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जानिए छठ पूजा की विशेषताएं और पूजा विधि

छठ पूजा मुहूर्त :-

20 नवम्बर 2020 (शुक्रवार)

छठ पूजा के दिन सूर्योदय – सुबह 06:48 से

छठ पूजा के दिन सूर्यास्त – शाम 05:25 तक

षष्ठी तिथि आरंभ – 09:59 (19 नवम्बर 2020)

षष्ठी तिथि समाप्त – 09:29 (20 नवम्बर 2020)

तिथि: 21, कार्तिक, शुक्ल पक्ष, षष्ठी​, विक्रम सम्वत

छठ पूजा माता छठी की पूजा हेतु मनाई जाती है जो की वेदों के अनुसार भगवान सूर्यनारायण की पत्नी उषा हैं ! इसलिए छठ पूजा के दिन माँ छठी के साथ - साथ उनके पति सूर्य देव की भी पूजा का विशेष विधान होता है ! छठ पूजा वर्ष में दो बार मनाई जाती है, चैती छठ पूजा चैत्र मास में आती है और कार्तिक छठ पूजा जो कार्तिक मास में षष्ठी तिथि को मनाई जाती है ! यह व्रत अत्यंत कठिन है और इसमें पूर्ण तन और मन को साधना होता है इसलिए इसे हठयोग भी कहा जाता है !

छठ पूजा की विशेषता :-

छठ पूजा का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है ! यह त्यौहार मूल रूप से बिहार, झारखण्ड, नेपाल तथा उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है ! यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जो की दिवाली की अमावस्या के बाद मनाया जाता है ! मुख्यतः भैया दूज के तीसरे दिन से यह व्रत शुरू होता है, तथा शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन मनाये जाने के कारण इसका नाम छठ पूजा पड़ा ! इस दिन व्रत रखने वाले लोग 36 घंटों तक उपवास रखते हैं !

यह व्रत ज़्यादातर स्त्रियां ही रखतीं हैं किन्तु आजकल पुरुष भी इसे अत्यधिक श्रद्धा के साथ मनाते हैं तथा व्रत रखते हैं ! यह व्रत परिवार की सुरक्षा तथा खुशहाली के लिए रखा जाता है, मान्यता है की छठी माई संतानों की रक्षा करके उनको दीर्घायु प्रदान करती हैं !

छठ पूजा की व्रत विधि :-

यह महान पर्व चार दिवसीय होता है, मुख्यतः बिहार में इसका एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है ! इन चार दिनों में व्रत तथा पूजा की विधि इस प्रकार है :-

1. नहाय -  खाय - पहले दिन यह विधि की जाती है, इस दिन सूर्योदय से पूर्व पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है ! स्नान के बाद भोजन किया जाता है और भोजन में कद्दू की सब्जी तथा दाल चावल ही खाया जाता है !

2.  लोहंडा या खरना - कार्तिक शुक्ल की पंचमी के दिन यह रस्म होती है ! इस दिन दिनभर निराहार रहा जाता है, और रात्रि में खिरनी खाई जाती है ! खिरनी प्रसाद के रूप में आस पड़ोस वालों को बांटी जाती है, तथा उन्हें अपने घर आमंत्रित किया जाता है !

3. सायंकाल अर्घ्य - कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को संध्या अर्घ दिए जाने की परंपरा है ! यह इस व्रत पर्व का तीसरा दिन है, इस दिन संध्या में ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है! इस क्रिया के लिए किसी नदी अथवा तालाब के किनारे जाकर टोकरी अथवा सूपा में फल, सब्जी और अन्य पूजा का सामान रखा जाता है एवं एक समूह में एकत्रित होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है ! इस दिन दान का भी अत्यंत महत्व है, इस दिन घर में प्रसाद बनाया जाता है, जिसमे लड्डुओं का विशेष महत्व होता है !

4.  सूर्य को अर्घ्य - छठी पर्व के चौथे दिन अर्थात अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है ! यह सप्तमी का दिन होता है, इस दिन सफाई का बहुत ध्यान रखा जाता है ! पूरा प्रसाद स्वच्छता के साथ बनाया जाता है और फिर सबके बीच बांटा जाता है !

यह चार दिन का व्रत सबसे कठिन व्रत मन जाता है जो की दृढ निश्चय और गहरी आस्था से ही किया जा सकता है !