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कौन थीं श्री कृष्ण की रानियाँ क्या है इनका सत्य ?

श्री कृष्ण की 8 पत्नियाँ थींः- रूक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा तथा लक्ष्मणा।

माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने रूक्मणि का हरण करके उनसे विवाह किया था यह कथन महाभारत अनुसार है, रूक्मणि विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी, रूक्मणि भगवान कृष्ण से प्रेम करती थी तथा विवाह करना चाहती थी, रूक्मणि के 5 भाई भी थे जिनके नाम रूक्मबाहु, रूक्मसेन, रूक्ममाली, रूक्मरथ तथा रूक्म थे, रूक्मणि अति सुंदर व सर्वगुण सम्पन्न थी, रूक्मणि के माता पिता चाहते थे कि वह श्री कृष्ण से विवाह करे परन्तु रूक्मणि का भाई रूक्म चाहता था कि रूक्मणि का विवाह चेदिराज शिशुपाल से हो इसी कारण श्री कृष्ण को रूक्मणि का हरण करके उनसे विवाह करना पड़ा था, लाक्षागृह से कुशलता पूर्वक बच निकलने के बाद यदुवंशियों और सात्यिकी को साथ लेकर भगवान कृष्ण पांडवों से मिलने के लिये इन्द्रप्रस्थ गये, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव ने उनका पूजन सत्कार किया, एक दिन अर्जुन के साथ श्री कृष्ण वन विहार के लिये निकले जहाँ वह गये थे वहाँ पर सूर्यपुत्री कालिंदी श्री कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिये तपस्या कर रही थी कालिंदी की यह मनोकामना पूर्ण करने के लिये श्री कृष्ण ने कालिंदी के साथ विवाह किया था।

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इसके बाद उज्जयिनी की राजकुमारी मित्रबिंदा को स्वयंवर से विवाह करके लाये थे, फिर कौशल के राजा नग्नजित के सात बैलों को एक साथ नाथ कर उनकी कन्या सत्या से पाणिग्रहण किया था, इसके पश्चात उनका विवाह कैकय की राजकुमारी भद्रा से भी हुआ था, भद्रदेश की राजकुमारी लक्ष्मणा भी श्री कृष्ण से प्रेम करती थी परन्तु उसके परिवार जन इस विवाह के खिलाफ थे फिर श्री कृष्ण लक्ष्मणा को हरकर ले आये थे।

द्वारिका में रहती थीं सभी पत्नियाँः-

भगवान श्री कृष्ण द्वारिका नगरी में अपनी 8 पत्नियों के साथ सुखपूर्वक रह रहे थे कि एक रोज़ देवराज इन्द्र ने श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि हे प्रभु प्रागज्योतिषपुर के दैत्यराज भौमासुर के अत्याचार से सभी देवतागण भयभीत होकर त्राहिमाम कर रहे हैं, क्रूर भौमासुर ने अदिति के कुण्डल, वरूण का छत्र तथा सभी देवताओं की मणि छीन ली है और वह समस्त त्रिलोकी में विजयी हो गया है, भगवान इन्द्र ने कहा भौमासुर ने पृथ्वी पे भी कई राजाओं और आम मनुष्यों की अति सुंदरी कन्याओं का हरण करके उन्हें अपने पास बंदी बना लिया है प्रभु केवल आप ही हमें बचा सकते हैं देवराज इन्द्र की ये प्रार्थना सुनकर श्री कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गरूड़ पर सवार हो गये और प्रागज्योतिषपुर पहुँच गये वहाँ पहुँचकर श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर मुर दैत्य सहित मुर के 6 पुत्र- श्रवण, अंतरिक्ष, ताम्र, नभश्वान, विभावसु और अरूण का संहार कर दिया। 

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भौमासुर वधः-

भौमासुर को जैसे ही ये समाचार मिला कि कृष्ण ने मुर दैत्य का वध कर दिया है वह अपने अनगिनत सेनापतियों और दैत्यों की सेना के साथ युद्ध के लिये निकल पड़ा, भौमासुर को यह श्राप था कि उसकी मृत्यु किसी स्त्री के हाथों होगी इसीलिये श्री कृष्ण ने सत्यभामा को अपना सारथी बनाया, भयंकर युद्ध होने के बाद श्री कृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से मिलकर उसका वध कर दिया।

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16100 कन्याओं को आश्रयः-

भौमासुर को मारकर श्री कृष्ण भगवान ने उसके पुत्र भगदत्त को अभय दान दिया तथा उसे प्रागज्योतिष का राजा घोषित किया, भौमासुर ने 16100 कन्याओं का हरण किया था उन सभी को श्री कृष्ण ने मुक्त कर दिया वह सभी कन्याएं भय के कारण दान में दी गई थी या किसी और कारण से यहाँ लाई गई थी वह सभी अपमानित, लांछित, कलंकित थी, भौमासुर के द्वारा बंधक बनाकर रखी गई इन कन्याओं को कोई भी आश्रय नहीं दे रहा था न ही अपनाने को तैयार था ऐसे समय में कृष्ण ने उन्हें आश्रय दिया तो सभी कन्याओं ने श्री कृष्ण को ही अपना सबकुछ मान लिया तथा उन्हें ही पति रूप में स्वीकार कर लिया परन्तु श्री कृष्ण उन्हें इस दृष्टि से नहीं देखते थे कृष्ण उन सभी को द्वारकापुरी ले आये थे वहाँ वह सभी कन्याएं सम्मान से अपनी इच्छा से स्वतंत्रतापूर्वक रहती थीं द्वारका में हर समाज और वर्ग के प्राणी रहते थे वहीं पर वे भक्ति भजन कीर्तन सत्संग ईश्वर के प्रति भक्ति भाव से सुखपूर्वक रहती थीं।

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