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नारद जयंती: क्यों हैं नारद लोक कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील ?

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास में नारद जयंती मनाई जाती है, इस वर्ष नारद जयंती का पर्व 19 मई 2019, रविवार को है, हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्रों में से एक नारद मुनि माने गए हैं, इन्हें विष्णु जी के अनन्य भक्तों में से एक माना गया है, वह स्वयं भी वैष्णव हैं और वैष्णवों के परमाचार्य एंव मार्गदर्शक हैं, नारद मुनि हर युग में भगवान की भक्ति और उनकी महिमा का विस्तार करते हुए लोक कल्याण के लिए सर्वदा सर्वत्र विचरण किया करते हैं, संकीर्तन व भक्ति के ये आद्य-आचार्य हैं, नारद मुनि की वीणा भगवन जप ’महती’ के नाम से विख्यात है, उस वीणा से ’नारायण-नारायण’ की ध्वनि निकलती रहती है, वह ब्रह्म-मुहूर्त में सभी जीवों की गति देखते हैं उन्हें अजर अमर माना जाता है।

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धर्म के प्रचार के लिए रहते हैं तत्परः-

भगवद्-भक्ति की स्थापना तथा प्रचार के लिए नारद मुनि सदैव तत्पर रहते हैं, उन्होंने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया, देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं, इसी कारण सभी युगों में, समस्त विद्याओं में, सब लोकों में, समाज के सभी वर्गों में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है, केवल देवताओं ने ही नहीं, दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है, समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है।

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सभी भक्तों में सर्वश्रेष्ठ भक्तः-

भगवान के भक्तों में सर्वश्रेष्ठ भक्त हैं देवर्षि नारद, वह भगवान की भक्ति और माहात्म्य के विस्तार के लिए अपनी वीणा की मधुर तान पर भगवद्गुणों का गान करते हुए निरंतर विचरण किया करते हैं, नारद मुनि को भगवान का मन कहा गया है, इनके द्वारा प्रणीत भक्तिसूत्र में भक्ति की बड़ी ही सुंदर व्याख्या है, कहा जाता है कि आज भी नारद जी अप्रत्यक्ष रूप से भक्तों की सहायता करते रहते हैं, सभी भक्तों की बात वह भगवान तक पहुँचाते हैं जिससे उनके कपट का निवारण हो सके, भक्त प्रहलाद, भक्त अम्बरीष, ध्रुव आदि भक्तों को उपदेश देकर इन्होंने ही भक्तिमार्ग में प्रवृत्त किया, उनकी समस्त लोकों में अबाधित गति है, संसार के मंगल के लिए ही इनका मंगलमय जीवन है, वे ज्ञान के स्वरूप, विद्या के भण्डार, आंनद के सागर तथा सब भूतों के अकारण प्रेमी और विश्व के सहज हितकारी हैं, हिन्दू संस्कृति के दो अमूल्य ग्रंथ रामायण और भागवत के प्रेरक नारद का जन्म लोगों को सन्मार्ग पर मोड़ कर भक्ति के मार्ग पर खींचकर, विश्वकल्याण के लिए हुआ था।

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