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रहस्यमयी है ये जगह जहाँ आज भी गोपियों संग रास रचाते हैं कान्हा! (The Mystery of Nidhivan)

निधिवन वृन्दावन में स्थित एक पवित्र स्थान है जहाँ आज भी कृष्ण राधा और गोपियाँ रास रचाते हैं। परन्तु यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे कोई देख नहीं सकता। कोई भगवान को रास लीला करते हुए देख न ले इसी वजह से निधिवन को रात्रि के समय बंद कर दिया जाता है, जिसके बाद कोई भी मनुष्य परिसर में प्रवेश नहीं कर सकता। मनुष्य तो क्या पशु पक्षी भी अँधेरा घिरते ही इस स्थान को खाली कर देते हैं। ​

कोई नहीं देख सकता यह रासलीला :-

इस रासलीला को देखने में प्रतिबन्ध इसलिए लगाया गया है क्योकि यदि कोई साधारण मनुष्य इस रास लीला को देखता है तो वह अपनी सुध बुध खो देता है अथवा पागल हो जाता है। ऐसे कई वाकये पहले भी सामने आ चुके हैं जिनमे कुछ लोगों ने छुपकर ये रास देखने की कोशिश की और वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठे और कुछ घटनाओं में लोगो ने अपनी जान भी गवां दी। निधिवन में एक समाधी बनाई है, जो पागल बाबा की समाधी है। कहा जाता है कृष्ण से अत्यधिक प्रेम के कारण पागल बाबा ने ये रास लीला देखने की चेष्ठा की थी, और सुबह तक वह मानसिक संतुलन खो बैठे थे। क्योकि वे कृष्ण के अनन्य भक्त थे इसलिए मंदिर कमेटी ने उनकी समाधी निधिवन में ही बनवा दी। ​

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यहां कृष्ण करते हैं राधा जी की सेवा :-

निधिवन के भीतर ही एक कमरा है, जिसे 'रंग महल' कहा जाता है। यह बहुत ख़ास कमरा है, मान्यता है की जब राधा कृष्ण रास लीला करते हुए थक जाते हैं, तब वे दोनों रंग महल में आराम करने आते हैं। यहां कृष्ण राधा रानी के पाँव दबाते हैं तथा उनकी सेवा करते हैं। रंग महल में राधा कृष्ण के लिए प्रतिदिन चंदन का पलंग सजाया जाता है और साथ में जल, दातुन, श्रृंगार तथा पान भी रखा जाता है। और अगली सुबह जब रंग महल के द्वार खोले जाते हैं तब यहां बिस्तर अस्त व्यस्त, लोटे का जल खाली, पान खाया हुआ तथा दातुन भी कुछ हुई मिलती है। यहां पर केवल श्रृंगार का सामान चढ़ाया जाता है और भक्तों को भी प्रसाद में श्रृंगार का सामान ही दिया जाता है। ​

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पेड़ भी साधारण नहीं :-

निधिवन में वृक्ष भी अद्भुत हैं, क्योकि यहां सामान्य वृक्ष की तरह इनकी शाखाएं ऊपर की ओर न बढ़कर नीचे की ओर बढ़ती हैं। इन वृक्षों को डंडे लगाकर रोका गया है ताकि इनके बीच में से रास्ता बनाया जा सके। 

तुलसी के पेड़ हैं गोपियों के रूप :-

सम्पूर्ण निधिवन एक रहस्य की तरह है, यहां एक और रहस्य हैं यहां के तुलसी के पेड़। तुलसी का हर पेड़ जोड़े में खड़ा है। लोगों का मानना है की जब राधा कृष्ण रास रचाते है तब यही तुलसी के वृक्ष गोपियाँ बन जाते है और भोर के समय सब वापस से तुलसी का रूप धर लेते हैं। साथ ही लोगो का कहना है कि इस वन से कोई भी तुलसी का एक डंडा भी नहीं ले जा सकता क्योकि जो भी इन्हे ले जाता है किसी न किसी आपदा का शिकार हो जाता है। इसलिए लोग इन्हे छूते भी नहीं हैं।  

निधिवन के आस-पास के घरों में नहीं कोई झरोखा :-

निधिवन के आस पास बने घरों में खिड़की या झरोखे नहीं बनाये गए हैं, और जो हैं वो बिलकुल बंद कर दिए गए हैं। क्योकि सांझ के समय यहां कोई नहीं देख सकता, जिन लोगों ने देखने का प्रयास किया है वे या तो अंधे हो गए या उनके ऊपर कोई आपदा आ गयी। इसलिए कोई भी नहीं चाहता की उनकी या उनके परिवार के किसी भी सदस्य की नज़र निधिवन में पड़े।   ​

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वंशी चोर राधा रानी का मंदिर :-

निधिवन में ही राधा रानी का भी मंदिर है। कहा जाता है कि जब कृष्णा बंसी बजाते थे तब उन्हें राधा की भी सुध नहीं रहती थी। इसलिए राधा बंसी को अपनी सौतन समान मानती थी। और एक दिन मौका पा कर उन्होंने उस बंसी को चुरा लिया। इसलिए ये मंदिर 'वंशी चोर राधा रानी का मंदिर' कहलाता है। इस मंदिर में राधा जी के साथ साथ गोपी ललिता की भी मूर्ति है, जो कृष्ण को अत्यंत प्रिय थीं।  ​

गोपी विशाखा के नाम पर कुंड :-

एक बार रास लीला करते हुए कृष्ण जी की एक प्रिय गोपी, जिनका नाम था विशाखा, उनको प्यास लग गयी। किन्तु आस पास जल की कोई व्यवस्था न थी और इसलिए कान्हा ने अपनी बंसरी से वहां पर एक कुंड खोद दिया, जिसमे से निकले पानी से विशाखा ने अपनी प्यास तृप्त की। इसीलिए इस कुंड को विशाखा कुंड भी कहा जाता है। यह जल कुंड भी निधिवन में ही स्थापित है। ​

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बांके बिहारी हुए थे यहां प्रकट :-

विशाखा कुंड के पास ही बिहारी जी भी प्रकट हुए थे। कहा जाता है कि संगीत सम्राट एवं राग ध्रुपद के जनक स्वामी हरिदास जी महाराज अपने स्वरचित पदों का मधुर गायन करते थे, जिसमें स्वामी जी इस प्रकार तन्मय हो जाते कि उन्हें तन-मन की सुध नहीं रहती थी। प्रसिद्ध गायक बैजूबावरा और तानसेन इन्ही के शिष्य थे। बांकेबिहारी जी ने उनकी संगीत भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें एक दिन स्वप्न दिया और बताया कि मैं तुम्हारी साधना स्थली में ही विशाखा कुंड के पास ही बिहारी जी भी प्रकट हुए थे। कहा जाता है कि संगीत सम्राट एवं राग ध्रुपद के जनक स्वामी हरिदास जी महाराज अपने स्वरचित पदों का मधुर गायन करते थे, जिसमें स्वामी जी इस प्रकार तन्मय हो जाते कि उन्हें लोक परलोक की सुध ही नहीं रहती थी। 

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अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक तानसेन हरिदास जी के ही शिष्य थे और तानसेन को प्रतियोगिता में हराने वाले बैजू बावरा भी इन्ही के शिष्य थे। बांके बिहारी जी का प्राकट्य भी हरिदास जी की साधना स्थली से ही हुआ था। उन्होंने हरिदास जी के स्वप्न में आकर उन्हें अपना विग्रह निकलवाने की बात कही थी। यहां हर वर्ष बिहारी जी का प्राकट्योत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।​​

 

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