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किस्मत वालों को ही मिलते हैं बांके बिहारी जी के दर्शन! ( Banke Bihari Ji Darshan)

कृष्ण जी की लीलाओं और बालपन की ढेरों स्मृतियाँ समेटे हुए वृन्दावन आज भी इसके मंदिरों, त्योहारों और इसके व्यंजनों के लिए प्रसिद्द है। आज हम बात करेंगे वृन्दावन में स्थित एक भव्य मंदिर बांके बिहारी जी की। इस मंदिर की खासियत है की यहां कृष्ण जी का विग्रह है, और यह विग्रह न केवल कृष्ण जी का वरन राधा जी का भी। अर्थात इस एक विग्रह के दर्शन से हमे कृष्ण और राधा जी दोनों के ही दर्शन का सौभाग्य मिल जाता है। इस विग्रह के प्रकट होने की कथा अत्यंत रोचक है, प्रत्येक वर्ष यहां मार्गशीर्ष मास की पंचमी को कृष्ण जी का प्रकटोत्सव मनाया जाता है।   ​

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प्राकट्य कथा

कृष्ण जी को समर्पित संगीत :-

संगीत सम्राट तानसेन को कौन नहीं जानता, और जो उनको जानता है वह उनके पूज्य गुरु स्वामी हरिदास जी को भी अवश्य ही जानता है। स्वामी हरिदास जी श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे, और केवल उन्ही के लिए भजन गाया करते थे। उन्होंने कभी भी किसी प्रशंसा के लिए अथवा किसी और को रिझाने के लिए नहीं गाया, उनके सुर केवल और केवल कृष्ण के लिए ही निकलते थे। कहा जाता है उनका संगीत इतना सुरीला होता था की स्वयं कृष्ण उनसे प्रसन्न होकर संगीत सुनने आ जाते थे। एक दिन उनके शिष्यों ने कहा की गुरूजी हम आपके शिष्य हैं और गुरु ही शिष्य को ईश्वर का मार्ग दिखाता है इसलिए कृपा कर हमे भी कृष्ण जी के दर्शन का सौभाग्य दीजिये। गुरु जी ने उनकी बात मान ली और एक दिन सबको बैठा कर अपना संगीत शुरू किया। वह भक्ति में पूर्णतया डूब कर गा रहे थे, कि तभी सबने देखा कि वहां पर एक प्रकाश पुंज उत्त्पन्न हो गया है।

विग्रह रूप में प्रकट हुए :-

थोड़ी देर में सबने देखा स्वयं राधा कृष्ण जी वहां प्रकट हुए हैं, और वे दोनों मुस्कुराते हुए हरिदास जी से उनके साथ ही रहने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं। किन्तु हरिदास जी ने कहा, प्रभु मैं तो आपका एक सेवक हूँ। आपको तो एक लंगोट में रख लूंगा किन्तु माता के लिए कहाँ से नित नविन वस्त्र और आभूषण लाऊंगा। दोनों ही मुस्कुराये और उन्होंने उनको आशीर्वाद दिया और कहा हम यहां एक विग्रह रूप में प्रकट होंगे, तुम उसकी सेवा करना। इसके बाद उनके अंतर्धान होते ही वहां उन दोनों का एक विग्रह प्रकट हुआ। यही विग्रह बांके बिहारी कहलाता है और इसी के दर्शन बांके बिहारी मंदिर में होते हैं।  ​

अनोखे अंदाज़ में होते हैं दर्शन

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केवल शरद पूर्णिमा पर करते हैं बंशी धारण :-

बांके बिहारी जी को केवल शरद पूर्णिमा के दिन बंशी धारण कराई जाती है। इसका कारण यह है कि श्री कृष्ण ने महारास के लिए शरद पूर्णिमा का दिन ही नियुक्त किया था, क्योकि इस दिन चंद्र अपनी सारी कलाओं से युक्त होता है। मान्यता है निधिवन में आज भी कृष्ण जी नित्य गोपियों के साथ रासलीला रचाते हैं।​

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केवल श्रावण तीज पर झूला :-

ठाकुर जी को केवल श्रावण तीज के दिन ही झूले पर बिठाया जाता है। वर्ष में केवल एक बार बिहारी जी के मंदिर में एक भव्य स्वर्ण तथा रजत का झूला लगता है, जिस पर बांके बिहारी को हरे वस्त्रों में पूर्ण सोलह श्रृंगार करके बैठाया जाता है। राधा कृष्ण के प्रेम का प्रतीक हरियाली तीज के दिन मंदिर तथा बिहारी जी की शोभा देखते ही बनती है। 

अक्षय तृतीया के दिन चरण दर्शन :-

कान्हा के चरण कमल का दर्शन करने से मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है, केवल सौभाग्यशाली व्यक्तियों को ही ये अवसर मिल पाता है। यह सुअवसर भी वर्ष में केवल एक बार सबसे शुभ दिन अर्थात अक्षय तृतीया के दिन ही मिलता है। इस दिन ठाकुर जी को पायल पहनाई जाती है(यह कार्य भी वर्ष में एक बार ही होता है), उनके चरणों में चन्दन का गोला बनाकर रखा  जाता है। इस दिन चरण के साथ सांयकाल में सर्वांग दर्शन भी होते हैं।​

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श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मंगला-आरती

वैसे तो मंगला आरती प्रत्येक मंदिर में हर दिन ही होती है, किन्तु बांके बिहारी मंदिर में केवल कृष्ण जन्माष्टमी के दिन ही मंगला आरती होती है। परंपरा के अनुसार होली को छोड़कर बांकेबिहारी मंदिर में हर पर्व, उत्सव सालभर में एक ही दिन मनाया जाता है। यही कारण है कि बांके बिहारी की साल में एक ही दिन मंगला आरती होती है। इसका कारण एक कथा द्वारा समझाया जाता है, आइये जानते हैं क्या है वो कथा –​

हरिदास जी मंदिर से थोड़ी दूरी पर ही अपनी कुटिया में रहा करते थे, एक दिन वह प्रातःकाल स्नान करके अपनी कुटिया में लौटे तो देखा उनके बिस्तर पर कोई सोया हुआ है। उनकी दृष्टि कमज़ोर हो चुकी थी, इसलिए वे ठीक से देख नहीं पाए। उनके आते ही वह सोया हुआ व्यक्ति वहां से उठकर भाग गया। हरिदास जी कुछ समझ नहीं पाए, इतने में मंदिर से एक पुजारी भागता हुआ वहां आया और बोला स्वामी जी बिहारी जी के हाथों की वंशी एवं चूड़ा उनके पास नहीं है जबकि मंदिर के कपाट बंद ही थे। स्वामी जी ने बोला अभी मेरे बिस्तर पर कोई सोया हुआ था, मेरे आने से भाग गया और जाते हुए उसका कुछ सामान यहां रह गया। पुजारी जी ने पास जाकर देखा तो वह बिहारी जी के चूड़ा और वंशी ही थे।

जिससे की प्रमाणित हुआ कि बिहारी जी नित्य वहां रास लीला के बाद विश्राम करने आते हैं। उनकी निद्रा में विघ्न न हो इसी कारण से यहां प्रातः मंगला आरती नहीं की जाती।

 

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