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कैसे तोड़ा श्री कृष्ण ने गरुड़, सुदर्शन एवं सत्यभामा का घमंड?

चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब पानी में बनते हुए सभी ने देखा है। पर इस प्रतिबिम्ब का अस्तित्व चंद्र से ही है, अगर चंद्र ही न हो तो प्रतिबिम्ब का कोई अस्तित्व नहीं। इसी तरह मनुष्य भी परमात्मा का ही प्रतिबिम्ब है, पर हम इस सत्य से अंजान अपने भौतिक अस्तित्व को ही सत्य मान लेते हैं। जो भी क्षमता, शक्ति या सामर्थ्य हमारे पास है ईश्वर का दिया हुआ है। पर हम इन सबको अपनी अर्जित की हुई सम्पदा समझते हैं, जिसके कारण हम में अहंकार का जन्म होता है।  'अहंकार' एक ऐसा रोग है जो मनुष्य से अनुचित व्यवहार अथवा दूसरों का अपमान करवाता है। ऐसा ही अहंकार एक बार श्री कृष्ण के प्रिय सुदर्शन(चक्र), गरुण तथा सत्यभामा को हो गया था  

हनुमान जी का वाटिका उजाड़ना :-

तीनों का घमंड तोड़ने के लिए कृष्ण जी ने हनुमान जी का स्मरण किया और तत्काल हनुमान जी द्वारिका आ गए। हनुमान जी जानते थे कि श्रीकृष्ण ने क्यों बुलाया है, इसलिए सीधे राजदरबार न जाकर कुछ कौतुक करने के लिए उद्यान में चले गए। वहां​ पर वृक्षों में चढ़कर उत्पात मचा दिया, फल तोड़े कुछ खाये कुछ फेंक दिए। वृक्षों को भी उखाड़ फेंका और पूरा बाग वीरान बना दिया। हनुमान जी किसी अनिष्ट की इच्छा से नहीं आये थे वो तो केवल कृष्ण जी की सहायता कर रहे थे। और उन्ही की इच्छा से वाटिका को उजाड़ रहे थे। बात श्रीकृष्ण तक पहुंची, किसी वानर ने राजोद्यान को उजाड़ दिया है। श्रीकृष्ण ने गरुड़ को बुलाया और कहा, “जाओ, सेना ले जाओ और उस वानर को पकड़कर लाओ।”

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गरुण का हनुमान जी को ललकारना :-

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गरुड़ ने कहा, “प्रभु, एक मामूली वानर को पकड़ने के लिए सेना की क्या जरूरत है? मैं अकेला ही उसे मजा चखा दूंगा।” कृष्ण मन ही मन मुस्कुरा दिए,“जैसा तुम चाहो, लेकिन उसे रोको” गरुण वाटिका गए और हनुमान जी को ललकारा, “बाग क्यों उजाड़ रहे हो? फल क्यों तोड़ रहे हो? चलो, तुम्हें श्रीकृष्ण बुला रहे हैं।” हनुमान जी ने कहा, “मैं किसी कृष्ण को नहीं जानता। मैं तो श्रीराम का सेवक हूं। मैं केवल उनकी आज्ञा का पालन करता हूँ अन्य किसी की नहीं। ”

गरुड़ क्रोधित होकर बोला, “तुम नहीं चलोगे तो मैं तुम्हें पकड़कर ले जाऊंगा।” हनुमान जी ने कोई उत्तर नहीं दिया, गरुड़ की अनदेखी कर वह फल तोड़ते रहे और कहा, “वानर का काम फल तोड़ना और फेंकना है, मैं अपने स्वभाव के अनुसार ही कर रहा हूं। मेरे काम में दखल न दो। क्यों झगड़ा मोल लेते हो, जाओ, मुझे आराम से फल खाने दो।”

हनुमान ने किया गरुण को परास्त :-

गरुड़ नहीं माना और हनुमान जी पर आक्रमण करने के लिए बढ़ा, तब हनुमान जी ने अपनी पूंछ बढ़ाई और गरुड़ को दबोच लिया।

वह कभी अपनी पूंछ को ढीला कर देते और कभी कस देते। गरुण उठने का प्रयास करता रहा किन्तु अंत में थक कर हार गया। भगवान का वाहन जान हनुमान जी ने उस पर प्रहार नहीं किया। लेकिन उसे सबक सीखने के लिए पूंछ को एक झटका दिया और गरुड़ को दूर समुद्र में फेंक दिया।

