Article

क्या है चैत्र नवरात्रि मनाने की पौराणिक कथा? ( The Legend of Chaitra Navratri)

आपने नवरात्री के त्यौहार से संबंधित कई प्रकार की पौराणिक कथाएं सुनी होंगी, इन्हीं कथाओं में से एक और कथा है जिसमें महिषासुर नामक एक असुर का माँ दुर्गा द्वारा वध किया जाता है, कथा इस प्रकार है-

असुरों का स्वर्ग पर आक्रमणः-

दैत्यराज महिषासुर ने एक बार अपने कठोर तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके अजय होने का वरदान प्राप्त कर लिया, फलस्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया, देव दानव युद्ध के दौरान देवताओं और राक्षसों में सौ वर्ष तक छल बल और शक्ति बल से युद्ध चलता रहा, महिषासुर नाम का दैत्य राक्षसों का राजा था और भगवान इंद्र देवताओं के राजा थे, इस युद्ध के दौरान देवताओं की सेना कई बार राक्षसों से पराजित हो गई और एक समय ऐसा आया कि महिषासुर ने देवताओं पर विजय प्राप्त करके देवराज इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया।​

यह भी पढ़ें:- पापमोचनी एकादशीः- इस व्रत से मिलेगी सभी पापों से मुक्ति​

भक्ति दर्शन एंड्रॉयड मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें

क्रोधित हुए भगवान विष्णु और शंकरः-

सभी देवता पराजित होकर ब्रह्मा जी के नेतृत्व में भगवान विष्णु और भगवान शंकर की शरण में गये, देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने सूर्य, इंद्र, अग्नि, वायु, चंद्रमा, यम, वरूण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीनकर खुद स्वर्गलोक का राजा बनकर बैठ गया है और सभी देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा है, भगवान विष्णु और भगवान शिव ये बात सुनकर अत्यधिक क्रोधित हो उठे और उनके क्रोध से एक महान तेज उत्पन्न हुआ अन्य देवताओं के शरीर से भी एक तेजोमय शक्ति मिलकर उस तेज में मिल गई, यह तेजोमय शक्ति एक पहाड़ के समान थी जिसकी ज्वालाएं दसों दिशाओं में फैल रही थी।

यह भी पढ़ें:- शीतला अष्टमी या बसौड़ा - इस व्रत से नहीं होगा कभी कोई रोग​

सभी देवताओं के तेज से उत्पन्न हुई देवीः-

सभी देवताओं के शरीर से प्रकट होने के कारण यह तेजपुंज एक अलग ही स्वरूप लिये हुआ था जिससे इस प्रकाश से तीनों लोक भर गये, तभी भगवान शंकर के तेज से उस देवी का मुख मंडल प्रकट हुआ, यमराज के तेज से देवी के बाल, भगवान विष्णु के तेज से देवी की भुजाएं, चंद्रमा के तेज से देवी के दोनों स्तन, इंद्र के तेज से कटि और उदर प्रदेश, वरूण के तेज से देवी की जंघायें और ऊरू स्थल, ब्रह्मा जी के तेज से देवी के दोनों चरण और सूर्य के तेज से चरणों की उंगलियाँ, वसुओं के तेज से दोनों भौएं और वायु के तेज से दोनों कानों का निर्माण हुआ और इस प्रकार से सभी देवताओं के तेज से एक कल्याणकारी देवी का प्रादुर्भाव हुआ, इस देवी की उत्पत्ति महिषासुर के अंत के लिये हुई थी इसीलिये इन्हें ’महिषासुर मर्दिनी’ कहा गया है।

देवताओं ने अर्पित किये अपने शस्त्रः-

सभी देवताओं के तेज पुंज से प्रकट हुई देवी को देखकर पीड़ित देवताओं की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा, भगवान शिव ने शस्त्र के रूप में अपना त्रिशूल देवी को दिया, भगवान विष्णु ने भी अपना चक्र देवी को प्रदान किया, ऐसे ही समस्त देवी देवताओं ने अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्र देवी के हाथों में सजा दिये, इंद्र ने अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घंटा देवी को दिया गया, सूर्य ने अपने रोम कूपों और किरणों का तेज भरकर ढाल, तलवार और दिव्य सिंह यानि शेर को सवारी के लिये उस देवी को अर्पित कर दिया, विश्वकर्मा ने कई अभेद्य कवच और अस्त्र देकर महिषासुर मर्दिनी को सभी प्रकार के बड़े छोटे अस्त्रों से शोभित किया।​

भक्ति दर्शन के नए अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर फॉलो करें

शुरू हुआ महायुद्धः-

महिषासुर से युद्ध करने की अब बारी आ गई थी, महिषासुर ने कुछ समय बाद देखा कि एक विशालकाय रूपवान स्त्री अनेक भुजाओं वाली और अस्त्र शस्त्र से सज्जित होकर शेर पर बैठकर अट्टहास कर रही है, महिषासुर की सेना का सेनापति आगे बढ़कर देवी के साथ युद्ध करने लगा, उदग्र नामक महादैत्य भी 60 हज़ार राक्षसों को लेकर इस युद्ध में कूद पड़ा, महानु नामक दैत्य एक करोड़ सैनिकों के साथ, अशीलोमा दैत्य पाँच करोड़ और वास्कल नामक राक्षस 60 लाख सैनिकों के साथ युद्ध में कूद पड़े, समस्त देवतागण इस महायुद्ध को बड़े कौतूहल से देख रहे थे।
राक्षसों और दानवों के सभी अस्त्र-शस्त्र देवी के सामने बौने साबित हो रहे थे, माता भगवती अपने शस्त्रों से राक्षसों की सेना को निशाना बनाने लगीं, सैकड़ों असुरों को रणचंडिका ने एक ही झटके से मौत के घाट उतार दिया, कुछ राक्षस देवी के घंटे की आवाज़ से मोहित हो गये, देवी ने उन राक्षसों को पृथ्वी पर घसीट कर मार डाला।

नौ दिन तक चला युद्धः-

माता रानी का वाहन शेर भी क्रोधित होकर दहाड़ मारने लगा, वह शेर राक्षसों की सेना से प्रचंड होकर इस तरह घूमने लगा जैसे जंगल में आग लग गई हो, शेर की सांस से ही सैकड़ों हज़ारों गण पैदा हो गये, देवी ने असुर सेना का इस प्रकार संहार कर दिया मानो जैसे तिनके और लकड़ी के ढ़ेर में आग लगा दी गई हो, इस युद्ध में महिषासुर का वध तो हो ही गया साथ में अनेक अन्य दैत्य भी मारे गये जिन्होंने लम्बे समय से आतंक फैला रखा था।
महिषासुर के साथ दुर्गा माता का यह युद्ध नौ दिनों तक चला था और इसी वजह से माता दुर्गा की स्तुति करने के लिये ही नवरात्रि के इस त्यौहार को नौ दिनों तक मनाया जाता है, नवरात्रि की एक और पौराणिक कथा श्री राम से संबंधित है जो शारदीय नवरात्रि से जुड़ी है। 

संबंधित लेख :​​​​