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नाग पंचमी: इस दिन करें काल सर्प योग का निवारण!

नाग पंचमी = 31 अगस्त, 2018 (शुक्रवार)

पंचमी तिथि आरम्भ = 22:09​ बजे (30 अगस्त 2018)

पंचमी तिथि समाप्त = 22:11​ बजे (31 अगस्त 2018)

कब मनाई जाती है नाग पंचमी? :-

गुजरात में नाग पंचमी गुजराति कैलेंडर के अनुसार श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। कुछ स्थानों में यह एक त्यौहार की तरह मनाई जाती है। नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा का अत्यंत महत्व है। ज़्यादातर जगह पर नाग को दूध पिलाने की प्रथा बन गयी है, जो कि उचित नहीं है क्योकि नाग पंचमी के दिन नागों को दूध से स्नान कराने का नियम है। दूध पिलाना नागों के लिए हानिकारक है, क्योकि वह उनका आहार नहीं है और उन्हें पचता नहीं जिससे की उनकी मृत्यु भी हो सकती है।

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नाग पंचमी का महत्व :-

पौराणिक काल से ही नागों को देवता का स्थान प्राप्त है, और नाग पूजा से शक्ति प्राप्त करने के कथाएं भी रामायण तथा महाभारत में वर्णित हैं। नाग पंचमी के दिन व्रत करके नाग देवता की पूजा करने वाले व्यक्ति को सर्पदंश का भय नहीं रहता। मान्यता है की नाग देवता को दूध चढाने से उनका घर तथा परिवार सर्प के कोप से बच जाता है, तथा उन पर नाग कृपा बनी रहती है। इस दिन आस्तिक मुनि की भी पूजा की जाती है, क्योकि उन्ही के कारण नाग प्रजाति का विनाश होने से बच गया था। सर्प पालने वाले सपेरों के लिए यह दिन एक त्यौहार की तरह होता है, उनके अनुसार इस दिन सर्प पूजा से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। घर के प्रवेश द्वार पर इस दिन नाग का चित्र लगाने की भी परंपरा है, मान्यता है की इससे नाग उस घर के रक्षक बन जाते हैं और घर किसी भी प्रकार के अपशगुनों से सुरक्षित हो जाता है। 

नाग पंचमी से जुडी कथाएं :-

हिन्दू पुराण के अनुसार ऋषि कश्यप की 13 पत्नियां थीं, जिनमे से एक पत्नी कद्रू से नाग संतानों की उत्पत्ति हुई थी। उन्होंने हज़ार नाग पुत्रों को जन्म दिया था, जिनमे से आठ नाग अत्यंत दिव्य और महत्वपूर्ण हैं- अनंत, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंखपाल और कुलिक। ये आठ नाग सभी नागों में श्रेष्ठ हैं, जिनमे से अनंत विष्णु जी की सेवा में हैं और शेषनाग नाम से भी जाने जाते हैं। वासुकि जी शिव जी की सेवा में हैं तथा समुद्र मंथन में वासुकि जी की ही नेकी बनाई गयी थी।  

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एक बार परीक्षित को एक श्राप के कारण नागराज तक्षक ने डस लिया था, जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। इससे उसका पुत्र जन्मेजय क्रोधित हो गया और उसने समस्त सर्प जाती के विनाश के लिए एक सर्पमेघ यज्ञ का आयोजन किया। यह इतना विशाल और प्रभावशाली यज्ञ था की इससे समस्त नाग जाती एक एक कर हवन कुंड में गिर के भस्म हो रही थी। अधिकतर सर्प जातियां नष्ट हो चुकीं थीं, की तभी वासुकि जी के परामर्श से उनकी बहिन जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि यज्ञ में पहुंचे। और जन्मेजय तथा उसके यज्ञ की नाना प्रकार से प्रशंसा करने लगे। इससे जन्मेजय प्रसन्न हो गया और उसने आस्तिक मुनि को मनचाहा वरदान मांगने को कहा। आस्तिक मुनि ने यह विनाश रोक देने का वरदान मांग लिया, और जन्मेजय को अपने वचन के अनुसार यह यज्ञ रुकवाना पड़ा। इससे प्रसन्न हो नाग देवता ने आस्तिक मुनि को वरदान दिया की जो कोई भी पंचमी के दिन आस्तिक मुनि की पूजा करेगा अथवा उनका नाम भी लेगा सर्प उसका कुछ भी अनिष्ट नहीं करेंगे और यहीं से नाग पंचमी मानाने की प्रथा आरम्भ हुई।

केवल नागपंचमी के दिन दर्शन :-

भोलेबाबा की नगरी उज्जैन में एक मंदिर ऐसा है जिसके कपाट केवल नागपंचमी के दिन खुलते हैं। यह है नागचंद्रेश्वर मंदिर, जहाँ भोलेबाबा पार्वती सहित नाग शय्या पर विराजमान हैं। यह अपने तरह का विश्व का एकमात्र मंदिर है, क्योकि केवल श्री हरी विष्णु को ही शेषनाग की शय्या पर दिखाया जाता है। किन्तु यहां भगवान् शिव दसमुखी सर्प की शय्या पर विराजमान हैं और उनके गले तथा भुजाओं पर भुजंग लिपटे हुए हैं। कहा जाता है इस मंदिर में स्वयं नागराज तक्षक विराजते हैं। तक्षक ने भगवान शिव की कृपा के लिए उनकी कठोर तपस्या की थी, तब शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें अमरता का वरदान दिया था और उन्हें अपने सानिध्य में रखा था। तभी से वे यहां विराजमान हैं, वे चाहते थे की उनके एकांत में विघ्न न हो इसलिए यह मंदिर वर्षभर बंद रहता है और केवल नागपंचमी के दिन खुलता है।

 

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