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वरूथिनी एकादशी :दस हजार वर्ष के तप के समान है इसका फल ! (Varuthini Ekadashi)

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व होता है, हर माह में दो एकादशी आती हैं, इसी क्रम में वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत अत्यंत सौभाग्यशाली माना जाता है, जिसे वरूथिनी एकादशी कहते हैं, इसे वरूथिनी ग्यारह भी कहा जाता है, इस व्रत को करने से पुण्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है और इस एकादशी को करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, जो व्यक्ति इस व्रत को सच्चे मन से करता है उसके वर्तमान जीवन के साथ साथ अन्य सभी जन्म भी सुधर जाते हैं।

वरूथिनी एकादशी का महत्वः-

वरूथिनी एकादशी का व्रत पुण्य फल प्रदान करने वाला व्रत है, यह सौभाग्य देने वाला, सभी पापों को नष्ट करने वाला तथा अंत में मोक्ष की प्राप्ति कराता है, कोई अभागिनी स्त्री यदि इस व्रत को करे तो उसको सौभाग्य की प्राप्ति होती है, इसी वरूथिनी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता भी स्वर्ग को गये थे, इस व्रत का फल दस हज़ार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है, पूजा एंवम अनुष्ठान के द्वारा श्रद्धालु इस दिन को एक खास तरीके से भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करके मनाते हैं।​

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एकादशी के दिन दान का भी अत्यधिक महत्व होता है, मान्यता है कि दान देने से दानी के दुख और कष्ट भी चले जाते हैं, शास्त्रों में लिखा है कि हाथी का दान घोड़े के दान से श्रेष्ठ होता है, हाथी के दान से भूमिदान, भूमि के दान से तिलों का दान, तिलों के दान से स्वर्ण का दान तथा स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ होता है, अन्नदान महादान होता है इसके बराबर कोई दान नहीं होता, अन्नदान से देवता, पित्तर और मनुष्य तीनों तृप्त हो जाते हैं, शास्त्रों में इसे कन्यादान के बराबर माना जाता है।

वरूथिनी एकादशी तिथि व मुहूर्तः-

वरूथिनी एकादशी - 30 अप्रैल 2019 (मंगलवार)

एकादशी तिथि प्रारम्भ - रात्रि 10ः04, 29 अप्रैल 2019 (सोमवार)

एकादशी तिथि समाप्त - मध्य रात्रि 12ः18, 01 मई 2019 (बुधवार)

पारण (व्रत तोड़ने का) समय - प्रातः 06ः44 से 08ः32 बजे तक - (01 मई 2019)

वरूथिनी एकादशी व्रत विधिः-

वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की वरूथिनी एकादशी का व्रत करने के लिये उपवासक को दशमी तिथि के दिन से ही एकादशी व्रत के नियमों का पालन करना चाहिये, व्रत पालन में दशमी तिथि की रात्रि में ही सात्विक भोजन करना चाहिये और भोजन में मांस अथवा मूंग दाल और चने, जौ, गेहूँ का प्रयोग नहीं करना चाहिये, इसके अतिरिक्त भोजन में नमक का भी प्रयोग नहीं होना चाहिये।

सोते समय भूमि पर सोना चाहिये, भूमि शयन अगर विष्णु जी की प्रतिमा के निकट हों तो और भी अधिक शुभ होता है, इस व्रत की अवधी 24 घण्टों से भी कुछ अधिक हो सकती है, यह व्रत दशमी तिथि की रात्रि के भोजन करने के बाद शुरू हो जाता है, और इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन प्रातःकाल में ब्राह्मणों को दान आदि देने के बाद ही समाप्त होता है।

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इस दिन व्रती को प्रातः उठकर नित्यकर्म क्रियाओं को पूरा करने के बाद स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिये, स्नान करने के लिये एकादशी व्रत में जिन वस्तुओं का पूजन किया जाता है उन वस्तुओं से बने लेप से स्नान करना शुभ होता है, प्रातःकाल व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, पूजा के लिये धान्य का ढे़र रखकर उस पर मिट्टी या तांबे का घड़ा रखा जाता है, घड़े पर लाल रंग का वस़्त्र बांधकर उस पर भगवान श्री विष्णु की पूजा, धूप, दीप, और पुष्प से की जाती है।

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