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अन्नपूर्णा जयंती: जानिए क्यों लेना पड़ा माता पार्वती को अन्नपूर्णा का अवतार!

अन्नपूर्णा जयंती:-

22 दिसंबर 2018 (शनिवार)

पूर्णिमा तिथि आरम्भ = 02:09 (22 दिसंबर 2018)

पूर्णिमा तिथि समाप्त = 23:18 (22 दिसंबर 2018)

तिथि : 30, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा, विक्रम सम्वत

अन्नपूर्णा जयंती माता अन्नपूर्णा की उत्त्पत्ति के रूप में मनाई जाती है। माता अन्नपूर्णा माता पार्वती का ही एक रूप हैं जो उन्होंने संसार के कल्याण के लिए धारण किया था। देवी अन्नपूर्णा भोजन एवं रसोई की उत्पन्नकर्ता मानी जातीं हैं। सनातन धर्म में भोजन के अपमान को देवी अन्नपूर्णा के अपमान के रूप में देखा जाता है। चूँकि पृथ्वी पर अन्न ही मनुष्य के जीवन जीने का मुख्य साधन है, अतः मनुष्य को कभी भी अन्न का अपमान नहीं करना चाहिए।

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अन्नपूर्णा जयंती का महत्व:-

अन्नपूर्णा जयंती माता अन्नपूर्णा की उत्त्पत्ति की आवश्यकता के विषय में मनुष्य को याद कराती रहती है, की किस प्रकार भोजन को बर्बाद करने से पृथ्वी पर अकाल पड़ा था। इस जयंती के कारण मनुष्य माता अन्नपूर्णा को उनके कार्य और उनकी कृपा के लिए धन्यवाद करता है। मान्यता है की जिस घर में अन्नपूर्णा देवी का आशीर्वाद होता है उस घर में कभी भी अन्न का अकाल नहीं पड़ता। और अन्नपूर्णा देवी का आशीर्वाद केवल उस घर में होता है जिस घर में रसोई को साफ और शुद्ध रखा जाता है तथा अन्न का सम्मान किया जाता है। ऐसे घर में धन धन्य की भी कमी नहीं रहती और विपत्ति में परिवार भूखा नहीं सोता।

कब मनाई जाती है अन्नपूर्णा जयंती? :-

माता अन्नपूर्णा की उत्पत्ति अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस वर्ष 2018 में यह दिसंबर 22 को दिन शनिवार के दिन मनाई जायगी। इस दिन निर्धनों को अन्न दान करना भी अत्यंत शुभ माना गया है।

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माँ अन्नपूर्णा की पौराणिक कथा:-

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय पृथ्वी पर अन्न एवं पानी समाप्त होने लगा और लोगों में हाहाकार मच गया। देवताओं ने जब इस समस्या को देखा तो वे ब्रह्मा जी की शरण में गए और इस समस्या का समाधान पुछा। तब ब्रह्मा जी देवताओं सहित श्री हरी विष्णु की शरण में चले गए। विष्णु जी ने सभी देवताओं को बताया की इस समस्या का निदान अब केवल शंकर जी कर सकते हैं। और सभी देवों सहित ब्रह्मा और विष्णु जी भी शंकर जी की शरण में चले गए। वहां उन्होंने भोलेनाथ को इस विषय में सब कुछ बताया, जब माता पार्वती ने यह सुना तो उनका ममतामयि मन अपने बच्चों को पृथ्वी पर भूखा तड़पता हुआ नहीं देख सका। उनकी करुणा से जन्म हुआ माँ अन्नपूर्णा का, जिनके एक हाथ में अन्न से भरा पात्र था और दूसरे हाथ में अन्न देने के लिए कलछी थी।

सर्वप्रथम शिव जी ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा ग्रहण की और उस अन्न को पृथ्वीवासियों को वितरित किया। और धीरे धीरे पृथ्वी से अकाल का संकट हट गया, सभी देवता माता अन्नपूर्णा की जय जयकार करने लगे। एक कथा में यह भी कहा जाता है  की जब श्री राम वानर सेना के साथ लंका में युद्ध कर रहे थे तब उस समय माता अन्नपूर्णा ने ही उन्हें और उनकी पूरी सेना को भोजन उपलब्ध कराया था। माता अन्नपूर्णा ने अपनी नगरी शिवजी की प्रिय नगरी काशी को बनाया।

कैसे करें अन्नपूर्णा जयंती के दिन पूजन? :-

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन माँ गौरी के रूप अन्नपूर्णा माता की पूजा की जाती है। इस दिन प्रातःकाल उठकर सम्पूर्ण रसोई घर को धोकर स्वच्छ किया जाता है। यदि मिट्टी के चूल्हा है तो उस उसे मिट्टि अथवा गोबर से लीप कर उसका पूजन करें। यदि गैस वाला चूल्हा है तो उसकी सफाई कर के उसके निकट ध्यानपूर्वक दिया जलाएं (गैस से दूर ही रखें।)। इस दिन माता गौरी एवं शिवजी की पूजा का भी विधान है। इस दिन अन्न को व्यर्थ बर्बाद न करने का संकल्प भी लें, क्योकि माता अन्नपूर्णा का आदर करने वाले को अन्न का भी आदर करना चाहिए।

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