Article

जब एक साधारण ब्राह्मण ने तोड़ा अर्जुन का घमंड! (When an Ordinary Brahmin Broke the Pride of Arjuna!)

महाभारत की कथा को लोग संपत्ति, अधिकार, द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार और अपमान के साथ ही दर्द और दुख के समुंदर की कथा मानते हैं। पर ये कथा सिर्फ यहां तक सिमित नहीं है, ये कथा है धर्म के पथ पर चलने से मिलने वाले दुःख और दर्द को पार करके ईश्वर को प्राप्त करने की। ये कथा पग पग पर जीवन जीने की कला सिखाती है।

महाभारत में अनेक महापुरुषों की गाथा है, इनमे से एक हैं अर्जुन। जिन्हे स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने अपने विराट आलौकिक रूप के दर्शन कराये थे। अर्जुन एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे और श्री कृष्ण को बहुत प्रिय भी थे, ये बात सभी जानते हैं परन्तु ये बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्हें इस बात पर अहंकार हो गया था कि वो इस संसार में कृष्ण के सबसे बड़े भक्त हैं। आइये जानते हैं पूरी कथा –

यह भी पढ़ें - कौन था वो योद्धा जिस से डरकर श्री कृष्ण को भागना पड़ा?

अर्जुन ने माँगा श्री कृष्ण का साथ :-       

बात तब की है जब महाभारत के युद्ध से पूर्व श्री कृष्ण की नारायणी सेना मांगने दुर्योधन और अर्जुन उनके पास पहुंचे। तब कृष्ण सो रहे थे, इसलिए अर्जुन उनके चरणों के समीप और दुर्योधन उनके सिरहाने के समीप बैठ गया। जब कृष्ण अपनी निद्रा से जागे तो उनकी दृष्टि अर्जुन पर पड़ी और उन्होंने अर्जुन से पूछा कि उसे सेना और कृष्ण में से क्या चाहिए। अर्जुन ने बड़ी सरलता से श्री कृष्ण को मांग लिया। अर्जुन की इस भक्ति और विश्वास से कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए, और युद्ध में अर्जुन का सारथि बन कर उसकी सहायता की।

भक्ति दर्शन के नए अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर फॉलो करे

अर्जुन का घमंड तोड़ने का निश्चय:-

इस घटना के बाद अर्जुन को सभी की प्रशंसा प्राप्त हुई थी की उसने शक्ति की जगह भक्ति को चुना। और यह सब सुनते सुनते अर्जुन के मन में इस बात का अहंकार हो गया कि वह विश्व का सबसे बड़ा कृष्ण भक्त है। अहंकार एक पाप है क्योकि अहंकार से मनुष्य गलत निर्णय लेता है जो उसे गलत कार्यों की ओर अग्रसर कर देते हैं। और कृष्ण अपने किसी भी भक्त को कोई पाप करते नहीं देख सकते। इसलिए श्री कृष्ण ने अर्जुन के घमंड को उसके मन से निकालने का निर्यण कर लिया।

और इसी अभिप्राय से वे उसे अपने साथ नगर घुमाने के लिए ले गए। विहार करते हुए अर्जुन को एक निर्धन ब्राह्मण दिखा, जो वेश में तो ब्राह्मण के था किन्तु एक तलवार साथ ले कर घूम रहा था तथा भोजन में सुखी हुई घास खा रहा था। 

यह भी पढ़ें - क्यों अभिमन्यु की रक्षा नहीं कर पाए कृष्ण ?

