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मंगला गौरी व्रत : जानिए इस व्रत का प्रभाव और व्रत की विधि!

मंगला गौरी व्रत की तिथि :-

31 जुलाई 2018 (मंगलवार) 

तिथि: 03, श्रवण कृष्ण पक्ष, तृतीया, विक्रम सम्वत

मंगला गौरी व्रत का महत्व :-

मंगला गौरी का व्रत मुख्यतः कुंवारी कन्याओं द्वारा अच्छे पति के लिए रखा जाता है, किन्तु विवाहित महिलाएं भी इस व्रत को सुखी दाम्पत्य जीवन तथा पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। यह व्रत अत्यंत प्रभावशाली है। सावन का महीना(श्रवण मास) शिव तथा पार्वती दोनों को ही अत्यंत प्रिय है, अतः यह महीना सोलह सोमवार तथा मंगला गौरी के व्रत के लिए अत्यंत शुभ हैं। जो भी कन्या इस व्रत को विधिपूर्वक करती है उसे अच्छा वर तथा सुखी परिवार मिलता है।

यदि कन्या की कुंडली में विवाह में बाधा हो अथवा पति के लिए कोई दोष हो तो यह व्रत करने से उसकी सारी बाधाएं दूर होती हैं। यदि विवाहित महिलाएं इस व्रत को निष्ठापूर्वक करे तो उनके पति तथा संतानों की आयु बढ़ती है तथा उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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मंगला गौरी व्रत की विधि :-

प्रातः काल उठकर के स्नान आदि कर के शुद्ध श्वेत वस्त्र पहनने चाहिए। जल, रोली, मोली, चावल, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, मिठाई, पान इत्यादि सामान एकत्रित कर के एक थाल में ले कर के अच्छी सी चौकी बनाएं। उस पर माँ भगवती गौरी की तस्वीर या प्रतिमा रखें उस प्रतीमा की पूजा करें। प्रतीमा के सामने एक कलश की स्थापना करें। तत्पश्चात गणेश जी तथा नवग्रहों का पूजन करें। अब सर्वप्रथम जल से माता की प्रतिमा को स्नान कराएं, अच्छे वस्त्र पहनाएं। लाल चंदन का टीका लगाएं, अक्षत चढ़ाएं रक्त पुष्प अर्थात लाल पुष्प चढ़ाएं। उसके बाद धुप दीप दिखाएँ। दीप आटे का होना चाहिए और सोलह की संख्या में होना चाहिए। मंगला गौरी के व्रत में जो भी सामान अर्पित करें सोलह की संख्या में ही करें- जैसे फल, फूल, मेवा, मिठाइयां, पान आदि। इस से शीग्र और उत्तम फल मिलता है। किसी ब्राह्मण से भी पूजन करवा सकते हैं। ऐसा हर श्रावण मास में करने से सुयोग्य वर, सुखी दाम्पत्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

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इस प्रकार 5 वर्ष तक श्रावण के महीने में हर मंगलवार को माता गौरा का व्रत करें। और पांचवें वर्ष में अंतिम मंगलवार को माँ गौरा का विधिवत श्रृंगार करके, सभी संगरिया उन्हें अर्पण करके आप पूजन करें और अंत में 16 ब्राह्मण सपत्नी को आमंत्रित करके भोजन करा कर के दक्षिणा दे कर के जो भी सामान माता को अर्पित किया है वो सभी ब्राह्मण को दान दे दें। और कन्या पूजन कर के 16 कन्या को भी भोजन कराएं। ऐसा करने से कन्या को सुयोग्य वर, समय पर विवाह, सुखी दाम्पत्य तथा स्वस्थ संतान की प्राप्ति होती है।

 

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