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इसीलिये रोका था माता सती को भगवान शिव ने यज्ञ में जाने से !

माता सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थी, राजा दक्ष की और भी पुत्रियाँ थी परन्तु राजा को एक ऐसी पुत्री चाहिये थी जो सर्वशक्तिमान गुणवान सर्वविजयनी हो, राजा दक्ष ऐसी पुत्री के लिये तप करने लगे तप करते हुए कई दिन बीत गये तो भगवती आधा प्रकट होकर बोली- मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूँ बताओ तुम क्या चाहते हो राजा दक्ष ने कारण बताया तो माता भगवती बोली मैं स्वयं तुम्हारे घर में कन्या बनकर जन्म लूँगी मेरा नाम सती होगा, मैं सती रूप में जन्म लेकर अपनी लीलाओं का विस्तार आरम्भ करूँगी भगवती आधा ने राजा दक्ष के यहाँ पुत्री रूप में जन्म लिया उसका नाम रखा गया सती, माता सती राजा की सभी पुत्रियों में से सबसे अलौकिक थी उसने अपनी बाल्यावस्था में ही बहुत से आश्चर्यचकित कर देने वाले कार्य किये थे देखते ही देखते सती विवाह योग्य हो गई तो राजा को उसके विवाह की चिंता सताने लगी क्योंकि उन्हें वर सती के योग्य चाहिये था राजा दक्ष ने इस विषय में ब्रह्मा जी से बात की ब्रह्मा जी ने कहा कि भगवती आधा आदि शक्ति हैं तथा भगवान शिव आदि पुरूष हैं तो अगर सती के लिये कोई योग्य वर है तो वो केवल भगवान शिव है राजा दक्ष ब्रह्मा जी की बात मानकर उनके विवाह के लिये मान गये और दोनों का विवाह कर दिया, भगवान शिव राजा दक्ष के दामाद थे परन्तु किसी वजह से वह भगवान शिव को नापसंद करते थे तथा उनसे नफरत करते थे और उनके प्रति बैर तथा विरोध का भाव रखते थे।

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एक समय देवलोक में ब्रह्मा जी ने धर्म निरूपण एक सभा का आयोजन किया बहुत बड़े बड़े देवता इस सभा में उपस्थित हुए भगवान शिव भी इस सभा में आये हुए थे, सभा में राजा दक्ष का आगमन हुआ तो सभी देवता उठ खड़े हुए परन्तु भगवान शिव वहीं बैठे रहे तथा राजा को प्रणाम भी नहीं किया यह सब देखकर राजा दक्ष बहुत क्रोधित हुए और अपमानित महसूस करने लगे उनके मन में भगवान शिव के प्रति ईर्ष्या और बदले की भावना उत्पन्न हो गई उन्हें केवल उस अवसर की प्रतीक्षा थी जब वह भी भगवान शिव को अपमानित कर सके।

राजा दक्ष ने किया यज्ञ का आयोजनः-

सती और भगवान शिव एक बार कैलाश पर्वत पर बैठकर समय बिता रहे थे उसी समय कई विमान आकाश की ओर से कनखल की ओर जाते हुए दिखाई पड़े सती ने ये देखकर पूछा प्रभु ये किसके विमान हैं और ये सब किस ओर जा रहे हैं भगवान शंकर ने कहा तुम्हारे पिताजी ने एक यज्ञ का आयोजन किया है ये सभी देवता और देवांगनाएं उसी यज्ञ में सम्मिलित होने जा रही हैं इसपर सीता ने प्रश्न किया कि मेरे पिताजी ने क्या आपको इस यज्ञ का निमंत्रण नहीं भेजा भगवान बोले तुम्हारे पिता मुझसे बैर रखते हैं इसलिये उन्होंने मुझे नहीं बुलाया, सती कहने लगी कि इस यज्ञ में मेरी सारी बहनें भी आयेगी क्या मैं भी इस यज्ञ में जा सकती हूँ सभी बहनों से मिल लूँगी भगवान शिव ने कहा कि विवाहित स्त्री को किसी के भी घर बिना बुलाये नहीं जाना चाहिये चाहे वह उसके पिता का ही घर क्यूं न हो परन्तु सती जाने का हठ करने लगी तो भगवान ने यज्ञ में जाने की आज्ञा दे दी और उनके साथ अपना एक गण भेजा उस गण का नाम वीरभद्र था।