अर्जुन का ब्राह्मण से संवाद :-

अर्जुन को उस ब्राह्मण को देख कर विस्मयता हुई। उसने जिज्ञासावश उस ब्राह्मण से पूछा- हे ब्राह्मण देव आप यह हिंसक तलवार लेकर क्यों घूम रहे हैं जबकि आप एक ब्राह्मण हैं और जीवन व्यापन के लिए सूखी घास खा रहे हैं।

इस पर ब्राह्मण ने जवाब दिया कि मैं कुछ लोगों को दण्डित करने के लिए ही ये तलवार अपने पास रखता हूँ। अर्जुन आश्चर्य से बोला आपके शत्रु कौन हो सकते हैं? तब ब्राह्मण बोला मैं 4 अधर्मी लोगो को ढूंढ रहा हूँ, ताकि उनसे अपना हिसाब चुकता कर सकूँ।

यह भी पढ़ें - बर्बरीक महाभारत का सबसे बड़ा लेकिन अज्ञात योद्धा

ब्राह्मण के शत्रु :-

सबसे पहला नाम ब्राह्मण ने नारद मुनि का बताया और कहा वह नारद मेरे प्रभु को कभी आराम से रहने नहीं देता। जब देखो तब नारायण नारायण बोल के मेरे प्रभु को जगा देता है। अर्जुन ने दूसरा नाम पूछा- तो ब्राह्मण ने बोला दूसरा शत्रु कोई पुरुष नहीं, एक स्त्री है, द्रौपदी। उस निर्लज्ज ने मेरे प्रभु को जूठा खाना खाने को दिया। और उस समय सहायता के लिए पुकारा जब वे भोजन कर रहे थे। उनको तत्काल भोजन से उठकर पांडवों को दुर्वासा ऋषि के श्राप से बचाने जाना पड़ा। '

भक्ति दर्शन एंड्रॉयड मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें।

अर्जुन की जिज्ञासा और बढ़ गयी उसने तीसरा नाम जानना चाहा, तो ब्राह्मण ने बताया तीसरा शत्रु है दुष्ट प्रह्लाद। उस निर्दयी बालक के कारण मेरे प्रभु को खौलते हुए तेल में प्रविष्ट होना पड़ा, आग में जलना पड़ा, हाथी के पैरो तले आना पड़ा। इन सब भी मन नहीं भरा उसका तो उसके कारण प्रभु को खम्बे से प्रकट होना पड़ा। 

अब बारी थी चौथे नाम की, ब्राह्मण बोला मेरा अंतिम शत्रु अर्जुन है। यह सुनते ही अर्जुन के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा। वह हाथ जोड़कर बोला- क्यों ब्राह्मण देव? अर्जुन को कृष्ण भक्त है, उससे क्यों बैर है आपका? यह सुनकर ब्राह्मण की आंखों में आंसू आ गए, वह बोला "अर्जुन ने तो सारी मर्यादा पार कर दी। उस दुष्ट ने मेरे प्रभु को अपना सारथि बनाया। अपने रथ की कठोर धुरा को मेरे प्रभु के नरम हाथों में थमा दिया। उसे प्रभु के कष्टों का तनिक भी ज्ञान नहीं रहा, किस प्रकार का हृदयहीन प्राणी है वह।" और ऐसा बोलते बोलते वह फूट फूट कर रोने लगा। 

यह भी पढ़ें - किस्मत वालों को ही मिलते हैं बांके बिहारी जी के दर्शन!

उतर गया सारा घमंड :-

यह सब सुनकर अर्जुन का सर लज्जा से नीचे झुक गया। वह ब्राह्मण के सामने अपने आप को बहुत तुच्छ महसूस कर रहा था और सबसे बड़ा कृष्ण भक्त होने का सारा अभिमान उसके सर से उतर गया। कृष्ण से क्षमा मांगते हुए अर्जुन ने कहा कि इस सृष्टि में आपके अनगनित भक्त हैं, जिनके सामने मैं कुछ भी नहीं। 

इस कहानी की सार यह है कि भक्ति कोई प्रतियोगिता नहीं जिसमे आपको किसी से आगे या पीछे रहना है। जब आगे-पीछे रहने का कोई चक्कर ही नहीं तो घमंड और डर जैसी चीजों का भी कोई मूल्य नहीं। इसलिए स्वार्थ छोड़ सच्चे मन से भक्ति कीजिये, क्योकि आप नहीं जानते इतने बड़े संसार में कितने लोग आपसे अधिक प्रभु को प्रिय हैं।

 

संबंधित लेख :​