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अष्टम नवरात्रि: जानिए माँ महागौरी की पूजा का महत्व एवं पौराणिक कथा !

हिन्दुओं के सबसे पावन पर्व नवरात्रि की अष्टमी यानि आठवें दिन माँ महागौरी की पूजा होती है। माता गौरी की पूजा से अमोघ शक्ति की प्राप्ति होती है, इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और भविष्य में भी भक्त पाप की राह त्याग कर सत्य के मार्ग पर चलते हैं, इस प्रकार भक्तों के अक्षय पुण्य संचित होने लगते हैं और अंत में उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है। 

माँ महागौरी की पौराणिक कथा:-

माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कड़ी तपस्या की थी और उनकी हज़ारों वर्ष की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया था। एक कथा के अनुसार इस तपस्या के कारण माता का शरीर काला पड़ गया था जिसके कारण शिवजी ने उनके शरीर को गंगाजल से धोया था और माता विद्युत् के समान कांतिमय हो गयीं और उनका वर्ण गौर हो गया और इसीलिए उन्हें गौरा नाम से जाना जाता है।

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किन्तु एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार, माता पार्वती ने जब महिसासुर का वध करने के लिए काली रूप धरा था तब उनका शरीर क्रोध की ज्वाला में जलकर काला हो गया था। और एक दिन भगवान शंकर ने उन्हें परिहास में काली बोल दिया, इस से देवी नाराज़ हो गयीं और कैलाश छोड़कर चलीं गयीं। वहां से जाने के बाद उन्होंने पृथ्वी पर कई वर्षों तक तप किया और अपने तपोबल से उन्होंने अपना गौर वर्ण वापस पा लिया। तप के प्रभाव से उनका सारा शरीर कांतिमय हो गया, उनके वर्ण के साथ साथ उनके वस्त्रों और आभूषणों से भी धवल प्रकाश अपनी छठा बिखेरने लगा। कई वर्ष बीत जाने के बाद शंकर अपनी पत्नी को मनाने उनके पास पहुंचे उनका गौर रूप देख कर आश्चर्यचकित हो गए।

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इसी तप के समय एक भूखा शेर उनके पास उनको अपना शिकार बनाने पंहुचा। किन्तु उनके तप के प्रभाव से उसका मन परिवर्तित हो गया और वह उनके पास ही उनका तप पूर्ण होने तक बैठा रहा। जब माता ने अपनी आँखे खोली तो उस शेर को अपने पास बैठा पाया, शेर ने भी माता के साथ तप ही किया था क्योकि उसने भी इतने वर्षों से कुछ खाया नहीं और माता के समीप ही बैठा रहा। माता उसे देखकर अत्यंत प्रसन्न हुईं और उसे शक्तियां प्रदान कर के अपनी सवारी बना लिया।

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माता का स्वरुप :-

माता की दो सवारियां हैं एक शेर और दूसरा वृषभ। माता की चार भुजाएं हैं जिनमे से दायीं तरफ की ऊपरी भुजा अभय मुद्रा में और नीचे वाली भुजा में त्रिशूल शोभायमान है। बायीं तरफ की नीचे वाली भुजा में डमरू सुसज्जित है और ऊपरी भुजा अभय मुद्रा में है। जो भी स्त्री माता के इस रूप की पूजा भक्ति भाव से करती है माता उसके सुहाग की रक्षा करती है। कुंवारी कन्याएं यदि माता की उपासना श्रद्धा से करतीं हैं तो उनको मनचाहा सुयोग्य वर मिलता है। तथा जो पुरुष माता की पूजा करते हैं उनके दुखों का नाश होता है तथा घर परिवार भी आनंद से भर जाता है।

माँ महागौरी की पूजन विधि :-

माता की पूजा अष्टमी के दिन की जाती है, इस दिन महिलाएं माता को सुहाग की निशानी भेंट करती हैं। सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर लाल या सफ़ेद वस्त्र बिछा कर महागौरी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें, आप महागौरी यंत्र भी स्थापित कर सकते हैं। माता को जल से शुद्ध कर के नवीन वस्त्र पहनाएं और उसके बाद सफ़ेद पुष्प अर्पित करें। मंदिर में घी का दीपक जलाकर धूप-दीप से माँ का पूजन करें और माँ को रोली तथा चंदन का तिलक लगाएं। माता के पूजन में पान, सुपारी, नारियल, चुनरी के अलावा एक श्रृंगार पिटारी अवश्य रखें। चूँकि माता सुहाग तथा सौंदर्य देने वालीं हैं अतः माता को सिन्दूर भी अवश्य चढ़ाएं। हाथों में श्वेत पुष्प लेकर माता का ध्यान करें। नवरात्रि की अष्टमी को कन्या पूजन भी अत्यंत शुभ माना जाता है। कन्याओं की संख्या 5, 7 अथवा 9 होनी चाहिए।

माता का ध्यान मन्त्र :-

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥

पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।

वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।

कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥

स्तोत्र :-

सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।

ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥

सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।

डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥

त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।

वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

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