Article

जानें कुरूवंश की शुरूआत कैसे और कब हुई ?

महाभारत के विषय में आप सभी ने पढ़ा होगा परन्तु इस कथा की शुरूआत कहाँ से हुई यह बहुत कम लोग ही जानते हैं:-

कुरूवंश के प्रथम पुरूष -

कुरूवंश के प्रथम पुरूष राजा कुरू थे तथा उन्हीं से कुरूवंश की शुरूआत हुई थी राजा कुरू अत्यधिक शूरवीर तेजस्वी प्रतापी थे तथा एक कुशल राजा थे उन्हीं के नाम पर कुरूवंश की जड़ें परिपक्व हुई महाभारत के प्रसिद्व शूरवीर कौरवों तथा पांडवों ने भी कुरूवंश में ही जन्म लिया था।

राजा संवरण -

प्राचीनकाल में हस्तिनापुर नामक स्थान में एक संवरण नाम के प्रसिद्ध राजा राज्य करते थे राजा संवरण एक तेजस्वी राजा थे तथा जिनका तेजस्व सूर्य के समान था वह अपनी प्रजा का बहुत ही ध्यान रखते थे राजा संवरण भगवान सूर्य की प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक भक्ति करते थे तथा उनमें ही लीन रहते थे।

यह भी पढ़ें:- इसीलिये रोका था माता सती को भगवान शिव ने यज्ञ में जाने से !

यह भी पढ़ें:-  कौन थीं श्री कृष्ण की रानियाँ क्या है इनका सत्य ?

राजा संवरण की तपती से भेंट -

एक दिन राजा संवरण शिकार करने के लिए एक पर्वत पर गये जहाँ वह आखेट के लिए भ्रमण कर रहे थे वहीं पर उन्होंने एक बहुत ही सुंदर युवती को देखा जिसे देखते ही राजा उस पर मोहित हो उठे राजा ने ऐसी मनमोहक युवती आज से पहले कभी नहीं देखी थी राजा संकुचित मन से उस युवती के पास जाकर पूछने लगे प्रिय कौन हो तुम ? तुम देवी हो गंधर्व हो या किन्नरी हो ? तुम्हे देखते ही मैं अपने आपको ही भूल गया हूँ मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूँ तुम मेरे साथ विवाह कर लो और हम सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करेंगे उस युवती ने संवरण की सारी बातें सुनीं परन्तु कुछ भी उत्तर नहीं दिया उसे निहारती रही और थोड़ी देर में ही कहीं लुप्त हो गई तपती जैसे ही कहीं अदृश्य हो गई तो राजा बहुत ही व्याकुल हो उठे तथा अपना धनुष बाण फेंक कर केवल यही पुकारते रहे कि हे सुंदरी तुम कहाँ चली गई हो हमारे समीप आओ हम तुमसे मिलना चाहते हैं यह कहकर राजा अत्यधिक व्याकुल हो उठे तथा मूर्छित हो गये संवरण की यह अवस्था तपती देख रही थी उससे राजा की ऐसी व्याकुलता देखी नहीं गई तथा वह युवती राजा के सामने पुनः प्रकट हो गई और राजा की ओर देखते हुए कहने लगी -

हे राजन मैं स्वयं भी आप से प्रभावित हूँ आप पर मोहित हो गई हूँ आपने मुझे मुग्ध कर दिया है परन्तु मैं आपको एक सत्य से परिचित कराना चाहती हूँ वह सत्य यह है कि मैं सूर्य देव की छोटी पुत्री हूँ मेरा नाम तपती है मैं अपने पिता की आज्ञा के बिना कोई भी निणर्य नहीं ले सकती मैं उनकी आज्ञा के अनुसार ही चलूँगी मैं उनकी इच्छा के विरूद्व जाकर कोई भी कार्य नहीं कर सकती मुझसे विवाह करने के लिए आपको पहले मेरे पिता से आज्ञा प्राप्त करनी होगी मेरे पिता की आज्ञा के बिना मैं आपसे विवाह नहीं कर सकती अगर आप मुझे पाना चाहते हैं तो मेरे पिता सूर्य को प्रसन्न कीजिए तपती अपने कथन को पूरा करते ही पुनः कहीं अदृश्य हो गई।

भक्ति दर्शन एंड्रॉयड मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें।

भक्ति दर्शन के नए अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर फॉलो करें

