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मोहिनी एकादशी: मोह बंधन से करती है मुक्त !

मोहिनी एकादशी वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, इस वर्ष यह 15 मई 2019, दिन बुधवार को मनाई जायेगी, जो भी व्यक्ति इस व्रत को सच्चे मन से करता है वह मनुष्य समस्त मोह बंधन से मुक्त हो जाता है, वैशाख मास की इस एकादशी को श्रेष्ठ माना गया है, जो व्यक्ति इस व्रत को करता है उसके जाने अनजाने में किये गए पापाचरण भी शीघ्र ही समाप्त हो जाते हैं, मोहिनी एकादशी व्रत करने से मनुष्य सभी प्रकार के मोह बंधनों से मुक्त हो जाता है इसके साथ ही उसके द्वारा किए गए कृत्य पाप भी नष्ट हो जाते हैं, परिणामस्वरूप उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मोहिनी एकादशी 2019 तिथि व मुहूर्तः-

मोहिनी एकादशी: बुधवार, 15 मई 2019
तिथि: 26, वैशाख, शुक्ल पक्ष, एकादशी, विक्रम संवत
एकादशी तिथि प्रारम्भ: मंगलवार, 14 मई 2019, 00ः59 बजे से 
एकादशी तिथि समाप्त: बुधवार, 15 मई 2019, 10ः36 बजे तक

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मोहिनी एकादशी नाम का महत्वः-

मोहिनी एकादशी के विषय में जो कथा प्रचलित है वह इस प्रकार है कि समुद्र मंथन के बाद जब देवताओं एंव दानवों के बीच विवाद छिड़ गया था तो भगवान विष्णु ने एक अति सुंदर स्त्री का रूप धारण कर लिया और सभी दानवों को मोहित कर दिया और अमृत कलश लेकर सारा अमृत देवताओं को पिला दिया था, सभी देवता उस अमृत को पीने से अमर हो गये, कहते हैं कि जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था उस दिन वैशाख शुक्ल एकादशी तिथि थी, इसी कारण से भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा मोहिनी एकादशी के रूप में की जाती है।

मोहिनी एकादशी व्रत विधिः-

जो भी व्यक्ति मोहिनी एकादशी का व्रत करता है उसे एक दिन पहले अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही इस व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए, शाम को सूर्यास्त के बाद से ही भोजन नहीं करना चाहिए और रात में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए, एकादशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्य होकर स्नान कर लेना चाहिए, अगर संभव हो तो पानी में गंगाजल डालकर नहाना चाहिए, स्नान के पश्चात् साफ वस्त्र धारण कर विधिवत भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

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विष्णु जी की मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें, इसके पश्चात् कलश की स्थापना करें, लाल वस्त्र बांधकर कलश का पूजन करें, उसके ऊपर भगवान की प्रतिमा रखें, प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध करें फिर नये वस्त्र पहनाएं, इसके बाद पुनः धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए और नैवैद्य तथा फलों का भोग लगाना चाहिए, इसके बाद प्रसाद का वितरण करें और ब्राह्ममणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा अवश्य दें, रात्रि के समय भगवान का भजन कीर्तन करें और दूसरे दिन ब्राह्ममण भोजन तथा दान के पश्चात् ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।

इस व्रत को शुद्ध मन से करें, मन में किसी भी प्रकार का पाप विचार नहीं आना चाहिए, व्रती को पूरे दिन निराहार रहना चाहिए, यदि न रहा जा सके तो फल ले लें, शाम की पूजा के बाद फलाहार करना चाहिए। 

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