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शीतलाष्टमी : माता को चढ़ता है केवल बासी भोजन! (Sheetalashtami : Only Stale Food is Offered to Goddess Sheetala!)

शीतला अष्टमी या बसौड़ा हिन्दू धर्म का बहुत ही अहम और प्रमुख पर्व है इस दिन शीतला माता का व्रत रखा जाता है और पूजा की जाती है, जब होली समाप्त हो जाती है तो उसके कुछ दिन बाद ही शीतला अष्टमी मनाई जाती है, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली सप्तमी तिथि को ही शीतला सप्तमी और अष्टमी तिथि में आने वाली तिथि को शीतला अष्टमी के नाम से जाना जाता है, इसे बसौड़ा भी कहा जाता है, बसौड़ा का अर्थ होता है ’बासी भोजन’।

शीतला अष्टमी की तिथि व मुहूर्त:-

06ः27 से 18ः37 तक दिनांक 28 मार्च 2019 (वीरवार)
तिथि 08, चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी 
अवधि - 12 घण्टे 09 मिनट
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 20ः55 रात्रि 27 मार्च (बुधवार)
अष्टमी तिथि समाप्त - 22ः34 रात्रि 28 मार्च (वीरवार)

कैसे किया जाता है बसौड़ा ?

बसौड़े वाले दिन घर में ताज़ा भोजन नहीं पकाया जाता जो भोजन एक दिन पहले ही बनाकर रख दिया जाता है वही भोजन अष्टमी के दिन घर की महिलाओं के द्वारा शीतला माता के पूजन के बाद ही घर के अन्य सदस्यों को परोसा जाता है, मान्यता है कि बासी भोजन इस दिन के बाद से खाना बंद कर दिया जाता है, इस व्रत को विधि पूर्वक करने से देवी माँ प्रसन्न होती है और व्रती के कुल में सभी प्राणियों के शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं, दाहज्वर, पीतज्वर, चेचक, नेत्र विकार तथा अनेक त्वचा रोग भी दूर होते हैं।​

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पौराणिक उल्लेखः-

स्कंद पुराण में इनकी अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से व्यक्त किया गया है, भगवान शिव ने शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना लोक कल्याण हेतु की थी, शीतला माता गर्दभ पर विराजमान रहती हैं, शीतला माता के एक हाथ में झाडू, नीम के पत्ते और एक हाथ में कलश होता है जो कि स्वच्छता का प्रतीक है, हिन्दू धर्म केवल ’शीतलाष्टमी’ का व्रत ही ऐसा है जिसमें बासी भोजन किया जाता है, पुराणों में इसका विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है, शीतला माता का मंदिर हमेशा वट वृक्ष के पास ही होता है, शीतला माता के पूजन के बाद वट वृक्ष का भी पूजन किया जाता है, मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती हैं उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य से पूर्ण कर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं, उत्तरी भारत में इन्हें शीतला माता के नाम से जाना जाता है वहीं दक्षिण भारत में इन्हें देवी पोलेरम्मा व देवी मरियम्मन के नाम से पूजा जाता है।

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शीतलाष्टमी व्रत का महत्वः-

शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा अर्चना के लिये समर्पित होती है, इसलिये यह दिन शीतला अष्टमी के नाम से विख्यात है, इस युग में शीतला माता की पूजा स्वच्छता की प्रेरणा देने के कारण महत्वपूर्ण है, ऋतु परिवर्तन होने के कारण मौसम में कई प्रकार के बदलाव आते हैं और इन बदलावों से बचने के लिये साफ सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है, चेचक रोग जैसे अनेक संक्रमण रोगों का यही मुख्य समय होता है, ऐसे में शीतला माता की पूजा का विधान पूर्णतः महत्वपूर्ण और सामयिक है।

वर्जित है गर्म भोजनः-

शीतला माता की पूजा में किसी भी प्रकार की गर्म वस्तु का प्रयोग नहीं किया जाता है और न ही सेवन किया जाता है इस दिन घर में चूल्हा आदि नहीं जलाया जाता है, इसमें चाय आदि भी नहीं पी जाती और एक दिन पहले पकाया हुआ भोजन ही बिना गर्म किये खाने की परम्परा है इस दिन ठंडा भोजन खाने से ही व्रत पूर्ण माना जाता है।

शीतला माता के मंदिरः-

भारत वर्ष में कई जगह पर शीतला माता के मंदिर हैं जैसे- ’शीतला मंदिर’ गुड़गाँव हरियाणा, ’शीतला माता मंदिर’ सुंदरनगर जिला मंडी हिमाचल प्रदेश तथा ’शीतला माता मंदिर’ राजस्थान आदि अधिक प्रसिद्ध हैं।

नवरात्रि के शुभ अवसर पर गुड़गाँव वाले शीतला माता मंदिर में भक्तों की भीड़ काफी बढ़ जाती है, देश की हर जगह से श्रद्धालु यहाँ मन्नत माँगने आते हैं, माना जाता है कि यहाँ पर पूजा करने से शरीर पर निकलने वाले दाने, जिन्हें ’माता’ और ’चेचक’ कहते हैं नहीं निकलते हैं, नवजात शिशुओं का प्रथम मुंडन भी यहीं पर होता है।

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