गरुड़ के वेग के घमंड को तोडना :-

बड़ी मुश्किल से गरुड़ दरबार में पहुंचा, भगवान को बताया, वह कोई साधारण वानर नहीं है, मैं उसे पकड़कर नहीं ला सकता। भगवान मुस्करा दिए – सोचा गरुड़ का शक्ति का घमंड तो दूर हो गया, लेकिन अभी इसके वेग के घमंड को चूर करना है। श्रीकृष्ण ने कहा, “गरुड़, हनुमान श्रीराम जी का भक्त है, इसीलिए नहीं आया। यदि तुम कहते कि श्रीराम ने बुलाया है, तो फौरन भागे चले आते। हनुमान अब मलय पर्वत पर चले गए हैं। तुम तेजी से जाओ और उससे कहना, श्रीराम ने उन्हें बुलाया है। तुम तेज उड़ सकते हो, तुम्हारी गति बहुत है, उसे साथ ही ले आना।”

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गरुड़ वेग से उड़े, मलय पर्वत पर पहुंचे। हनुमान जी से क्षमा मांगी। कहा, श्रीराम ने आपको याद किया है, अभी आओ मेरे साथ, मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बिठाकर कुछ ही क्षणों में द्वारिका ले जाऊंगा। तुम खुद चलोगे तो देर हो जाएगी। मेरी गति बहुत तीव्र है, तुम मुकाबला नहीं कर सकते। हनुमान जी मुस्कराए, भगवान की लीला समझ गए। कहा, “तुम जाओ, मैं तुम्हारे पीछे ही आ रहा हूं।”

सुदर्शन का हनुमान जी से सामना :-

द्वारिका में श्रीकृष्ण राम रूप धारण कर तथा सत्यभामा को सीता बना सिंहासन पर बैठ गए, सुदर्शन चक्र को आदेश दिया "द्वार पर रहना, कोई भी मेरी अनुमति के बिना प्रवेश न कर पाए। " श्रीकृष्ण समझते थे कि श्रीराम का संदेश सुनकर तो हनुमान जी एक पल भी रुक नहीं सकते। गरुड़ को तो हुनमान जी ने विदा कर दिया और स्वयं उससे भी तीव्र गति से उड़कर गरुड़ से पहले ही द्वारका पहुंच गए। दरबार के द्वार पर सुदर्शन ने उन्हें रोक कर कहा, “बिना आज्ञा अंदर जाने की मनाही है।” जब श्रीराम बुला रहे हों तो हनुमान जी विलंब सहन नहीं कर सकते, सुदर्शन को पकड़ा और मुंह में दबा लिया।

सत्यभामा को दासी कहना :-

अंदर गए, सिंहासन पर श्रीराम और सीता जी बैठे थे, हुनमान जी समझ गए, श्रीराम को प्रणाम किया और कहा, “प्रभु, आने में देर तो नहीं हुई?” साथ ही कहा, “प्रभु मां कहां है? आपके पास आज यह कौन दासी बैठी है? सत्यभामा ने ये सुना तो वे लज्जित हो गयी, क्योंकि वह समझती थी कि कृष्ण द्वारा पारिजात लाकर दिए जाने से वह सबसे सुंदर स्त्री बन गई है, सत्यभामा का घमंड चूर हो गया।

उसी समय गरुड़ तेज गति से उड़ने के कारण हांफते हुए दरबार में पहुंचा, सांस फूल रही थी, थके हुए से लग रहे थे, और हनुमान जी को दरबार में देखकर तो वह चकित हो गए। मेरी गति से भी तेज गति से हनुमान जी दरबार में पहुंच गए? और लज्जा से पानी-पानी हो गए। गरुड़ के बल का और तेज गति से उड़ने का घमंड चूर हो गया। अब बारी थी सुदर्शन की श्री कृष्ण ने पूछा, “हनुमान ! तुम अंदर कैसे आ गए? किसी ने रोका नहीं?”

“रोका था भगवन, सुदर्शन ने, मैंने सोचा आपके दर्शनों में विलंब होगा, इसलिए उनसे उलझा नहीं, उसे मैंने अपने मुंह में दबा लिया था।” और यह कहकर हनुमान जी ने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के चरणों में डाल दिया।

तीनों के घमंड चूर हो गए। श्रीकृष्ण यही चाहते थे। श्रीकृष्ण ने हनुमान जी को गले लगाया, हृदय से हृदय की बात हुई, और उन्हें विदा कर दिया।

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