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क्यों जन्म लेते ही नदी में डुबोकर मार दिया अपने पुत्रों को गंगा ने? (Why Did Ganga Killed Her 7 Children? )

गंगा सनातन धर्म की सबसे पवित्र नदी हैं, उन्हें माँ का दर्जा प्राप्त है। माँ गंगा पहले देवलोक में ही रहा करतीं थीं, किन्तु भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर यह पृथ्वी पर पधारी। महाभारत के देवव्रत अर्थात पितामह भीष्म इन्ही के पुत्र थे। आज इस लेख में माता गंगा के जीवन से जुडी कुछ रोचक बातें हम आपको बतायंगे –​

ब्रह्मा जी का श्राप :-

प्राचीन समय में इक्ष्वाकु वंश में एक राजा थे महाभिष। उन्होंने कई धार्मिक कर्म और यज्ञ करके स्वर्ग लोक की प्राप्ति की थी। एक दिन देवसभा में सभी देव, पार्षद, गन्धर्व और देवियां उपस्थित थी। तभी देवसभा में वायु के वेग से देवी गंगा का आँचल उड़ गया और सभी देवताओं ने अपनी आँखें झुका ली। किन्तु राजा महाभिष देवी गंगा को देखते रहे। सभा में ऐसा दुर्व्यवहार देख कर ब्रह्माजी क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा महाभिष को मृत्युलोक में जन्म लेने का श्राप दे दिया। महाभिष ने ब्रह्मा जी से क्षमा मांगते हुए कहा की उसकी भूल सुधारने का एक मौका दें और श्राप को वापस ले लें। तब ब्रह्मा जी ने श्राप को परिसीमित किया, और कहा जब पृथ्वी में तुम गंगा पर क्रोध करोगे तब तुम श्राप मुक्त हो जाओगे। ​

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राजा शांतनु का गंगा से विवाह :-

श्राप के कारण महाभिष पृथ्वी पर पुरुवंश में शांतनु के रूप में जन्मे। वह एक पराक्रमी राजा थे, और अक्सर शिकार पर जाया करते थे। एक दिन शिकार की खोज में वे काफी आगे निकल गए और तभी उन्हें एक सुन्दर युवती दिखाई दी। उसे देखते ही वह उसपे मोहित हो गए। उन्होंने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। 

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उस युवती ने कहा- मैं अवश्य आपसे विवाह करुँगी किन्तु मेरी एक शर्त है, की आप मुझसे कभी भी कोई प्रश्न नहीं करेंगे, और जिस दिन आपने मुझसे कोई प्रश्न किया मै आपको छोड़ कर चली जाउंगी। शांतनु मान गए, और दोनों का विवाह हो गया।​

नवजात शिशुओं को किया गंगा में प्रवाहित :-

कुछ समय बाद दोनों का एक पुत्र हुआ। किन्तु पुत्र होते ही वह युवती उसे लेकर कहीं जाने लगी, राजा शांतनु भी छुपते छुपते उनके पीछे पीछे चल दिए। और देखते ही देखते युवती ने अपने पुत्र को गंगा में प्रवाहित कर दिया , यह देखकर शांतनु को एक झटका लगा। वह उस से कुछ पूछने जा ही रहे थे की उन्हें अपना वचन याद आ गया और वह उससे बिछड़ने के विचार से रुक गए।​

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धीरे धीरे वर्ष बीतते गए, और शांतनु के एक एक कर सात पुत्र हुए, जिन्हे वह युवती एक एक कर गंगा में प्रवाहित कर देती थी। अब शांतनु बहुत दुखी हो चुके थे, और इसी क्रम में उन्हें आठवां पुत्र हुआ। जिसे वह युवती उठाकर गंगा में प्रवाहित करने वाली थी की तभी शांतनु ने उसे रोक लिया। और प्रश्न किया की क्यों उसने सभी पुत्रों को नदी में डुबोकर मार डाला? कौन है वो और ऐसा क्यों करती है? यह सुनकर वह युवती बोली, महाराज मैं गंगा हूँ। देवलोक में एक श्राप के कारण आप इस पृथ्वी में जन्मे हैं। और हमारे यह सभी पुत्र पूर्वजन्म में वसु थे। गंगा में डुबोकर मैंने इन्हे श्राप मुक्त किया है। किन्तु इस पुत्र को जीवन जीने का श्राप मिला था इसलिए यह पुत्र इस पृथ्वी में जीवन जी के यहां के सुख दुःख झेलेगा। यह कहकर गंगा उस पुत्र को अपने साथ शिक्षा के पूर्ण होने तक ले के चली गयी। और शांतनु को वचन दिया की शिक्षा पूर्ण होने के बाद वह इस पुत्र को उन्हें सौंप देगी।​

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वसुओं का मनुष्य योनि में जन्म :-

शस्त्रों के अनुसार, एक बार आठ वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर विहार कर रहे थे। तभी उन्हें वहां पर ऋषि वशिष्ठ का आश्रम दिखा, वे सब आश्रम में गए और वहां उन्हें नंदिनी गाय के दर्शन हुए। यह एक दिव्य गाय थी, तभी द्यो नामक वसु को शरारत सूझी। उसने अन्य वसुओं के साथ मिलकर गाय का हरण कर लिया। जब महर्षि वशिष्ठ को वसुओं के इस कार्य का पता चला तो वे अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने सभी वसुओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।​

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श्राप से भयभीत होकर सभी वसु क्षमा प्रार्थना करने लगे। उन पर दया करते हुए ऋषि ने कहा तुम सभी को जन्म लेते ही मुक्ति मिल जायगी किन्तु इस द्यो नामक वसु को, जिसने ये जघन्य अपराध करने का विचार किया, पृथ्वी पर रहकर अनेक कष्ट भोगेगा। और अंत में मोक्ष को प्राप्त करेगा। इसी कारण गंगा ने सभी को मुक्ति प्रदान की और द्यो नामक वसु पृथ्वी पर रह कर भीष्म पितामह के रूप में अनेक कष्टों को झेल कर अंत में मोक्ष को प्राप्त हुआ। ​

 

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