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जानिये क्या है महाशिवरात्रि और उसकी मान्यताएँ ?

शिवरात्रि - 4 मार्च 2019 सोमवार

तिथि: 13, फाल्गुन, कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, विरोधकृत विक्रम सम्वत

चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ - 16ः28 (4 मार्च सोमवार)
चतुर्दशी तिथि समाप्त - 19ः07 (5 मार्च मंगलवार)

महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्तः-

5 मार्च महाशिवरात्रि पारण समय: 06ः49 से 15ः33 तक
निशिता काल पूजा समय: 24ः14 से 25ः03 तक
समयकाल: 0 घण्टे 49 मिनट

कब मनाई जाती है महाशिवरात्रि :-

महाशिवरात्रि का पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है, फाल्गुन माह की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है, भारतवर्ष में महाशिवरात्रि का बहुत महत्व है, इस वर्ष महाशिवरात्रि 4 मार्च सोमवार के दिन मनाई जायेगी, सोमवार भगवान शिव का दिन माना जाता है, इसलिये यह शिवरात्रि बहुत शुभ व महत्वपूर्ण है। भगवान शिव को श्रावण का मास बहुत प्रिय होता है, महाशिवरात्रि का पर्व शिव और पार्वती के विवाह का दिन भी माना जाता है तथा उनकी वर्षगांठ के रूप में भी मनाया जाता है।

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समुद्र मंथन :-

आज ही के दिन भगवान शिव ने अपने कंठ में कालकूट नामक विष को रख लिया था। समुद्र मंथन के समय यह विष बाहर आया था।

कैसे करें शिव का ध्यान :-

ॐ नमःशिवाय के उच्चारण मात्र से ही भगवान शिव को प्रसन्न किया जा सकता है, ॐ भगवान शिव को अति प्रिय है, हिन्दू, जैन अथवा बौद्व धर्म में इसका बहुत महत्व है, इसका नियमित रूप से जाप करने से मन एकाग्र होता है। इस दिन पूजा स्थान में धूप जलाकर शिव की प्रतिमा के सामने बैठकर भगवान का ध्यान करना चाहिये। शिव चालीसा, शिव पुराण, शिव पंचाक्षर, शिव स्तुति, शिव अष्टक इन सभी का पाठ करना चाहिये।

कैसे करें व्रत :-

सबसे पहले प्रातः काल उठकर स्वच्छ जल के साथ स्नान आदि करें, इसके उपरांत व्रत का संकल्प करके अपना पूरा दिन केवल शिव के ध्यान में अर्पित कर दें, तिलक के रूप में भस्म को माथे पर लगायें तथा रूद्राक्ष की माला धारण करके शिव की पूजा, अर्चना अथवा ध्यान करें, ऐसा मानना है कि जो लोग यह व्रत करते हैं तथा रूद्राभिषेक करते हैं उनसे भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं। एक लोटे में दूध या पानी भरकर उसपर धतूरे के फूल, बेलपत्र, तिल और चावल इत्यादि डालकर शिवलिंग पर भावपूर्वक चढ़ायें, इस दिन रात्रि जागरण करके भी भगवान शिव को प्रसन्न कर सकते हैं, निशीथ काल में इस पूजा को करना सर्वश्रेष्ठ होता है, सभी शिवरात्रि व्रत का अपना ही महत्व है परन्तु महाशिवरात्रि का व्रत बहुत खास महत्व रखता है, अगर कोई भी व्यक्ति महाशिवरात्रि का व्रत सच्चे मन व पूर्ण निष्ठा के साथ करे तो भोलेनाथ उसकी सभी मनोकामनायें पूरी करते हैं, इस व्रत को करने से व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है तथा आत्मबल बढ़ता है जिससे उसे हर कार्य में सफलता मिलती है।

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महाशिवरात्रि व्रत कथा :-

एक समय चित्रभानु नाम का एक शिकारी था, शिकार करके वह अपने परिवार को पालता था, वह किसी साहुकार का ऋणी था, क्रोधित होकर साहुकार ने शिकारी को अपना बंदी बना लिया था, एक दिन साहुकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने की बात कही, शिकारी ने कहा मैं कल आपका सारा ऋण उतार दूँगा, भाग्य से उस दिन शिवरात्रि थी, अगले दिन वह बंधन से मुक्त हुआ तो नियमित रूप से शिकार करने के लिये निकल पड़ा, परन्तु बंदीगृह में रहने के कारण वह भूखा प्यासा था, जंगल में वह एक बेल वृक्ष पर जा बैठा, उसके ठीक नीचे एक विल्वपत्रों से ढ़का हुआ शिवलिंग था, जिसका पता उस शिकारी को न था, उस पेड़ की कुछ टहनियाँ शिकारी ने तोड़ी जो शिवलिंग पर जा गिरीं, इस प्रकार दिन भर भूखा प्यासा रहने के कारण उसका व्रत प्रारम्भ हो गया, इस प्रकार बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ गये, कुछ देर के बाद वहाँ एक गर्भिणी मृगी अपनी तृष्णा मिटाने के लिये पहुँची, शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर प्रत्यंचा खींची तो मृगी अश्रुओं के साथ बोली मैं एक गर्भवती हूँ, मुझे मत मारो, मैं बहुत जल्द अपने बच्चे को जन्म देकर तुम्हारे समक्ष आ जाऊँगी, शिकारी ने उसे जाने की अनुमति दे दी और वह झाड़ियों में कहीं लुप्त हो गई।

