

रासलीला में पहुंचते ही शिव के नेत्र एकदम कृष्ण के मोहक रूप में जम गए और वो उस मधुर बांसुरी की धुन में खो गए। वहां का दृश्य इतना मनमोहक था कि महादेव ने अपनी सुध बुध खो दी, उस समय मानो उन्हें भी याद नहीं रहा की वे तीनों लोको के देवता हैं। वह खुद को भी एक गोपी की तरह मदमस्त होने से रोक न पाए। राधा रानी तथा गोपियों संग कृष्ण का नृत्य और गान देखकर वह स्वयं भी उसमे शामिल हो गए। कुछ ही देर में रास में ऐसे लीन हुए की सुध बुध लुटाकर तांडव करने लगे। ऐसा नाचे ऐसा नाचे की उनके सिर से चुनरी सरक गई। और कृष्ण उन्हें देखकर मुस्कुराने लगे।​

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श्रीराधा का वरदान :-

सभी गोपियाँ और राधा जी भोलेनाथ को देखकर डर गयीं। तब श्री कृष्ण ने सबको कहा की यह कोई गोपी नहीं स्वयं शिव शंकर हैं। और वे महादेव से बोले की प्रभु आज आपने यहां हमारे महारास में  आकर हमे धन्य कर दिया। राधाजी हँसते हुए बोलीं प्रभु आपने यह गोपी का रूप क्यों धारण किया है। तब शंकर जी बोले की इस महारास का आनंद लेने के लिए ही मैंने ये रूप लिया है। धन्य तो मैं हुआ यह अद्भुत रास देखकर, और मन चाहता है की सदा यहीं वास करूँ। तब कृष्ण जी ने उनसे कहा अवश्य प्रभु, आज आप गोपी रूप में आये हैं इसलिए आज से आपको गोपेश्वर नाम से भी जाना जायगा। उनके इसी गोपी रूप की पूजा वृन्दावन में स्थित गोपेश्वर अथवा गोपीनाथ मंदिर में की जाती है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज गोपियों के साथ वंशीवट पर चंद्रमा की धवल चांदनी में शरद पूर्णिमा के दिन महारास किया था।​

 

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