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विवाह पंचमी: जानिए किसने उठाया था श्री राम से पहले शिव धनुष?

विवाह पंचमी के शुभ अवसर पर राम तथा सीता के विवाह की कथा को जानना शुभ तथा प्रेरणादायक है। यह विवाह पौराणिक काल का सबसे पवित्र विवाह माना जाता है, जहाँ श्री राम एक उत्तम पुत्र, पति तथा शासक थे और माता सीता एक सर्वश्रेष्ठ पुत्री, पत्नी तथा माता थीं।

हम सभी यह कथा जानते हैं की माता सीता के स्वयंवर में श्री राम ने धनुष तोड़कर देवी सीता को पत्नी रूप में प्राप्त किया था। तथा वह धनुष कोई साधारण धनुष नहीं था बल्कि वह भगवान शिव ने राजा जनक को उनसे प्रसन्न होकर दिया था।

कैसा था शिव धनुष? :-

शिव का धनुष पिनाक कहलाता है, यह संसार के सभी धनुषों में सर्वश्रेष्ठ है। इस धनुष की टंकार से ही शत्रुओं की मृत्यु हो जाती थी। यह धनुष अत्यंत भारी था, इसका वजन इतना अधिक था की इसे बड़े बड़े योद्धा तथा महाबली भी उठा नहीं पाते थे।  उठाना तो दूर इस धनुष को इसके स्थान से हिलाना भी असम्भव सा था।

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क्यों रखी राजा जनक ने शर्त? :-

देवी सीता भी अपने पिता की तरह भगवान शिव में गहरी आस्था रखती थीं। माता सीता को उनके पिता ने पुत्रों की भांति शस्त्र तथा शास्त्र सभी का ज्ञान दिया था। एक बार बालपन में माता सीता ने पूजन गृह की सफाई करते हुए वहां रखे शिव धनुष को उठा कर उसे दूसरे स्थान पर रख दिया। जब राजा जनक को पता चला तो उन्हें पहले तो विश्वास नहीं हुआ, किन्तु फिर उन्होंने देवी सीता से उस धनुष को उसी के स्थान पर रखने की प्रार्थना की। पिता की आज्ञा मान देवी सीता ने उस धनुष को बड़ी ही सरलता से उठाकर उसके स्थान पर रख दिया। जब राजा जनक ने यह स्वयं अपने नेत्रों से देखा तो उन्हें विश्वास हो गया की उनकी पुत्री कोई साधारण कन्या नहीं है, इसलिए उसका विवाह भी किसी असाधारण पुरुष से होना चाहिए। इसलिए राजा जनक ने माता सीता के स्वयंवर की शर्त रखी कि जो कोई भी पुरुष यह धनुष उठा कर इसकी प्रत्यंचा चढ़ायेगा उसी से उनकी पुत्री का विवाह होगा।

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श्री राम ने तोड़ा धनुष :-

सीता के स्वयंवर में कई बड़े बड़े राजा पहुंचे, उन महाबलियों में रावण भी एक था। राजा के निमंत्रण पर विश्वामित्र जी अपने शिष्यों राम और लक्षमण के साथ स्वम्वर में आशीर्वाद देने पहुंचे थे। जब प्रतियोगिता का आरम्भ हुआ तब एक एक कर कई राजा वहां आये और अपने बल का प्रदर्शन किया। किन्तु धनुष को उठाना तो दूर वे उसे हिला भी न पाए। महाबली रावण भी अपने बल के अहंकार में आया और उस धनुष को उठाने की भरपूर चेष्टा की किन्तु वह भी धनुष को हिला न पाया और अपमानित होकर वहां से चला गया।

जब राजा जनक ने देखा की सभी महारथी हार कर बैठ गए हैं तो उनका ह्रदय  भी बैठ गया, उन्होंने दुःख भरे स्वर में कहा की, क्या इस पृथ्वी में कोई वीर पुरुष शेष ही नहीं है जो इस धनुष को उठा सके? क्या सम्पूर्ण आर्यवर्त पुरुषविहीन हो गया है? उनके इस प्रकार के शब्दों को सुनकर लक्ष्मण जी को क्रोध आ गया, वे खड़े हुए और बोले मई इस धनुष को उठाकर इसके टुकड़े टुकड़े कर दूंगा। किन्तु उन्हें गुरु विश्वामित्र ने शांत किया और कहा यदि तुमने धनुष उठाया तो तुम्हारा विवाह तुम्हारे बड़े भाई से पहले हो जायगा। इसलिए धनुष पर प्रत्यंचा चढाने का पहला अधिकार राम का है। यह सुनकर लक्ष्मण जी बैठ गए और श्री राम अपने गुरु की आज्ञा से धनुष उठाने के लिए खड़े हुए। उन्हें देख उपस्थित सभी लोग हंसने लगे की कैसे इतना कोमल बालक इस धनुष को उठेगा जिसे कोई हिला भी न पाया।

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किन्तु सेवी सीता उन्हें देख प्रसन्न हो गयीं और मन ही मन माता गौरी से उन्हें पति रूप में प्राप्त करने की प्रार्थना करने लगी। श्री राम ने धनुष को प्रणाम किया और फिर एक ही हाथ से बड़ी सहजता से उस धनुष को उठा लिया। यह देख सभी चकित रह गए। श्री राम ने जैसे ही उस धनुष पर प्रत्यंचा चढाने के लिए  झुकाया वह टूट गया।

परशुराम हुए क्रोधित :-

जैसे ही शिव का धनुष टूटा, वैसे ही पृथ्वी हिलने लगी। तब शेषनाग रुपी लक्ष्मण जी ने पृथ्वी को अपने पैर के अंगूठे से दबाया और पृथ्वी शांत हो गयी। स्वयंवर में राजा जनक तथा देवी सीता अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने वरमाला श्री राम के कंठ पर डाल दी। 

धनुष टूटने की ध्वनि से परशुराम जी वहां पहुंच गए और क्रोधित होकर बोले किसने मेरे आराध्य शिव के धनुष को तोड़ने का दुस्साहस किया? उन्हें क्रोधित देख सभा में उपस्थित सभी राजा भयभीत हो गए। किन्तु राजा जनक ने विनम्रता पूर्वक उन्हें समझाया की प्रत्यंचा चढ़ाते हुए भूलवश वह धनुष टूट गया। तब श्री राम खड़े हुए और प्रेम से बोले, मुनिवर आपका अपराधी आपके सम्मुख खड़ा है। उन्हें देख कर परशुराम समझ गए की वे विष्णु जी के अवतार हैं, और अब इस पृथ्वी पर वे धर्म से शासन करेंगे। इसलिए वे श्री राम और माता सीता को आशीर्वाद देकर वहां से चले गए। इस प्रकार माता सीता और श्री राम का विवाह संपन्न हुआ।

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