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कुछ समय पश्चात एक और मृगी आई, शिकारी ने फिर बाण में धनुष चढ़ाया, उसे देखकर मृगी ने विनम्रता पूर्वक कहा हे पारथी मैं एक विरहणी हूँ, अपने प्रियतम की खोज में हूँ, मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे समीप आ जाऊँगी, शिकारी को उसपर भी तरस आ गया और उसने उस मृगी को भी जाने दिया, वह परेशान हो गया, रात्रि के आखिरी पहर में वहाँ से एक और मृगी अपने बच्चों के साथ गुज़र रही थी, शिकारी ने उसे देखते ही अपने धनुुष पर तीर चढ़ा दिया वह मृगी बिलखते हुए बोली कि हे पारधी मैं इन बच्चों के पिता को ये बच्चे सौंप दूँ फिर मैं तुम्हारे पास आ जाऊँगी, अभी मुझे जाने दो मुझे मत मारो, शिकारी ने कहा तुमसे पहले भी मैं दो शिकार खो चुका हूँ, मेरे बच्चे भूख से तड़प रहे होंगे, मृगी ने इसपर कहा कि जैसे तुम्हें अपने बच्चों की चिंता सता रही है वैसे ही मुझे भी अपने बच्चों की चिंता है, बस मेरे बच्चों की खातिर कुछ समय के लिये हमें जाने दो, मुझपर थोड़ा सा विश्वास करो, इन बच्चों को उनके पिता के पास छोड़कर मैं पुनः ही लौट आऊँगी, उसकी व्यथा सुनकर शिकारी को उसपर भी दया आ गई और उसने उस मृगी को भी जाने दिया, खाली इंतज़ार में बैठे बैठे वह बेल पत्र तोड़ तोड़कर नीचे फेंक रहा था, कुछ देर बाद एक हृष्ठ पुष्ठ मृग उस रास्ते से गुज़रा, शिकारी ने सोचा कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा, जैसे ही उसने प्रत्यंचा चढ़ाई उसे देखकर वह मृग बोला हे पारधी अगर आपने मुझसे पहले आई उन तीन मृगियों और उन छोटे बच्चों को मार दिया है तो तुम बिना किसी विचार के मुझे भी मार दो क्योंकि मैं उनका पति हूँ वे सब मेरा ही परिवार हैं पर अगर आपने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण के लिये जीवनदान दे दो, मैं एक आखिरी बार अपने परिवार से मिलना चाहता हूँ, इसके पश्चात मैं तुम्हारे समक्ष आ जाऊँगा, तब शिकारी को पूरी रात बीती बातें ज़हन में आ गई और उसने उस मृग को सारी कथा विस्तार से सुना दी, उस मृग ने कहा वह सब प्रतिज्ञाबद्व होकर यहाँ से गई हैं अगर तुम मुझे मार दोगे तो उनका वचन पूरा नहीं हो पायेगा, अतः मुझे अभी जाने दो, मैं उन सब के साथ तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा। शिकारी ने उस दिन अनजाने में ही उपवास रखा, बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ाए और पूरी रात्रि जागरण से उसका हिंसक हृदय कोमल हो गया, धनुष तथा बाण उसके हाथों से छूट गये तथा भगवान शिव की कृपा से उसका मन करूणामयी हो गया, वह अपने पिछले कर्मों को याद करके पश्चाताप् की अग्नि में जलने लगा, कुछ देर के उपरांत वह मृग अपने संपूर्ण परिवार के साथ शिकारी के सामने उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, शिकारी उनकी सात्विकता, सत्यता तथा सामूहिकता देखकर अश्रु बहाने लगा, उसे अपने किये पर बहुत पछतावा था, उस मृग परिवार का शिकार न करके उसने अपने कठोर मन को हिंसा से हटा लिया तथा कोमल व करूणामयी बन गया। समस्त देवता गण ये सब देख रहे थे उन्होंने देवलोक से पुष्पों की वर्षा आरम्भ कर दी, इसके बाद उस शिकारी तथा मृग परिवार को मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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