Article

हर मनोरथ पूर्ण करती 'कामदा एकादशी' की व्रत कथा तथा पूजन विधि !

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत की बहुत अधिक महत्वता होती है, ये एकादशी प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में आती हैं जिनका अपना विशेष महत्व होता है, परन्तु चैत्र मास की कामदा एकादशी अधिक खास होती है, क्योंकि यह हिन्दू संवत्सर की पहली एकादशी होती है, चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है।

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी का उपवास रखा जाता है, अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार इस वर्ष कामदा एकादशी 15 अप्रैल 2019 सोमवार को है।

कामदा एकादशी की तिथि व मुहूर्तः-

तिथि, चैत्र, शुक्ल एकादशी, विक्रम सम्वत

एकादशी तिथि प्रारम्भ - प्रातः 07ः08 बजे (15 अप्रैल 2019) सोमवार
एकादशी तिथि समाप्त - प्रातः 04ः23 बजे (16 अप्रैल 2019) मंगलवार 

पारण (व्रत तोड़ने का समय) - दोपहर 01ः42 से सांय 04ः13 बजे तक (16 अप्रैल 2019)
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय - प्रातः 09ः39 बजे (16 अप्रैल 2019)​

भक्ति दर्शन एंड्रॉयड मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें

कामदा एकादशी व्रत की पौराणिक कथाः-

पुराणों में प्रत्येक मास की एकादशी का माहात्म्य कथाओं के माध्यम से व्याख्यायित किया गया है, चैत्र शुक्ल एकादशी यानि कामदा एकादशी की कथा इस प्रकार है-

एक पुण्डरिक नाम का राजा रत्नपुर नामक नगर में राज्य करता था, कई अप्सराएं, गंधर्व यहाँ वास करते थे, यहाँ पर ललित और ललिता नामक गंधर्व पति पत्नी का जोड़ा भी रहता था, ललित और ललिता दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे उन दोनों के लिये क्षण भर की जुदाई भी असहनीय होती थी।
राजा पुण्डरिक की सभा में एक दिन नृत्य का आयोजन चल रहा था इस सभा में गंधर्व गा रहे थे और अप्सराएं नृत्य कर रही थीं, गंधर्व ललित भी उस दिन सभा में गा रहा था और गाते गाते वह अपनी पत्नी ललिता को याद करने लगा और उसका एक पद सुर से थोड़ा बिगड़ गया, कर्कोट नामक नाग ने उसकी इस गलती को भांप लिया और उसके मन में झांककर इस गलती का कारण जानकर राजा पुण्डरिक को बता दिया, राजा पुण्डरिक यह जानकर बहुत क्रोधित हुए और ललित को श्राप देकर एक विशालकाय राक्षस बना दिया।​

भक्ति दर्शन के नए अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर फॉलो करें

यह भी पढ़ें:- क्या है चैत्र नवरात्रि मनाने की पौराणिक कथा? ( The Legend of Chaitra Navratri)​

जब ललिता ने अपने पति को ऐसी हालत में देखा तो उसे बहुत अधिक दुख हुआ, वह भी राक्षस योनि में विचरण करती हुई ललित के पीछे पीछे चल पड़ी और उसे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाने का मार्ग खोजने लगी, एक दिन वह श्रृंगी ऋषि के आश्रम में जा पहुँची और ऋषि को प्रणाम करने लगी, ऋषि श्रृंगी ने ललिता से पूछा कि हे देवी इस भयंकर जंगल में तुम क्या कर रही हो और यहाँ किसलिये आई हो, ललिता ने अपनी सारी व्यथा ऋषि के सामने रख दी, ऋषि बोले - तुम बहुत सही समय पर आई हो देवी, अभी चैत्र मास की शुक्ल एकादशी तिथि आने वाली है, इस व्रत को कामदा एकादशी कहते हैं, इसका विधिपूर्वक पालन करना और अपने पति को इसका पुण्य देना, उसे राक्षसी जीवन से मुक्ति मिल जायेगी, जैसा ऋषि श्रृंगी ने बताया ललिता ने वैसा ही किया।

कामदा एकादशी व्रत का पुण्य अपने पति को देते ही वह राक्षस रूप से पुनः अपने सामान्य रूप में लौट आया और कामदा एकादशी के व्रत के प्रताप से ललित और ललिता दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक में वास करने लगे, मान्यता है कि इस संसार में कामदा एकादशी के समान कोई अन्य व्रत नहीं है, इस व्रत की कथा के श्रवण अथवा पठन मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।

क्या है कामदा एकादशी व्रत की पूजन विधिः-

कामदा एकादशी व्रत के दिन स्नानादि के पश्चात् शुद्ध होकर निर्मल वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लेना चाहिये, व्रत का संकल्प लेने के पश्चात भगवान श्री हरि यानि विष्णु भगवान की फल, फूल, दूध, तिल, पंचामृत इत्यादि सामग्री के साथ पूजा करनी चाहिये और एकादशी व्रत की कथा सुननी चाहिये, रात्रि में भगवान का भजन कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिये, अगले यानि द्वादशी के दिन किसी ब्राह्ममण या भूखे गरीब को भोजन करवाकर, दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट करने पर ही स्वयं भोजन कर पारण करना चाहिये।

संबंधित लेख :​​​​