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महादेव का किया अपमानः-

वहाँ जाकर सती से किसी ने भी ठीक से बात नहीं की न ही उनका स्वागत सतकार किया उनके पिता दक्ष ने कहा तुम यहाँ क्यों आई हो क्या मेरा अपमान कराने, अपनी बहनों को देखो सुंदर वस्त्र सुंदर गहनों से सज संवर कर आई हैं और तुम केवल बाघांबर में आई हो तुम्हारा पति शमशानवासी है भूतों का राजा है मैं तो उसे देवता मानता ही नहीं हूँ, दक्ष के ये कहने से सती को पश्चाताप होने लगा भगवान सही कह रहे थे विवाहिता को बिना बुलाये पिता के घर भी नहीं जाना चाहिये, सती पिता के यज्ञमंडल में गई जहाँ सभी देवता गण विराजमान थे वहाँ सभी का स्थान था परन्तु अपने पति परमेश्वर का स्थान न पाकर सती ने पिता से प्रश्न किया पिता श्री यहाँ मेरे प्रभु का स्थान क्यों नहीं है राजा दक्ष बोले मैं तुम्हारे पति को इस योग्य नहीं समझता कि यहाँ बुलाऊँ वह देवता नहीं है वह तो भूतों का देवता है नग्न रहता है हड्डियों की माला पहनता है उसे कौन स्थान देगा यज्ञ में।

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यज्ञ में भस्म हुई सतीः-

सती अपने पिता के इन कटु वचनों से प्रलय के सूर्य की भांति क्रोधित हो गई उनका मुख क्रोध से लाल हो चुका था वह तिलमिलाते हुए बोली मैं ऐसे शब्द सुनकर भी जीवित कैसे हूँ धिक्कार है मुझपर और तुम सब देवता गण भी ये सब कैसे सुन सकते हो उस कैलाशपति के लिये जो अपने एक नेत्र से पूरी सृष्टि का सर्वनाश करने की क्षमता रखते हैं वह मेरे स्वामी हैं मैं उनका अपमान नहीं सह सकती जो पत्नी अपने पति का अपमान करती है वह नर्क में जाती है पृथ्वी आकाश देवताओं तुम सब सुनो मैं अब एक और क्षण भी जीवित नहीं रहना चाहती यह कहते हुए सती उसी यज्ञ की अग्नि में कूद गई और यज्ञ की आहुतियों के साथ साथ उनका शरीर भी जल रहा था।

कनखल में प्रलयकारी तांडवः-

चारों ओर खलबली मच गई सभी तरफ हाहाकार मच गया देवतागण घबराकर उठ खड़े हुए वीरभद्र क्रोधित हो उठे क्रोध से कहार उठे हर तरफ हड़कंप मच गया सभी ऋषि मुनि तथा देवता भाग गये, वीरभद्र ने उसी समय राजा दक्ष का मस्तिष्क काट दिया, यह सब भगवान शिव को पता चला तो वह भयंकर क्रोध में कनखल जा पहुँचे, सती के जले हुए शरीर को लेके वह अपना होश खो बैठे घबराकर चारों ओर घूमने लगे सती के प्रेम और सर्मपण ने उनकी सुदबुध को खो दिया जिन्होंने काम पर विजय प्राप्त की थी वह पूरी सृष्टि को भस्म करने की शक्ति रखते हैं वह सती के प्रेम में बैरागी हो चुके थे, सती और शिव के इस प्रेम से पूरी धरती रूक गई वायु रूक गई सभी देवता घबरा गये, सबको पता था अब संसार का सर्वनाश निश्चित है तभी भगवान विष्णु सामने आये और उन्होंने अपने चक्र से सती के शरीर के छोटे छोटे टुकड़े करने शुरू कर दिये, सती के इक्यावन टुकड़े होकर अलग अलग स्थानों में जाकर गिर गये सती के टुकड़े होने के बाद भगवान शिव अपने आप में वापिस आये तथा पुनः सृष्टि का संचालन आरम्भ हुआ, जहाँ भी सती के अंग कटकर गिरे थे वहाँ हर जगह पर शक्तिपीठ माने जाने लगे आज भी इन स्थानों में माता सती की पूजा होती है इस प्रकार से सती और शिव का प्रेम अमर और पूजनीय बन गया।

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