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द्रौपदी के इस राज़ ने चौका दिया था पांडवों को

द्रौपदी के राज़ : -

मित्रों हम बात कर रहे थे द्रौपदी के उस राज़ की जिससे पाँचों पांडव अनजान थे। निर्वासन काल में द्रौपदी जब वन में विचरण कर रही थी तभी उन्हें एक पेड़ पर लटकता जामुन का गुच्छा दिखाई पड़ा। द्रौपदी अपना लोभ संवरण न कर पाई और उसने हाथ बढ़ाकर जामुन का गुच्छा तोड़ लिया।  तभी अचानक वहाँ भगवान कृष्ण पहुँच गए। उन्होंने द्रौपदी के हाथ जामुन का गुच्छा देख कहा - ये क्या कर दिया तुमने ? एक मुनि अपने १२ वर्षों  का  उपवास इन फलों को  खाकर तोड़ने वाले थे ,अब तो तुम्हे उनका कोप भाजन होना पड़ेगा।  वो तुमलोगों को अवश्य श्राप देंगे। 
यह सुन द्रौपदी समेत पाँचों पांडव भयभीत हो गए। उन्होंने कृष्ण से प्राथना की -हे प्रभु आप कोई ऐसा रास्ता बताएं जिससे हम मुनि के क्रोध से बच जाएं। तब श्री कृष्ण जी ने कहा - मुनि के क्रोध से बचने के लिए सभी को एक काम करना होगा। युधिष्ठिर ने कहा - हम तैयार हैं आप कहिए क्या करना होगा?  श्री कृष्ण ने कहा -आप सभी को इस पेड़ के निकट आकर सत्य बोलना होगा। यदि सभी बिना कुछ छुपाए अपने जीवन से जीवन से जुड़े वो  सत्य कहेंगे जिसे आज तक आपलोगों ने एक दूसरे से छुपा रखा था।  यह सत्य केवल आपका मन जानता है।  इस सत्य को जब आप पेड़ के निकट आकर कहेंगे तो ये जामुन फिर से वापस अपनी डाल में लटक जाएंगे । यह सुन सभी सत्य वचन हेतु तैयार हो गए।  सर्वप्रथम धर्मराज की बारी आई।  युधिष्ठिर आगे बढ़े और बोलने लगे - दुनिया में सत्य,ईमानदारी और सहिष्णुता का प्रचार और बेईमानी का सर्वनाश होना चाहिए। युधिष्ठिर ने महाभारत में घटी घटनाओं के लिए द्रौपदी को ज़िम्मेदार ठहराया। इस सत्य वचन के समाप्त होते फल ज़मीन से दो फ़ीट ऊपर उठ गया।  इसके बाद कृष्णजी ने भीम को आगे बुलाकर बोलने के लिए कहा। भीम ने सबके सामने स्वीकार किया कि खाना, लड़ाई,और नींद   के प्रति उसकी आसक्ति कभी कम नहीं होती है लोग जब  अत्यधिक भोजन के लिए उनका परिहास करते है तो उन्हें बुरा लगता है  । भीम ने कहा कि धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मारदेने की इच्छा हमेशा से उसके मन में समाये रहती है । उनके   मन में बड़े भाई युधिष्ठिर के प्रति बहुत श्रद्धा है। लेकिन कोई  उसके गदे का अपमान करे ये वो सहन नहीं करेगा और उसे , मृत्यु के घाट उतार देगा। इसके बाद फल दो फीट और ऊपर उठ गया।
इन दोनों के बाद  बाद अर्जुन की बारी थी। अर्जुन ने कहा कि मुझे अपनी प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि मेरी जिंदगी से भी अधिक  प्रिय हैं। कर्ण मेरी आँखों का काँटा है जब तक मैं युद्ध में कर्ण को मार न दूँ  तब तक मेरे जीवन का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। मैं उसकी मृत्यु के लिए  लिए कोई भी तरीका अपनाऊंगा। चाहे वह धर्मविरुद्ध ही क्यों ना हो। अर्जुन ने भी कुछ नहीं छिपाया। वह फल दो फिर और ऊपर उठ गया। अर्जुन के बाद नकुल और सहदेव ने भी कोई रहस्य ना छिपाते हुए सब सच-सच कह दिया।अंत में केवल द्रौपदी बची थीं। कृष्णजी ने द्रौपदी को आगे बुलाया। द्रौपदी ने कहा कि मेरे पांच पति मेरी पांच ज्ञानेन्द्रियों (आंख, कान, नाक, मुंह और शरीर) की तरह हैं। मेरे पांच पति हैं लेकिन मैं जानती हूँ आज जो दुर्भाग्य इनके जीवन में है  उनका कारण  मैं ही हूं। मैं शिक्षित होने के बावजूद बिना सोच-विचारकर किए गए अपने कार्यों के लिए पछता रही हूं। लेकिन द्रौपदी के यह सब बोलने के बाद भी फल ऊपर नहीं गया। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि द्रौपदी कोई रहस्य छिपा रही हैं।यह सुनकर द्रौपदी पहले तो कुछ घबराई फिर कृष्णजी के कहने पर उस  ने अपने पतियों की तरफ देखते हुए कहा- मैं आप पांचों से प्रेम करती हूं ये सत्य है  लेकिन मेरे मन में किसी छठे पुरुष के लिए भी आसक्ति थी  ।
द्रौपदी के इतना कहते ही पाँचों पाण्डव चौंक गए। उन्हें कभी सपने में भी ऐसे इस कटु सत्य से सामना का अनुमान न था।  सभी की साँसे जहां की तहाँ रुक गयीं और सभी द्रौपदी के मुख से उस व्यक्ति  का नाम सुनने को आतुर हो उठे। तभी सर झुकाकर द्रौपदी ने कहा -मैं जानती हूँ मेरा ये सत्य आप सभी को विचलित करेगा परन्तु अब समय आ गया है जब मुझे इस रहस्य से पर्दा उठाना पड़ेगा। .वो सत्य ये है कि   मेरे मन में कर्ण के लिए भी स्थान था  । मैं कभी कभी ये भी सोचा करती थी अगर मैंने कर्ण से विवाह किया होता तो शायद मुझे इतने दुख नहीं झेलने पड़ते। तब शायद मुझे इस तरह के कड़वे अनुभवों से होकर नहीं गुजरना पड़ता।यह सुनकर पांचों पांडव हैरान रह गए लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं। द्रौपदी के सारे रहस्य खोलने के बाद श्रीकृष्ण के कहे अनुसार फल वापस पेड़ पर पहुंच गया।