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पापांकुशा एकादशी: कैसे मिलता है यमलोक के भय से छुटकारा!

पापांकुशा एकादशी व्रत मुहूर्त :-

एकादशी = 20 अक्टूबर 2018, शनिवार
एकादशी पारण समय = 07:39 से 09:54 (21 अक्टूबर 2018)
एकादशी तिथि प्रारम्भ = 08:27 बजे (19 अक्टूबर 2018)
एकादशी तिथि समाप्त = 10:31 बजे (20 अक्टूबर 2018)

 पापांकुशा एकादशी महत्व :- 

पापांकुशा एकादशी का व्रत आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को होता है। इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ रूप की पूजा होती है, इस एकादशी के व्रत के पुण्यस्वरूप मनुष्य को उसके पापों से मुक्ति मिलती है तथा यमलोक के भय से भी छुटकारा मिलता है। उसे श्री हरी विष्णु के धाम में स्थान मिलता है तथा मृत्युलोक के जन्म के बंधनों से मुक्ति मिलती है। इस एकादशी के व्रत से दस हज़ार यज्ञों के बराबर फल मिलता है। जो पुण्य ऋषि मुनि कठिन तपस्या से अर्जित करते हैं, वही पुण्य इस व्रत से सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। इस व्रत में दान का अत्यधिक महत्व है, दान देने से आप अपने दुःख भी दान कर देते हैं। इसलिए आप एकादशी के दिन वस्त्र, गाय, अनाज आदि का दान दे सकते हैं। 

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पापाकुंशा एकादशी व्रत विधि :-

प्रत्येक एकादशी की भांति इस एकादशी में भी दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का पालन शुरू कर देना चाहिए। अर्थात दशमी तिथि से ही गेहूं, उड़द, मूंग, चना आदि अनाजों का सेवन नहीं करना चाहिए। दशमी तिथि को तामसिक प्रवृत्ति के भोजन तज्य हैं अर्थात मांस, मदिरा, लहसुन और प्याज जैसे गरिष्ठ भोजन ग्रहण नहीं करने चाहिए।

एकादशी की तिथि प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्म आदि से निपट कर स्नान करना चाहिए तथा इसके पश्चात् स्वच्छ स्थान पर कलश स्थापना कर एक चौकी पर लाल कपडा बिछा कर विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। तथा श्री हरी का षोडशोपचार विधि से पूजन अर्चन करना चाहिए। इसके लिए घी का दीपक, धूप, रोली, अक्षत, पुष्प, मेवे, फल आदि श्री हरी को अर्पित करने चाहिए। इन सब के बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ तथा पापांकुशा एकादशी की व्रत कथा पढ़नी चाहिए।

व्रत का पारण द्वादशी के दिन ब्राह्मणो को भोजन करा कर करना चाहिए, किन्तु यदि आप पूर्ण व्रत निराहार रहने में सक्षम न हों तब एकादशी के दिन एक समय भोजन कर सकते हैं।

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पापांकुशा एकादशी  व्रत कथा :-

प्राचीन काल में एक बहेलिया था जिसका नाम था क्रोधन, वह विंध्य के पर्वत में रहा करता था। अपने नाम की ही भांति वह अत्यंत क्रूर था, उसने अपना सारा जीवन नितांत पापों में व्यतीत कर दिया। किन्तु जब उसका अंत समय आया तो उसके मन में मृत्यु का भय जाग उठा, उसे सोते जागते भयानक यमदूत दिखाई देने लगे। इस से घबराकर वह एक दिन ऋषि अंगिरा के आश्रम आ गया और उनसे हाथ जोड़कर कहने लगा- हे ऋषिवर! मैंने अपना पूर्ण जीवन केवल पाप कर्मों में ही व्यतीत कर दिया। मेरा उद्धार हो सके इसके लिए मेरे पास कोई संचित पुण्य नहीं हैं। क्या कोई उपाय है की अंत समय में भी मेरा उद्धार हो सके और मोक्ष की प्राप्ति हो सके। ऋषि अंगीरा ने सारी बात सुनकर कहा की केवल पापांकुश एकादशी का व्रत करने से ही तुम्हे तुम्हारे पापों से मुक्ति मिल सकती है।

यह सुनकर क्रोधन ने बड़ी तन्मयता और श्रद्धा से पापांकुश एकादशी का व्रत किया। महर्षि के कहे अनुसार ही उसे उसके किये पापों से मुक्ति मिल गयी, उसका मन निर्मल हो गया और उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई।

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