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कुम्भ(2019): क्या है 'कुम्भ स्नान' का पौराणिक महत्व?

आस्था, विश्वास, सौहार्द एवं संस्कृतियों के मिलन का पर्व है “कुम्भ”। ज्ञान, चेतना और उसका परस्पर मंथन कुम्भ मेले का वो आयाम है जो आदि काल से ही हिन्दू धर्मावलम्बियों की जागृत चेतना को बिना किसी आमन्त्रण के खींच कर ले आता है। दूसरे शब्दों में कहें तो कुम्भ जैसा विशालतम मेला संस्कृतियों को एक सूत्र में बांधे रखने के लिए ही आयोजित होता है।

कुम्भ का महत्व :-

'कुम्भ' एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'कलश', यह कुम्भ अमृत कुम्भ से संबधित है। यह बात उस समय की है जब देवता और असुरों ने अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया था। जब समुद्र से अमृत निकला तो उसे पाने के लिए असुरों और देवताओं में संग्राम हो गया, इसी संग्राम में अमृत की कुछ बुँदे पृथ्वी में चार स्थान पर गिर गयीं। ये चार स्थान थे- हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक। चूँकि विष्णु की आज्ञा से सूर्य, चन्द्र, शनि एवं बृहस्पति भी अमृत कलश की रक्षा कर रहे थे और विभिन्न राशियों (सिंह, कुम्भ एवं मेष) में विचरण के कारण ये सभी कुम्भ पर्व के द्योतक बन गये। कथा के अनुसार कलश को स्वर्ग तक ले जाने में बारह दिन का समय लगा और देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष की भांति होता है। इसी कारण से इस मेले का आयोजन बारह वर्षों में किया जाता है।

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वैसे हर तीन वर्ष बाद क्रमशः हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है, और छह वर्ष बाद आयोजित होने वाले मेले को अर्ध कुम्भ कहा जाता है। किन्तु किसी एक स्थान पर इसका आयोजन बारह वर्ष पश्चात् ही होता है। ​

कैसे किया जाता है कुम्भ का आयोजन? :-

कुम्भ का आयोजन एक विशेष ज्योतिष गणना के आधार पर किया जाता है-

1. जब बृहस्पति कुम्भ राशि में  तथा सूर्य मेष राशि में प्रविष्ट होता है तब हरिद्वार के गंगा तट पर कुम्भ होता है।

2. जब बृहस्पति मेष राशि में तथा सूर्य और चन्द्र मकर राशि में आते हैं, तब अमावस्या के दिन प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।

3. बृहस्पति एवं सूर्य के सिंह राशि में प्रविष्ट होने पर नासिक में गोदावरी तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।

4. जब बृहस्पति सिंह राशि में तथा सूर्य मेष राशि में प्रविष्ट होते हैं तब उज्जैन में शिप्रा तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।

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हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन तथा नासिक में प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल में कुम्भ का आयोजन किया जाता है, इस प्रकार किसी एक स्थान पर बारह वर्षों बाद ही कुम्भ का आयोजन होता है। कुम्भ का आरम्भ हरिद्वार से होता है, जिसके तीन वर्ष बाद यह प्रयाग  में आयोजित किया जाता है और उसके तीन वर्ष बाद यह उज्जैन तथा उसके बाद नासिक में होता है तथा फिर तीन वर्ष पश्चात् हरिद्वार में।​

इस वर्ष का कार्यकर्म :-

इस वर्ष (2019) यह प्रयागराज में आयोजित किया जा रहा है। 2019 कुम्भ मेले की शाही स्नान की तारीख-

14-15 जनवरी 2019: मकर संक्रांति (पहला शाही स्नान)

21 जनवरी 2019: पौष पूर्णिमा

31 जनवरी 2019: पौष एकादशी स्नान

04 फरवरी 2019: मौनी अमावस्या (मुख्य शाही स्नान, दूसरा शाही स्नान)

10 फरवरी 2019: बसंत पंचमी (तीसरा शाही स्नान)

16 फरवरी 2019: माघी एकादशी

19 फरवरी 2019: माघी पूर्णिमा

04 मार्च 2019: महा शिवरात्री

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