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अजा एकादशी: इस व्रत के प्रभाव से रूठी हुई लक्ष्मी वापस आ जाती है!

व्रत मुहूर्त :-

15 अगस्त 2020 (शनिवार)

एकादशी तिथि प्रारम्भ = 02:01 (14 अगस्त 2020)

एकादशी तिथि समाप्त = 02:20 (15 अगस्त 2020)

पारण समय = 05:51 से 08:29 (16 अगस्त 2020)

जैसा कि हम सभी जानते हैं एकादशी का व्रत अत्यंत पुण्यदायी है। महाराज युधिष्ठिर ने अपने परिवारजनों सहित इन एकादशी के व्रतों को युद्ध में हुए पापों से मुक्ति पाने के लिए किया था। एकादशी के पावन व्रत वर्ष में 24 बार आते हैं किन्तु अधिकमास या मलमास में इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है।

इस दिन व्रती व्रत रखकर भगवान श्री हरी विष्णु की पूजा अर्चना और रात्रि जागरण करता है, जिससे उसके सभी पाप और कष्ट मिट जाते हैं।

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अजा एकादशी की महिमा अपरम्पार है, इस व्रत के करने से राजाओं को उनका छिना हुआ राज्य वापस मिल गया और अंत में बैकुंठ धाम में उन्हें स्थान मिला। क्योकि एकादशी के व्रत करने से मनुष्य का चित्त शुद्ध हो जाता है, उसकी बुद्धि ईश्वर में स्थापित होती है, ज्ञान का प्रकाश उसके अंतर्मन को प्रज्वलित करता है। इस वर्ष अजा एकादशी 6 सितम्बर 2018 को मनाई जायगी।

पूजन और व्रत विधि :-

1. जो भी व्यक्ति इस व्रत को करने का इच्छुक है उसे दशमी के दिन से ही इस व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। दशमी के दिन व्यक्ति को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।

2. एकादशी के दिन प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्मों की पश्चात् स्नान करना चाहिए।

3. स्नान के पश्चात् मंदिर की साफ सफाई करके वहां भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा चित्र स्थापित करना चाहिए।

4. उनके सामने घी का दीपक प्रज्वलित करें, तत्पश्चात रोली, चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से उनका पूजन करें।

5. पूजा के पश्चात् विष्णु सहस्त्रनाम का जाप अथवा गीता का पाठ करना उचित रहता है।

6. व्रत वाले दिन व्रती को निराहार ही रहना चाहिए किन्तु जो लोग निराहार नहीं रह सकते वह फलों का सेवन कर सकते हैं।

7. व्रत वाले दिन रात्रि में जागरण कर भगवान विष्णु का ध्यान और भजन करना चाहिए।

8. द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात् स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए। एकादशी के व्रत के दिन चावल, चने और बैगन जैसी चीजें खाने से बचें।

अजा एकादशी का महत्व:-

अजा एकादशी एक श्रेष्ठ व्रत है, इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य की इन्द्रियां, व्यव्हार, मन और चेतना संयमित होती है। यह व्रत मनुष्य को अधर्म और अनीति से उठकर निति और सत्य की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है। और जब मनुष्य के पाप समाप्त होते हैं तब वह बैकुंठ धाम में अपना स्थान बना लेता है। उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन मरण के बंधनों से आज़ादी मिलती है। इस व्रत का प्रभाव अश्वमेघ यज्ञ, तीर्थ स्थान और किसी भी तपस्या से अधिक है। अतः जो मनुष्य ग्रहस्त हैं उन्हें संसार के भाव बंधनों से मुक्ति के लिए एकादशी के व्रत अवश्य करने चाहिए।

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व्रत कथा:-

सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र जी का नाम हर कोई जानता है। वह बहुत बड़े सत्यवादी थे, उनकी प्रशंसा बड़े बड़े ऋषि करते थे। एक बार तो उन्होंने स्वप्न में दिए वचन के लिए अपना सम्पूर्ण राज पाठ दान दे दिया। जिससे उनकी पत्नी तथा पुत्र भी बेघर हो गए, उसके बाद उन्होंने आजीविका के लिए एक शमशान घाट पर पहरेदार का कार्य करना शुरू किया और उनकी पत्नी एक रानी की दासी बन गयी। किन्तु नियति को इतने से भी संतोष नहीं हुआ और एक दिन उनके पुत्र को सांप ने डस लिया, जिससे उसकी मौत हो गयी। उनकी पत्नी रोते बिलखते उसको शमशान घाट पर अंतिम संस्कार के लिए ले गयी, किन्तु पहरेदार बने हरिश्चंद्र जी ने उनको अंतिम संस्कार की क्रिया करने से रोक लिया। उन्होंने कहा पहले कर जमा करो तभी तुम अपने पुत्र को यहां दफना सकती हो। उन्होंने पुत्र मोह के आगे अपने कर्तव्य को रखा, और जब उनकी पत्नी ने कर स्वरुप अपने हाथों के कंगन दिए तभी उन्होंने उसे दफ़नाने के लिए ज़मीन दी। उनके इस दृढ संकल्प को देखकर ऋषि गौतम ने उन्हें अजा एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया। राजा ने इस व्रत को किया और उस व्रत के प्रभाव से उनको उनका खोया हुआ राज्य प्राप्त हो गया और अंत में परिवार सहित उनको परमधाम की प्राप्ति हुई।  

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