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उत्पन्ना एकादशी: जानें कैसे हुई थी देवी एकादशी की उत्पत्ति?

उत्पन्ना एकादशी का मुहूर्त :-

एकादशी व्रत तिथि – 22 नवम्बर 2019 (सोमवार)

एकादशी तिथि प्रारंभ – 09:01 बजे से (22 नवम्बर 2019)

एकादशी तिथि समाप्त – 06:24 बजे (23 नवम्बर 2019)

पारण का समय  – 01:10 से 03:15 बजे तक (23 नवम्बर 2019)

तिथि: 10, मार्गशीर्ष, कृष्ण पक्ष, दशमी, विक्रम सम्वत

एकादशी व्रत का महत्व और लाभ प्रत्येक मनुष्य को जानना चाहिए क्योकि इस में उनकी मुक्ति का मार्ग छिपा है। प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को एकादशी होती है, अर्थात एक माह में दो एकादशियाँ होती हैं। इस प्रकार एक वर्ष में कुल 24 एकादशियाँ होती हैं और जब अधिकमास या मलमास होता है तब इनकी संख्या 26 हो जाती है। अधिकमास अथवा मलमास तेरह वर्षों में एक बार होता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, एकादशी एक देवी का नाम भी है जिनकी उत्पत्ति भगवान विष्णु जी के ही अंश से हुई थी। 

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किस दिन से करें एकादशी का उपवास आरम्भ?:-

जो व्यक्ति एकादशी का उपवास रखना चाहता है उसे उत्पन्ना एकादशी से इसका प्रारम्भ करना चाहिए। उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को होती है, चूँकि इसी दिन से एकादशी के व्रतों का आरम्भ हुआ माना जाता है। इसलिए इस दिन से ही एकादशी के व्रत मनुष्य को उठाने चाहिए। वर्ष 2019 में उत्पन्ना एकादशी का व्रत 22 नवम्बर को है। 

एकादशी की व्रत पूजा विधि :-

प्रत्येक एकादशी के लिए उपवास की तैयारी दशमी तिथि से ही प्रारम्भ हो जाती है। चूँकि दशमी की रात्रि से ही एकादशी का भी आरम्भ हो जाता है इसलिए दशमी को एक समय ही सात्विक भोजन करना चाहिए। भोजन के पश्चात दातुन अच्छे से करनी चाहिए जिससे की कोई अन्न का अंश मुँह में न रहे। इसके बाद भोजन न करें, रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें एवं भूमि पर ही सोएं। एकादशी की प्रातः जल्दी उठें व नित्यकर्म आदि से निपट कर स्नान करें। फिर भगवान के सामने व्रत का संकल्प लें, विष्णु जी का षड्शोपचार से पूजन करें व व्रत कथा पढ़ें। व्रत वाले दिन परनिंदा, ईर्ष्या आदि जैसे बुरे कर्मों से दूर रहना चाहिए। दिन भर हरी का नाम लें व रात्रि में भजन कीर्तन करें। द्वादशी के दिन प्रातःकाल ब्राह्मण अथवा किसी निर्धन व्यक्ति को भोजन कराएं तथा दान-दक्षिणा दें। और इसके पश्चात व्रती स्वयं भी भोजन ग्रहण करे। पूर्ण विधि से किया व्रत अत्यंत फलदायी होता है।

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उत्पन्ना एकादशी का महत्व:-

जो कोई भी व्यक्ति एकादशी के सभी व्रतों को निष्ठापूर्ण करता है उसका स्थान बैकुंठ लोक में निश्चित हो जाता है। एकादशी एक शक्तिशाली व्रत है जिसे करने से मनुष्य का मन निर्मल हो जाता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। यह एक पापनाशक व्रत है, इसके समान पुण्यदायक व्रत कोई नहीं। एकादशी के दिन उपवास रखकर रात्रि जागरण करने से व्रती श्री हरी की अनुकम्पा का भागी बनता है।

जो व्यक्ति पूर्ण दिन का उपवास रखने में असमर्थ हो वह दिन में एक समय भोजन कर सकता है, किन्तु भोजन में अन्न शामिल नहीं होना चाहिए। 

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा :-

भगवान कृष्ण ने पांडव पुत्र युधिष्ठिर को इस एकादशी की कथा तथा महत्ता बताई थी। कथा के अनुसार एक राक्षस था जिसका नाम मुर था। वह अत्यंत शक्तिशाली था, अपनी शक्तियों से उसने देवताओं से उनका राज्य छीन लिया। सभी देवता मुर से रक्षा के लिए भगवान विष्णु जी की शरण में गए। भगवान विष्णु ने देवताओं की रक्षा के लिए मुर से हज़ारों वर्षों तक युद्ध किया किन्तु वह परास्त नहीं हुआ। तब भगवान विष्णु अधिक शक्ति प्राप्त करने हेतु योगनिद्रा के लिए बद्रिकासुर चले जाते हैं।

मुर भी उन्हें ढूंढता हुआ वहां आ जाता है। विष्णु जी को सोता देख वह उनपर प्रहार करने के लिए आगे बढ़ता है। किन्तु तभी भगवान विष्णु के शरीर से एक कन्या उत्पन्न होती है जो की मुर का संहार कर देती है। विष्णु जी उसका नाम एकादशी रख देते हैं क्योकि वह एकादशी के दिन उत्पन्न हुईं थीं। और उसे वरदान देते हैं इस तिथि को जो भी मनुष्य मेरा सुमिरन करेगा उसे बैकुंठ की प्राप्ति होगी।

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