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जानिये किस दैत्य ने की थी वेदों की चोरी ?

भगवान विष्णु द्वारा लिये गये दस अवतारों में से पहला अवतार मत्स्य अवतार है एक समय की बात है ब्रह्मा जी अपने कार्यों में व्यस्त थे उसी समय का लाभ उठाकर एक बहुत ही विशाल दैत्य ‘हयग्रीव‘ ने वेदों की चोरी कर ली वेदों की चोरी हो जाने के कारण चारों तरफ अज्ञान फैल गया धर्म और ज्ञान की बहुत हानि होने लगी अधर्म विनाश तथा पाप ही पाप रह गया मनुष्य जीवन जीना बहुत कठिन हो गया भगवान विष्णु ने हयग्रीव राक्षस का सर्वनाश करने के लिये मत्स्य अवतार लिया था।

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राजा सत्यव्रत​:- एक महाज्ञानी राजा था जिसका नाम सत्यव्रत था वह एक पुण्य आत्मा तथा विशाल हृदय का प्राणी था एक प्रातः समय जब सूर्योदय हो चुका था उस समय राजा सत्यव्रत कृतमाला नामक नदी में स्नान कर रहे थे तथा उन्होंने अपनी अंजली में जल भरा और तर्पण करने लगे कि अचानक उन्हें एक ध्वनि सुनाई पड़ी हे राजन मुझे बचा लो मुझे बचा लो राजा ने चारों ओर मुख करके देखा कि ये कौन बोल रहा है फिर एक बार और ध्वनि सुनाई पड़ी तब राजा ने अपनी ही अंजली में भरे जल की ओर ध्यान पूर्वक देखा तो पाया कि उनकी अंजली के जल में एक बहुत छोटी सी मछली थी जो घबरा रही थी फिर राजा ने उससे पूछा कि तुम्हें क्या समस्या है तो उस मछली ने बताया कि वह इस नदी में नहीं रहना चाहती क्योंकि वह बहुत छोटी है और इस नदी के बड़े जीव व मछलियाँ उसे अपना शिकार बना लेंगे वह बोली कि कृपा मेरी रक्षा कीजिये सत्यव्रत के हृदय में दया आ गई तथा वह उस मछली को अपने साथ अपने महल में ले आया तथा उसे एक कमंडल में डाल दिया अचानक वह छोटी सी मछली बड़ी हो गई और वह कमंडल उसके लिये छोटा पड़ने लगा मछली बोली राजन मेरे रहने के लिये कोई और स्थान देखिये मुझे इसमें बड़ा कष्ट हो रहा है राजा ने कहा मैं तुम्हें एक मटके में स्थान देता हूँ परन्तु यहाँ भी वह समा नहीं पा रही थी क्योंकि एक बार फिर वह और बढ़ चुकी थी मछली ने कहा राजन यह स्थान भी मेरे लिये प्रर्याप्त नहीं है फिर राजा ने उसे एक नदी तथा उसके बाद एक बड़े समुद्र में डाल दिया उसने समुद्र में भी विशाल शरीर धारण कर लिया और उसे वह समुद्र भी छोटा लगने लगा तब राजा ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि जिस प्रकार से आपका शरीर बढ़ता जा रहा है आप कोई साधारण जीव नहीं हो सकते आप अवश्य ही परमात्मा हो कृप्या अपने रूप में आकर दर्शन दीजिये। 

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मत्स्य रूपी श्री हरि ने कहा हे राजन हयग्रीव नाम के राक्षस ने वेदों की चोरी कर ली है संसार में हर ओर अज्ञानता लोभ तथा पाप बढ़ गया है हयग्रीव का सर्वनाश करने के लिये ही मैंने मत्स्य रूप धारण किया है आज से 7वें दिन महाप्रलय का आगमन होगा पृथ्वी पर चारों ओर जल ही जल होगा तथा विनाश के इस चक्र में पूरा संसार जल मग्न हो जायेगा उस समय तुम्हारे पास एक नाव आयेगी तुम अन्न बीजों औधियों और सप्त ऋषियों को साथ लेकर उस नाव में बैठ जाना उसी समय मैं पुनः आपके सामने आऊँगा और आपको आत्मतत्व का ज्ञान दूँगा सत्यव्रत उसी दिन से श्री हरि के स्मरण में मग्न हो गये और 7वां दिन भी आ गया प्रलय का आगमन हो चुका था समुद्र महासागर अपनी सीमा से बाहर आने लगे पानी पूरे उफान पर था तथा पूरी पृथ्वी जल मग्न होने को थी थोड़ी ही देर में समस्त धरती जल में समा गई राजा सत्यव्रत के पास एक नाव आई सत्यव्रत सभी ऋषियों अनाज औषधियों के साथ उस नाव में बैठ गये।

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सत्यव्रत को दिया आत्मज्ञान​:- वह नाव प्रलय महासागर में तैरने लगी जहाँ तक दृष्टि जा रही थी वहाँ जल ही जल था उन्हीं लहरों के बीच मत्स्य अवतार लिये भगवान विष्णु दिखाई दिये सत्यव्रत तथा समस्त ऋषि गण भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे हे प्रभु आप ही इस सृष्टि के रचियता हैं आप ही पालनहार आप ही हमारे रक्षक हैं कृपा करके हमें इस प्रलय से बाहर निकालिये हम पर कृपा करिये सत्यव्रत तथा सप्त ऋषियों की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु प्रसन्न हो उठे उन्होंने सत्यव्रत को आत्मज्ञान प्रदान किया कहा हे राजन मैं तुम सभी मनुष्यों में समाया हुआ हूँ न ही यहाँ कोई छोटा है ना बड़ा न ही ऊँचा न ही नीचा सभी मनुष्य एक समान हैं यह नश्वर जगत है इस नश्वर जगत में केवल मैं ही हूँ जो व्यक्ति हर व्यक्ति में मुझे देखता है तथा मुझमें रहके मुझमें ही समा जाता है वह अपने अंत में मुझे ही पाता है अंत में मत्स्य रूपी भगवान ने उस नाव को हिमालय की चोटी से बांध दिया उसी में बैठे बैठे प्रलय का अंत हो गया। 

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हयग्रीव वध​:- भगवान विष्णु से आत्मज्ञान पाकर सत्यव्रत धन्य हो गये उन्हें जीवन का अर्थ समझ में आ चुका था वह जीवित ही जीवन से मुक्ति पा चुके थे प्रलय का प्रकोप समाप्त होते ही मत्स्य रूपी भगवान ने हयग्रीव का वध करके उससे वेद छीन लिये और ब्रह्मा जी को पुनः लौटा दिये इस प्रकार भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप लेकर वेदों का उद्वार किया तथा संसार जगत के प्राणियों का भी कल्याण किया ऐसे ही समय पड़ने पर भगवान भिन्न भिन्न रूपों में अवतरित होते हैं तथा सजन्न मनुष्यों का कल्याण करते हैं।

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