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गुप्त नवरात्रि: माता को प्रसन्न करने का एक गुप्त अनुष्ठान!

गुप्त नवरात्री मुहूर्त :-

प्रारंभ : 13 जुलाई 2018 (शुक्रवार)

समापन : 21 जुलाई 2018 (शनिवार)

घटस्थापना मुहूर्त : 08:17 से 10:09 (13 जुलाई 2018) 

समयकाल : 1 घंटा 52 मिनट

गुप्त नवरात्री का महत्व :-

सनातन धर्म में पूजा, व्रत, अनुष्ठान आदि का अत्यंत महत्व है। इनमे भी नवरात्री के नौ दिनों की अपनी ख़ास विशेषता है। वर्ष में चार नवरात्रियाँ आती हैं, जिनमे से दो नवरात्री अश्विन मास और चैत्र मास की नवरात्री सबसे प्रमुख होती हैं। सामान्यतया इन नवरात्रियों को प्रकट नवरात्री कहते हैं, और ज़्यादातर लोग इन्ही नवरात्रियों के बारे में जानते हैं। गुप्त नवरात्री सामान्यतः तांत्रिकों तथा साधकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है, क्योकि इस दौरान वे गुप्त साधना से सिद्धियां प्राप्त करते हैं।

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माघ मास और आषाढ़ मास में आने वाली नवरात्रियों को गुप्त नवरात्री कहा जाता है। सामान्यजन अर्थात गृहस्त के लिए भी ये व्रत फलदायी होते हैं। जो भी इन गुप्त नवरात्रियों को जतन से तथा कड़े नियमों का पालन करके करता है, उसे जीवन के सारे सुख मिलते हैं और हर कामना की पूर्ति होती है।

क्यों कहा जाता है इसे 'गुप्त' नवरात्री? :-

यह नवरात्री गुप्त नवरात्री इसलिए कहलाती है क्योकि इन दिनों की साधना और व्रत गुप्त रहकर किये जाते हैं। इन्हे किसी को बताकर नहीं किया जाता। क्योकि गुप्त रहकर की गयी साधना से ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस गुप्त साधना से ही तांत्रिक तथा साधक भी चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त कर लेते हैं। इस नवरात्री में खान पान, रहन-सहन तथा आचरण का ख़ास ध्यान देना पड़ता है। गुप्त शक्तियों की प्राप्ति के लिए दस महाविद्या अर्थात- माँ काली, देवी तारा, त्रिपुरा सुंदरी, माता भैरवी, माँ ध्रुमावती, माता बगलामुखी, माँ मातंगी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता और कमला देवी की उपासना करनी चाहिए।  

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कैसे की जाती है गुप्त नवरात्री:-

गुप्त नवरात्री के व्रत अन्य नवरात्री के व्रतों की भांति ही रखे जाते हैं। कलश स्थापना, नौ शक्ति रूपों की आराधना, यज्ञ तथा पूजा प्रकट नवरात्री की ही भांति हो सकता है। किन्तु जिन साधकों को विशेष शक्ति की प्राप्ति करनी होती है वह ये व्रत अत्यंत कठोर नियमों से करते हैं। तथा वे माता काली के दस रूपों अर्थात दस महामाया की उपासना करते हैं। किन्तु बहुत सावधानी से ही ये उपासना की जानी चाहिए अन्यथा इसका उल्टा प्रभाव भी पड़ सकता है। यह व्रत गुप्त रहकर ही किया जाना चाहिए, इस व्रत में कई लोग मौन व्रत धारण कर लेते हैं।

इस व्रत के दौरान भूमि पर ही विश्राम करना चाहिए तथा बिस्तर का त्याग कर देना चाहिए। इन पूरे नौ दिनों में अन्न तथा नमक भी नहीं खाया जाता। साधक को यह व्रत फलाहार ही करना चाहिए।

 

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