राजा संवरण की तपस्या -

राजा संवरण ने तभी मन ही मन सोचा कि वह सूर्य देव को प्रसन्न करके ही रहेंगे उनकी पूजा करेंगे तथा अपना सब कुछ भुलाकर उनकी ही आराधना में लीन हो जायेंगे और राजा सूर्यदेव की प्रार्थना में लीन हो गये देखते ही देखते वर्षों बीत गये संवरण सूर्यदेव की तपस्या में लीन रहे आखिरकार एक दिन ऐसा आया जब सूर्यदेव के मन में राजा की परीक्षा लेने का विचार उत्पन्न हुआ रात्रि के समय में चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था संवरण नेत्र मूंद के सूर्य देव की आराधना में लीन थे तभी उनके कानों में एक आवाज़ आई संवरण तू यहाँ तप में मग्न है वहाँ तेरी राजधानी अग्नि में जल रही है यह शब्द सुनकर भी संवरण अपनी तपस्या में मग्न रहे राजा के कानों में पुनः एक आवाज़ आई कि राजा तेरे कुटुम्ब के सभी लोग अग्नि में जलकर भस्म हो गये उनके कानों में तीसरी बार उच्च स्वर में एक आवाज़ आई कि राजा तेरी प्रजा अकाल में जलकर भस्म हो रही है तेरे नाम से लोग तुझ पर थू-थू कर रहे हैं तब भी राजा ने अपना तप नहीं छोड़ा राजा की दृढ़ता देखकर सूर्यदेव प्रसन्न होकर कहने लगे कि हे राजन मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ बताओ तुम्हें क्या चाहिए ?

राजा संवरण सूर्यदेव को नमस्कार करते हुए बोले कि हे देव मुझे केवल आपकी पुत्री तपती चाहिए और उसे छोड़कर कुछ भी नहीं चाहिए सूर्यदेव बोले कि संवरण मैं इन सभी बातों से परिचित हूँ तथा मैं भी अपनी पुत्री का विवाह तुमसे करवाना चाहता हूँ तथा सूर्यदेव ने उन दोनों का विवाह विधिवत करवा दिया विवाह के पश्चात् संवरण विवाह के भोग विलास में डूबे रहे तथा दूसरी ओर उसकी प्रजा अपने राज्य में भीषण अकाल से मर रही थी सारे तालाब सूख गये पेड़ पत्ते सभी सूखे पड़ गये सारी प्रजा भूखी मरने लगी राजा संवरण का मंत्री उसका पता लगाने के लिए निकल पड़ा वह घूमता हुआ उसी पर्वत पर पहुँच गया जहाँ पर राजा और तपती निवास करते थे मंत्री संवरण को तपती के साथ देखकर सब कुछ समझ गये तथा उसने अपने राज्य की प्रजा के अग्नि में जलते हुए चित्र बनवाए तथा राजा को उन्हें भेंट करते हुए उन्हें देखने के लिए कहा राजा उस पुस्तक को उलट पलट कर देखने लगा किसी चित्र में माताएं अपने बच्चों को कुएं में फेंक रही हैं तो कहीं लोग भूख से बिलखते हुए अग्नि में कूद रहे थे तो एक अन्य दृश्य में मनुष्य जानवरों का कच्चा मांस खा रहे थे तो कहीं लोग हाथों से कीचड़ चाट रहे थे राजा ऐसे दृश्य देखकर विचलित हो उठा और कहने लगा कि ये किस राजा के राज्य का दृश्य है ?

मंत्री ने बहुत ही प्रभावशाली वाणी में कहा उस राजा का नाम राजा संवरण है मंत्री के मुख से अपने राज्य का ये हाल देखकर राजा का हृदय दर्द के कांप उठा वह क्रोध में बोला कि मेरी प्रजा का यह हाल हो रहा है और मैं यहाँ मग्न पड़ा हुआ हूँ ऐसे राजा पर धिक्कार है राजा संवरण अपनी रानी के साथ अपने राज्य पहुँचे और उनके पहुँचते ही वहाँ ज़ोरों की वर्षा प्रारम्भ हो गई वर्षा होते ही प्रजा की सभी समस्याएं दूर हो गई पृथ्वी पर हरियाली ही हरियाली छा गई तथा अकाल भी दूर हो गया सारी प्रजा सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगी प्रजा राजा को ईश्वर तथा रानी को देवी मानकर उनकी पूजा अर्चना करने लगे कुछ समय बाद उन्हें एक पुत्र हुआ जो उनकी ही तरह शक्तिशाली व प्रतापी था, उसका नाम कुरू रखा गया, उसके नाम से ही कुरूवंश का प्रारम्भ हुआ।

संबंधित लेख :​​​​