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कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए

महाभारत का महाविनाशकारी युद्ध सदियों से ग्रंथों में दर्ज है, यह युद्ध लड़ा गया था कुरुक्षेत्र में। कुरुक्षेत्र की भूमि महाभारत के युद्ध के लिए ही प्रख्यात है, इस भूमि पर इतना रक्त बहा था कि यहां की मिट्टी का रंग भी सदियों के लिए लाल हो गया। क्या कुरुक्षेत्र की भूमि युद्ध के लिए चुनना एक संयोग था या इसे विशेषतया इस युद्ध के लिए चुना गया था? आइये जानते हैं इस लेख में-

आवश्यकता थी एक अधर्मी भूमि की:-

जब महाभारत का युद्ध अनिवार्य हो गया और दोनों ही पक्ष युद्ध के लिए निश्चित हो गए तब युद्ध के लिए भूमि की खोज प्रारम्भ हुई। जैसा की हम जानते हैं श्री कृष्ण का अवतार पृथ्वी से दुष्टों के संहार के लिए हुआ था, और महाभारत का युद्ध ही वह जरिया था जिससे एक साथ कई दुष्ट और पापी मारे जाते। इसलिए श्री कृष्ण नहीं चाहते थे की किसी भी प्रकार यह युद्ध रुके, उन्हें भय था की कहीं सभी अपने सगे-सम्बन्धियों को देखकर युद्ध से विरक्त हो कोई संधि न कर लें। इसलिए उन्होंने अपने विशेष दूतों को सन्देश दिया की उन्हें एक ऐसी भूमि के बारे में पता लगाना है जहाँ पर सम्बन्धियों में ही युद्ध हुआ हो। सन्देश पाकर सभी दूत ऐसी भूमि की तलाश पर निकले जहाँ अपनों के बीच ही अधर्म हुआ हो।

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भाई ने की भाई की हत्या:-

कई दिनों के बाद सभी दूत वापस आये और उन्होंने एक एक कर अनेक स्थानों में हुए अधर्मों के विषय में बताया। उन्हीं में से एक था कुरुक्षेत्र, जहाँ दो भाई मिलकर खेती किया करते थे। एक दिन छोटा भाई विश्राम कर रहा था तभी वर्षा आरम्भ हो गयी, वर्षा से खेत की मेंड़ टूट गयी और वहां से पानी बहने लगा। बड़ा भाई छोटे भाई के पास आकर बोला की उस मेंड़ को ठीक कर दो, किन्तु छोटा भाई विश्राम कर रहा था इसलिए उसने मना कर दिया और कहा की उसे आप ही ठीक करिये मैं थका हुआ हूँ। किन्तु बड़े भाई ने ज़ोर देकर कहा की मैं किसी दूसरे काम में व्यस्त हूँ और तुम छोटे हो, तुम्हे मेरी आज्ञा का पालन करना चाहिए। ऐसा सुनकर छोटा भाई क्रोधित हो गया और बोला मैं आपका सेवक नहीं जो हर बात मानूँ। यह सुनकर बड़ा भाई आग बबूला हो गया, उसने पास ही पड़ा एक बड़ा पत्थर उठाया और अपने भाई की पीट पीट कर हत्या कर दी। इतने से भी उसका मन नहीं भरा तो उसने उसे पैर से पकड़कर खेतों की तरफ घसीटा और उसके शव से मेंड़ को बंद कर दिया।

यह कथा सुनकर श्री कृष्ण जी समझ गए जहाँ ऐसा कृत्य हुआ हो वही जगह भाई-भाई के युद्ध के लिए उपयुक्त है। ऐसी जगह पर किसी को भी नकारात्मकता घेर लेती है, इसलिए उन्होंने कुरुक्षेत्र की भूमि को ही युद्ध के लिए चुना। 

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श्रवण कुमार का भी हुआ था ह्रदय परिवर्तन:-

इसी भूमि से जुड़ा एक और वृतांत है जो श्रवण कुमार से सम्बंधित है। जब श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को लेकर तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे तब बहुत दिनों का लम्बा सफर तय कर के वह थक गए। ऐसे में उनकी माता को प्यास लग गयी, उन्होंने अपने पुत्र को पानी पिलाने के लिए कहा तो श्रवण कुमार थोड़ा क्रोधित हो गए और बोले माँ मैं अकेले आप दोनों का बोझ उठाकर थक गया हूँ, क्या आप दोनों कुछ देर पैदल चल सकते हैं। वे दोनों ही पैदल चलने लगे, किन्तु उसकी माता ने साथ ही यह कहा इस भूमि को जितनी जल्दी हो सके पार कर लो। जैसे वह भूमि पार हुई श्रवण कुमार को एकदम ख्याल आया की वह अपने माता पिता को कष्ट पंहुचा रहे हैं। उन्होंने ग्लानि की अनुभूति की और अपने माता पिता से क्षमा मांगी। उनकी माता ने कहा पुत्र इसमें तुम्हारा दोष नहीं है, वह भूमि ही ऐसी थी।  वहां अवश्य ही किसी में अपने माता पिता का अपमान किया होगा इसीलिए वहां से गुज़रते हुए तुम्हे भी ऐसा भाव आ गया।

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इन कथाओं से यह सिद्ध होता है की हमारे द्वारा किये गए अच्छे और बुरे कर्मों का असर हमारे जाने के बाद भी रहता है। और इसी कारण से भूमि खरीदने से पहले उस भूमि का वास्तु और नकारात्मकता देखी जाती है। और घर बनाने से पहले उस भूमि का पूजन भी किया जाता है।

 

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