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लोहड़ी: कैसे और क्यों मनाई जाती है लोहड़ी?

लोहड़ी :-

14 जनवरी 2020 (मंगलवार)

तिथि: 04, माघ, कृष्ण पक्ष, चतुर्थी, विक्रम सम्वत

उत्तर भारत में लोहड़ी एक प्रमुख त्योहार है, जिसे अलग अलग प्रांतों में मकर संक्रांति के आस पास मनाया जाता है। वैसे मकर संक्रांति के कई रूप हैं, जिसे अलग अलग राज्यों में अलग अलग रूपों में मनाया जाता है। लोहड़ी भी उन्ही त्योहारों में से एक है। यह पंजाब और हरियाणा में धूम धाम के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी को तिलोड़ी भी कहा जाता है, यह तिल और रोड़ी शब्दों से मिलकर बना है। समय के साथ साथ यह तिलोड़ी से लोहड़ी बन गया।

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लोहड़ी कब मनाई जाती है?:-

लोहड़ी बसंत के आगमन के रूप में मनाई जाती है। यह पौष माह के अंतिम दिन मनाई जाती है। इस वर्ष लोहड़ी 14 जनवरी को मनाई जायेगी। लोहड़ी को कई लोग जाड़े की ऋतु के आने के द्योतक के रूप में मनाते हैं, और इस दिन किसान अपनी फसल घर लाते हैं और उत्सव​ मनाते हैं। लोहड़ी को पंजाब के किसान नववर्ष के रूप में भी मनाते हैं।

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कैसे मनाई जाती है लोहड़ी?:-

लोहड़ी के कुछ दिन पूर्व से ही लड़के और लड़कियां आग जलाने के लिए लकड़ियां और उपले इकठ्ठा करना शुरू कर देते है। लोहड़ी की शाम को आस पड़ोस के लोग मिलकर एक खुली जगह पर लकड़ी जलाते हैं। आग जलाकर लोग उस अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील और मक्की के दानों की आहुति देते हैं। और यही सब प्रसाद के रूप में सबको बांटा भी जाता है। आजकल यह त्यौहार केवल पंजाब, हरियाणा में न रहकर कई जगहों जैसे दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, हिमांचल, बंगाल तथा उड़िया के लोगों द्वारा भी मनाया जाता है। 

यह उत्सव पंजाबियों में कुछ ख़ास महत्व रखता है। जिस घर में नयी शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो वहां यह त्यौहार विशेषतया मनाया जाता है। नए घर में नववधू के लिए तथा नवजात शिशु के लिए यह लोहड़ी विशेष होती है। इस दिन अपनी विवाहित पुत्रियों तथा बहिनों को घर बुलाने की भी परंपरा है।

पौराणिक मान्यता:-

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह त्यौहार माता सती के त्याग के रूप में मनाया जाता है। कथा के अनुसार जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के वहां यज्ञ में कूदकर आत्मदाह किया था उसी घटना को याद करने के लिए यह त्यौहार मनाया जाता है। कई लोगों का यह भी मानना है की यह त्यौहार संत कबीरदास की पत्नी लोई की याद में मनाया जाता है।

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एक प्रसिद्द ऐतिहासिक घटना भी इस त्यौहार को मनाने का मुख्य कारण है, यह घटना जुड़ी है पंजाबी सरदार दुल्ला भट्टी से। दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय पंजाब प्रान्त का सरदार था, उन्हें पंजाब का नायक भी कहा जाता है। उन दिनों सन्दलबार नामक एक जगह थी, जो की अब पाकिस्तान में है,  वहां लड़कियों को अगवा कर उनको बेचा जाता था। तब दुल्ला भट्टी ने इसका विरोध किया और लड़कियों को सम्मानपूर्वक वहां से बचाकर हिन्दू धर्म के लड़कों से शादी कराई और उन्हें नया जीवन दिया। इसलिए इस दिन दुल्ला भट्टी को गीतों द्वारा याद किया जाता है।

"सुंदर मुंदरिये हो, तेरा कौन बेचारा हो

दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले ती विआई हो,

शेर शकर पाई हो, कुड़ी दे जेबे पाई हो,

कुड़ी कौन समेटे हो, चाचा गाली देसे हो

चाचे चुरी कुटी हो, जिम्मीदारा लूटी हो,

जिम्मीदार सुधाये हो, कुड़ी डा लाल दुपटा हो"

ये कुछ प्रसिद्द पंक्तियाँ हैं उस लोकगीत की जो हर लोहड़ी में आग के चारों ओर घूम घूम कर गयी जाती हैं।

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