कांवड़ यात्रा बड़ी ही कठिन किन्तु रोचक यात्रा है, जो लोग इस यात्रा में जाते हैं उनका तन मन एकदम शुद्ध हो जाता है। यह सावन का महीना बहुत मनोहारी होता है, चारों तरफ हरियाली छाई रहती है। और ऐसे मौसम में नंगे पाँव पैदल चल कर सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करना यात्री के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
सभी कांवरिये भगवा रंग में रंगे होते हैं, जो की जीवन में ऊर्जा, उत्साह, साहस तथा गतिशीलता बढ़ाता है। कांवड़ यात्रा के कुछ ख़ास नियम होते हैं जिन्हे हर कांवरिये को पूरा करना होता है, इन नियमों की अनदेखी से उनकी यात्रा अधूरी अथवा असफल रह जाती है। आइये जानते हैं क्या हैं कांवड़ यात्रा के नियम-
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यह सब नियम कांवरिये अपनी संकल्प शक्ति से ही पूरे कर पाते हैं। पावों में चलते चलते छाले पड़ जाते हैं किन्तु शिव भक्तों को उनकी भक्ति की शक्ति ही चलने का बल देती है। कांवड़ के भी विभिन्न प्रकार होते हैं-
झूला कांवड़ :-
झूला कांवड़ एक बांस के डंडे पर दोनों ओर कांवड़ बाँध के बनाई जाती है। दोनों कांवड़ों में गंगाजल भरा जाता है, यात्री विश्राम करते समय इसे ज़मीन पर नहीं रख सकते। भोजन अथवा विश्राम करते समय कांवड़ को किसी ऊँचे स्थान पर टांग दिया जाता है।
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खड़ी कांवड़ :-
खड़ी कांवड़ यात्रा अत्यंत कठिन है, क्योकि इसमें कांवड़ को न तो ज़मीन पर रखते हैं न ही टांगते हैं। जब भी कांवड़िये को विश्राम करना हो अथवा भोजन करना हो तब दूसरे कांवड़िये को यह कावड़ उठानी होती है।
झांकी कांवड़ :-
जैसा की नाम से ही पता चलता है, यह यात्रा एक बड़ी झांकी निकाल के करी जाती है। इस यात्रा में एक बड़ा ग्रुप भाग लेता है, जिसमे शिव की बड़ी सी मूर्ति को जीप या किसी और खुली गाडी में रख कर गीत संगीत के साथ नाचते हुए यात्रा को निकाला जाता है। यह सभी के आकर्षण का केंद्र होती है।
डाक कांवड़ :-
इसमें भी कावरियों का एक समूह होता है जो जीप अथवा ट्रक में सवार रहता है। यह कांवड़ यात्रा जल लाने के बाद जब मंदिर की दूरी 36 घंटे या 24 घंटे की रह जाती है तब ये गाडी से उतर कर कांवड़ को लेकर भागते हैं। तथा दौड़ते हुए किसी दूसरे कांवड़ को पकड़ते हैं, इसी प्रकार दौड़ते हुए यह यात्रा एक दूसरे को कांवड़ पकड़ते हुए पूरी की जाती है।
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