Article

अक्षय तृतीया: प्राचीन काल से ही शुभ और लाभ का है प्रतीक यह दिन !

प्रति वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि में जब सूर्य और चंद्रमा अपने उच्च प्रभाव में होते हैं अर्थात उनका तेज जब सर्वोच्च होता है उस तिथि को अत्यंत शुभ माना जाता है इसी शुभ तिथि को ’अक्षय तृतीया’ कहा जाता है।

अक्षय तृतीया शुभ मुहूर्तः-

अक्षय तृतीया - मंगलवार 07 मई 2019
तिथि, 18 वैशाख, शुक्ल पक्ष तृतीया, विक्रम संवत

तृतीया तिथि प्रारम्भ - 07 मई 03ः17 बजे से
तृतीया तिथि समाप्त - 08 मई 02ः17 बजे तक

अक्षय तृतीया पूजन मुहूर्त - 05ः40 से 12ः18 बजे तक
पूजन समय - 06 घण्टे 37 मिनट
सोना खरीदने का शुभ समय - 07 मई मंगलवार को 05ः40 से 26ः17 बजे तक

यह भी पढ़ें:- इसीलिये रोका था माता सती को भगवान शिव ने यज्ञ में जाने से !

यह भी पढ़ें:-  कौन थीं श्री कृष्ण की रानियाँ क्या है इनका सत्य ?

अक्षय तृतीया महत्वः-

पारंपरिक रूप से यह तिथि भगवान विष्णु के छठे अवतार श्री परशुराम की जन्मतिथि होती है, इस तिथि के साथ पुराणों की अहम वृत्तांत जुड़े हुए हैं जैसे -

1. सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ
2. भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण और हयग्रीव का अवतरण
3. ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव
4. वेद व्यास एंव श्री गणेश द्वारा महाभारत ग्रंथ के लेखन का प्रारंभ
5. महाभारत के युद्व का समापन
6. द्वापर युग का समापन
7. माँ गंगा का पृथ्वी में आगमन
8. भक्तों के लिए तीर्थस्थल श्री बद्रीनाथ के कपाट भी इसी तिथि से खोले जाते हैं
9. वृंदावन के श्री बांके बिहारी जी मंदिर में सम्पूर्ण वर्ष में केवल एक बार इसी तिथि में श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं।

भक्ति दर्शन एंड्रॉयड मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें।

भक्ति दर्शन के नए अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर फॉलो करें

अक्षय तृतीया के दिन को ऐसी शुभ तिथि माना जाता है जिसमें कोई भी शुभ कार्य हेतु, कोई नई वस्तु खरीदने हेतु पंचांग देखकर शुभ मुहूर्त निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती, कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह या ग्रह प्रवेश बिना पंचांग देखे किये जा सकते हैं, इस दिन पितृ पक्ष में किये गये पिंडदान का अक्षय परिणाम भी मिलता है, अक्षय तृतीया में पूजा पाठ और हवन इत्यादि भी अत्याधिक सुखद परिणाम देते हैं।

पौराणिक कथाएँः-

पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत काल में जब पांडव वनवास में थे तो एक दिन श्री कृष्ण ने द्रौपदी को एक अक्षय पात्र उपहार स्वरूप दिया था, यह पात्र कभी भी खाली नहीं होता था और इसी के सहारे पांडवों को कभी भी भोजन की चिंता नहीं हुई और मांगने पर इस पात्र से असीमित भोजन प्रकट होता था।

अक्षय तृतीया के संदर्भ में श्री कृष्ण से संबंधित एक और कथा प्रचलित है, कथानुसार भगवान कृष्ण के बालपन के मित्र सुदामा इसी दिन अपने परिवार के लिए आर्थिक सहायता मांगने के लिए उनसे मिलने उनके द्वार पहुंचे थे, श्री कृष्ण को भेंट में देने के लिए सुदामा के पास केवल तीन मुट्ठी तंदुल थे, श्री कृष्ण से मिलने के उपरांत उन्हें भेंट देने में सुदामा को संकोच हो रहा था परंतु श्री कृष्ण कहां मानने वाले थे उन्होंने वो तंदुल की पोटली सुदामा के हाथ से छीन ली और बड़े ही चाव से वो तंदुल खाये।

सुदामा श्री कृष्ण के अतिथि थे तो श्री कृष्ण ने उनका भव्य रूप से आदर सत्कार किया, श्री कृष्ण द्वारा मिले सत्कार से सुदामा बहुत ही प्रसन्न हुए परंतु आर्थिक सहायता के लिए उन्होंने श्री कृष्ण कुछ भी कहना उचित नहीं समझा और बिना कुछ मांगे ही अपने घर की ओर निकल पड़े, सुदामा जब अपने घर पहुँचे तो दंग रह गए, उनकी टूटी फूटी झोपड़ी एक भव्य महल के रूप में बदल गई और उनकी गरीब पत्नी और बच्चे नये वस्त्राभूषण से सुसज्जित थे, सुदामा यह समझ चुके थे कि यह उनके मित्र और विष्णु अवतार श्री कृष्ण का ही आशिर्वाद है, इसी कारण अक्षय तृतीया को धन संपत्ति के लाभ प्राप्ति से भी जोड़ा जाता है।

संबंधित लेख :​​​​