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गीता सार:कैसे लोगों को सफल बनाती है भागवत गीता? (GeetaSaar: Bhagawat Geeta)

'गीता', एक ऐसा ग्रन्थ जिसे पढ़ने से मनुष्य को सही निर्यण लेने में समय नहीं लगता, जिसे पढ़ने से मनुष्य मोक्ष को सहज ही प्राप्त हो जाता है, जिसे जीवन में उतारने से मनुष्य को जीवन जीने की कला प्राप्त होती है। गीता भारत के उन ग्रंथों में, जो मनुष्य सभ्यता के लिए सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं, सबसे ऊपर है। ये एक बहुत पवित्र हिन्दू ग्रन्थ है, जिसका मनुष्य जीवन में उच्चतम स्थान है। इसमें भगवान कृष्ण के दिए उपदेश सहेजे गए हैं। वह उपदेश जिनसे अर्जुन को युद्ध करने की शक्ति तथा जीतने की प्रेरणा मिली थी। आज मनुष्य का जीवन किसी महाभारत से कम नहीं, हमे भी पग पग पर किसी सहारे की ज़रुरत पड़ती है। हमे भगवान कृष्ण तो मिल नहीं सकते, क्योकि उनकी प्राप्ति यूँ ही नहीं हो सकती, इसलिए उनके बाद उनकी कमी यह 'गीता' ही पूरी करती है। ​

किसी धर्म विशेष के लिए नहीं है गीता :-   

कर्म योग, भक्ति योग, राज योग तथा ज्ञान योग, ये चारों ही गीता में विस्तार से बताये गए हैं। ये सभी उपदेश किसी धर्म अथवा व्यक्ति विशेष के लिए न होकर सभी मनुष्यों के लिए तथा सम्पूर्ण संसार के लिए हैं। गीता का ज्ञान लगभग 7000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन माना जाता है, किन्तु इसका ज्ञान आज भी उतना ही अधिक प्रभावशाली और वास्तविक है। गीता मोक्ष, सत्य, शांति, धर्म और कर्म आदि जैसी सिद्धियों को प्राप्त करने का उपदेश देती है। आज के समय में भी बहुत से सफल व्यक्ति अपनी सफलता का श्रेय भागवत गीता को देते हैं, और ये सफल व्यक्ति केवल हिन्दू धर्म के नहीं वरन विभिन्न धर्मों को मानने वाले हैं। इनका मानना है कि जब भी जीवन में कोई दुविधा होती है तो गीता के पास हमेशा इसका जवाब मिल जाता है।  ​ 

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गीता वेदों और उपनिषदों का सार है, इसलिए उपनिषद न पढ़ने वाले लोग यदि केवल गीता पढ़ लें, तो वही उनके लिए पर्याप्त है। आत्मा परमात्मा के परस्पर सम्बन्ध को समझाती गीता ईश्वर के अनंत रूप के दर्शन कराती है। तथा सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष का मार्ग भी दिखाती है। ​

अर्जुन को दिया था मोह त्याग युद्ध करने का ज्ञान :-  

कई हज़ार साल पहले जब अर्जुन ने युद्ध भूमि में शस्त्र त्याग दिए थे और संन्यास लेने अथवा मृत्यु को प्राप्त करने का विचार कर रहे थे, उस समय भगवान कृष्ण ने अर्जुन के साहस को तथा उसके अंदर के योद्धा को जगाया और उसे मोह त्यागने का उपदेश दिया। वही श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की पावन भूमि में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि वह अपने अंदर चल रहे युद्ध को शांत करे, बाहरी युद्ध तो स्वयं शांत हो जायगा।  ​

हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।

तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

(यदि तुम युद्ध में वीरगति प्राप्त करोगे तो तुम्हे स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी हुए तो धरती पर राज्य का सुख भोगोगे, इसलिए हे कौन्तेय, उठो और दृढ़ता से युद्ध करो।)​ इस श्लोक में श्री कृष्ण ने उपस्थित कर्म की श्रेयता बताई है, कि वर्तमान कर्म से बढ़कर कुछ नहीं। ​

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गीता मनुष्य को कर्म प्रधान बनने का उपदेश देती है। गीता मनुष्य को मोह से प्रेम की तरफ, अधर्म से धर्म की तरफ तथा अकर्मयता से कर्म की तरफ ले जाती है। यह पावन ग्रन्थ गृहस्त को साधना के लिए संन्यास धारण करने को नहीं कहती, बल्कि गृहस्त रहते हुए ही कर्म करते हुए ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग दिखाती है। धर्म के लिए अहंकार, लोभ, मोह आदि का त्याग करना ही गीता का सार है। ​

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हर मनुष्य को किसी उद्देश्य के साथ ही जीवन मिलता है :-  

श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि मनुष्य की देह के लिए रोना अज्ञानता है, क्योकि हम प्रेम मनुष्य देह से नहीं आत्मा से करते हैं और आत्मा अजर अमर है। यह तन नश्वर है, एक न एक दिन नष्ट हो जायगा, इसलिए शोक भुलाकर तथा अपने कर्मो के फल का मोह त्याग कर कर्म करो, युद्ध करो। ​

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“जिस प्रकार हम पुराने वस्त्रो को त्याग कर नए वस्त्रो को धारण करते है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर के नष्ट होने पर नए शरीर को धारण करती है।” जिस मनुष्य ने गीता के सार को अपने जीवन मे अपना लिया उसे ईश्वर की कृपा पाने के लिए इधर उधर नही भटकना पड़ेगा।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थ : तुम्हारा अधिकार कर्म पर है, कर्म के फलों पर नहीं। इसलिए कर्म करो, फल की चिंता छोड़ दो और न ही काम में तुम्हारी आसक्ति हो। (सबसे महत्वपूर्ण यह श्लोक कर्मयोग दर्शन का आधार है।)

यदि जीवन में कभी भी मार्गदर्शन, सहायता और समाधान की इच्छा हो तो अवश्य ही गीता का पाठ करें, श्री कृष्ण आज भी अपने भक्तों की सहायता इसी माध्यम से करते हैं।

 

(स्रोत-  ​ASTROYOGI , NDTV India)

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