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जया एकादशी से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ! जानें कैसे ?

जया एकादशी मुहूर्त :-

05 फरवरी 2020 (बुधवार)

जया एकादशी पारण समय = 06:47 से 09:04 (06 फरवरी 2020)

एकादशी तिथि प्रारम्भ = 09:49 (04 फरवरी 2020)

एकादशी तिथि समाप्त = 09:30 (05 फरवरी 2020)

तिथि : 26, माघ, शुक्ल पक्ष, एकादशी, विक्रम सम्वत

सनातन धर्म में एकादशी का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, हर साल में चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। जया एकादशी माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ती है, इस व्रत का महत्म्य श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को समझाया था। उनके अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को नीच योनि से मुक्ति मिलती है, तथा उसे भूत, पिशाच, प्रेत आदि योनियों में जन्म नहीं लेना पड़ता।

कहते हैं यदि किसी जन्म में किसी मनुष्य को ब्रह्म हत्या का पाप लग जाए तो उसकी मुक्ति सम्भव नहीं होती, उसे पृथ्वी पर नीच योनियों में जन्म लेकर अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं। किन्तु यदि मनुष्य जया एकादशी का व्रत निष्ठापूर्वक करे तो उसे ब्रह्महत्या जैसे पाप से भी मुक्ति मिल जाती है और उसे स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है।

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कैसे करें जया एकादशी की पूजा? :-

सामान्यतया एकादशी के व्रत में श्री हरी विष्णु जी की पूजा की जाती है किन्तु जया एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु जी के अवतार श्री कृष्ण जी की पूजा करने का भी विधान है। जो मनुष्य इस व्रत को करना चाहता है उसे दशमी की तिथि को एक समय ही भोजन करना चाहिए। फिर एकादशी के दिन स्नान आदि कर के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इस तिथि को भगवान केशव को पुष्प, जल, अक्षत, रोली और सुगन्धित पदार्थों से पूजना चाहिए। इस दिन कृष्ण तथा विष्णु जी की आरती कर के उन्हें भोग लगाकर भक्तों को प्रसाद बांटना चाहिए। एकादशी की रात्रि जागरण करके भजन कीर्तन करने चाहिए तथा सहस्त्रनाम का पथ करना चाहिए। इसके बाद द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करा कर उन्हें दक्षिणा देनी चाहिए और फिर स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए।

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जया एकादशी व्रत कथा:-

एक बार देवराज इंद्र अप्सराओं और गंधर्वों के साथ विहार कर रहे थे, सब तरफ मनमोहक दृश्य था। गंधर्व गा रहे थे और अप्सराएं नृत्य कर रही थीं। तभी वहां पर उपस्थित पुष्पवती नामक गन्धर्व कन्या ने माल्यवान नामक गन्धर्व  को देखा और उस पर मोहित हो गयी। उसने उसे रिझाने के लिए अनेकों प्रयास किये और ऐसे हाव भाव दिखाए की वह गन्धर्व भी उस पर आसक्त हो गया। अब वे दोनों एक दूसरे के प्रेम में डूब कर गाने और नृत्य करने लगे, जिससे वे सुर और ताल से भटक गए। इंद्र उन्हें देखकर सब समझ गए और उनके इस कृत्य के लिए उन्हें श्राप दे दिया- कि तुमने ऐसा कार्य करके संगीत को अपवित्र किया है इसलिए तुम्हे स्वर्ग का आनंद छोड़ कर प्रेत योनि में जन्म लेना होगा और मृत्युलोक में जाना होगा।

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इंद्र का शाप पाकर वे अत्यंत दुखी हुए और हिमालय पर्वत पर पिशाच योनि में दुःखपूर्वक जीवनयापन करने लगे। उन्हें गंध, रस, स्पर्श तथा प्रेम आदि का सुख नहीं था। वहां उन्हें असहनीय दुःख सहने पड़ रहे थे। रात-दिन में उन्हें एक क्षण के लिए भी नींद नहीं आती थी। उस स्थान का वातावरण अत्यंत शीतल था, जिसकी वजह से वे दोनों सदैव ही ठिठुर कर रहते थे।

एक दिन उस पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा- ‘पता नहीं हमने पिछले जन्म में कौन-से पाप किए हैं, जिसकी वजह से हमें इतनी दुःखदायी यह पिशाच योनि प्राप्त हुई है? पिशाच योनि से नरक के दुःख सहना कहीं ज्यादा उत्तम है।’ इसी प्रकार के अनेक विचारों को कहते हुए अपने दिन व्यतीत करने लगे।

भगवान की कृपा से एक बार माघ के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन इन दोनों ने कुछ भी भोजन नहीं किया और न ही कोई पाप कर्म किया। उस दिन मात्र फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और महान दुःख के साथ पीपल के वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे। उस दिन बड़ी सर्दी थी और उन्हें ठंड के कारण नींद भी नहीं आई। वह रात इन दोनों ने एक-दूसरे से सटकर बड़ी कठिनता से काटी।

इस प्रकार अनजाने में उनका जया एकादशी का व्रत हो गया। दूसरे दिन दोनों की मृत्यु हो गयी और वे दोनों प्रभु कृपा से पिशाच योनि से मुक्त होकर अत्यंत सुंदर हो गए तथा सुंदर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलंकृत होकर दोनों स्वर्ग लोक को चले गए। वहां पहुंचकर उन्होंने इंद्र को प्रणाम किया, इंद्र इन्हे देखकर आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने उनसे पूछा कि उन्हें श्राप से मुक्ति किस प्रकार मिली? देवेंद्र की बात सुन माल्यवान ने कहा- ‘हे देवताओं के राजा इंद्र! श्रीहरि की कृपा तथा जया एकादशी के व्रत के पुण्य से हमें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है।’

इंद्र ने कहा- ‘हे माल्यवान! एकादशी व्रत करने से तथा भगवान श्रीहरि की कृपा से तुम लोग पिशाच योनि को छोड़कर पवित्र हो गए हो, इसलिए हम लोगों के लिए भी वंदनीय हो गए हो, क्योंकि शिव तथा विष्णु-भक्त हम देवताओं के वंदना करने योग्य हैं, अतः आप दोनों धन्य हैं। अब आप प्रसन्नतापूर्वक देवलोक में निवास कर सकते हैं।’

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