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केवल लक्ष्मण ही कर सकते थे मेघनाद का संहार! (Nobody could kill Meghnad other than Laxman)

रामायण रामायण आदिकवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसमें वर्णित प्रत्येक पात्र बहुत रोमांचक है, और उनसे जुड़ी कहानियां भी अत्यंत रोचक हैं। ऐसे ही एक कहानी है रामायण के प्रमुख पात्र श्री राम के अनुज लक्ष्मण की। हनुमान जी की भक्ति के विषय में हमने बहुत कथाएं सुनी हैं, उनकी भक्ति अपरम्पार है किन्तु लक्ष्मण की भक्ति भी उनसे काम नहीं थी। आइये जानते हैं इस लेख में लक्ष्मण लक्ष्मणजी की भ्रात भक्ति​ –

लंका युद्ध का संवाद :-

महर्षि अगस्त्य मुनि एक बार श्री राम के दर्शन के लिए अयोध्या आये। उनका भव्य स्वागत किया गया, राज्य में एक बैठक के दौरान लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया। सभी एक स्वर में भगवान श्री राम और हनुमान की प्रशंसा करने लगे। तभी ऋषि अगस्त्य बोले, यदि रावण बलि था तो उसका पुत्र महाबली था क्योकि उसने वो कार्य किया जो स्वयं रावण भी नहीं कर पाया। उसने देवलोक में इंद्र से युद्ध कर के उसे पराजित कर दिया था और बंदी बनाकर लंका भी ले आया था। जो इंद्रजीत हो उसे मारना इतना आसान नहीं था। अतः मैं समझता हूँ उसे मारने वाला ही सबसे बड़ा योद्धा था, अर्थात लक्ष्मण ने युद्धभूमि में सबसे अधिक पराक्रम दिखाया।  ​

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इंद्रजीत का वरदान :-

श्री राम अपने अनुज की प्रशंसा से अत्यंत प्रसन्न हुए, किन्तु दरबारियों को आश्चर्य हुआ कि किस प्रकार मेघनाद को मारना रावण से अधिक कठिन था। तब अगस्त्यमुनि ने सभा से कहा, मेघनाद को ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था कि उसका वध केवल वो ही कर सकता था जो बारह वर्षों से सोया न हो, जिसने बारह वर्षों से भोजन न किया हो तथा बारह वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन किया हो। मेघनाद पृथ्वी में अतिमहारथी की उपाधि प्राप्त थी, जो आज तक किसी भी योद्धा को नहीं प्राप्त हुई।​

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केवल वह एक ऐसा योद्धा था जिसे त्रिदेवों के तीनों अस्त्र प्राप्त थे- ब्रह्मास्त्र, वैष्णवास्त्र और पाशुपत्रास्त। जिसके कारण वह त्रिदेवों से भी अधिक शक्तिशाली था। उसने अपने गुरु शुक्राचार्य तथा देवलोक के सभी देवताओं के अस्त्र प्राप्त किये थे। उसके समान शक्तिशाली योद्धा पृथ्वी में कोई नहीं था।

जब वह इंद्र को बंदी बनाकर लंका लाया और रावण की आज्ञा से उसे मारने वाला था तब ब्रह्मा जी ने आकर उससे इंद्र को न मारने की विनती की थी, जिसके बदले उसने ब्रह्मा जी से अपनी शक्ति को और अधिक विकसित करने का उपाय पूछा था। तब ब्रह्मा जी ने उस से एक यञबेदी को स्थापित करने की बात कही जिसमे सदैव अग्नि जलती रहे। उस यज्ञ के द्वारा वह निकुंबला देवी की आरधना करके वह हर प्रकार की शक्ति प्राप्त कर सकता था। किन्तु यदि यज्ञ की अग्नि बुझी तो उसकी मृत्यु निश्चित थी।

श्री राम की शंका :-

तब श्री राम बोले, इतनी अधिक शक्ति और इतने सारे वरदान प्राप्त करने के पश्चात् तो उसकी मृत्यु असंभव सी थी फिर किस प्रकार लक्ष्मण उसे मार पाया? बनबास काल में चौदह वर्षों तक मैंने लक्ष्मण को नियमित रूप से भोजन दिया है, और चौदह वर्षों में लक्ष्मण सोया न हो ऐसा कैसे हो सकता है। किसी स्त्री के स्मरण से ही योगियों का ब्रह्मचर्य टूट जाता है, फिर एक ग्रहस्त होते हुए लक्ष्मण ने कभी अपनी पत्नी को स्मरण न किया हो ये भी तो संभव नहीं। कृपा कर बताएं मुनिवर।

चौदह वर्ष का वृतांत  :-

श्री राम की बात सुन अगस्त्य मुनि ने कहा क्यों न लक्ष्मण जी से ही ये वृतांत सुना जाये। श्री राम ने भी सहमति जताई और लक्ष्मण से यही प्रश्न दोहराया। लक्ष्मण जी हाथ जोड़ कर बोले- भैया चौदह वर्ष तक हम जो भी फल आदि लाते थे, आप उनके तीन भाग करते थे और एक भाग मुझे देकर कहते थे की ये फल रख लो, आपने कभी खाने की आज्ञा नहीं दी। और आपकी आज्ञा जब तक न हो मैं उन्हें कैसे खा सकता हूँ। वह फल अब भी कुटिया में ही होंगे। ​

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और रही निद्रा की बात, तो मैं अयोध्या से ये प्रण लेकर निकला था की दिन हो रात मैं आप दोनों की सेवा में सदैव उपस्थित रहूँगा और रक्षा करूँगा, इसलिए मैंने एक पल के लिए भी अपने को निद्रा के वश में होने नहीं दिया। और जब प्रश्न आपकी सेवा और रक्षा का हो तब मैं कैसे किसी और को स्मरण कर सकता हूँ, इस प्रकार चौदह वर्ष तक मेरा ब्रह्मचर्य भी नहीं टूटा। गुरु वशिष्ट से मैंने निद्रा और भूख को संयमित करने की विद्या भी प्राप्त की थी और वह यहां काम आई।​

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चौदह वर्षों से अपनी सेवा में उपस्थित लक्ष्मण का ऐसा त्याग व ऐसी अतुलनीय भक्ति देखकर श्री राम सहित सभा में उपस्थित सभी लोगों की आँखों में आंसू आ गए। श्री राम ने अपने आसान से उठकर अपने अनुज को गले से लगा लिया और उन्हें आशीर्वाद दिया।​

 

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