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व्यासपोथी: वह स्थान जहाँ लिखी गयी महाभारत की गाथा!

महाभारत के महान ग्रन्थ की रचना व्यास जी ने की थी ये हम सभी जानते हैं, किन्तु व्यास जी ने उसे मौखिक रूप से गणेश जी को वर्णित किया था जिसे गणेश जी ने कलम द्वारा पत्रों पर लिखा। यह ग्रन्थ अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम तट पर लिखा गया था। यह स्थान उत्तराखंड में स्थित है, जहाँ व्यास पोथी नामक स्थान, जो की बद्रीनाथ से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, पर व्यास जी की गुफा है। इस गाँव का नाम माणा गांव है, और व्यास जी की गुफा के समीप ही गणेश गुफा है, जहाँ बैठ कर यह ग्रन्थ लिखा गया था।

गजानन मंगलकर्ता, विघ्नहर्ता , ज्ञान एवं बुद्धि के सागर माने जाते हैं और यही कारण है की उन्हें किसी भी काज में सबसे पहले निमंत्रण दिया जाता है। और इसीलिए वेदव्यास जी ने जब महाभारत ग्रन्थ की रछ्ना करने की सोची तब सर्वप्रथम उन्होंने गणेश जी को ही आमंत्रित किया और उन्ही से महाभारत लिखने का अनुरोध किया।

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गणेश जी ने रखी एक शर्त :-

गणेश जी ने महाभारत का लेखन करने के लिए हामी भर दी किन्तु साथ ही एक शर्त रखी कि आपकी कथा मेरी लेखनी के साथ साथ चलनी चाहिए, यदि मेरी लेखनी में बाधा आई तो मैं लेखनी छोड़ दूंगा। गणेश जी की यह शर्त वेदव्याद जी ने मान ली और कथा सुनानी प्रारम्भ की। कहा जाता है की गणेश जी का लेखन इतनी शीघ्रता से होता था की वेदव्यास जी को कुछ सोचने समझने का समय ही नहीं मिल पा रहा था। इसलिए वेद व्यास जी ने अपनी बुद्धि के प्रयोग से कथा में कुछ कुछ वाक्य ऐसे बोले की उन्हें समंझने में गणेश जी को भी थोड़ा सोचना पड़ता था और इस तरह व्यास जी को भी थोड़ा समय मिल जाता था। इसी प्रकार यह ग्रन्थ बिना किसी बाधा के तैयार हो गया।

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इतिहास के गुप्त पन्ने :-

कहते हैं व्यास पोथी में ही रहकर वेद व्यास जी ने कई ग्रंथों की रचना की। उनकी गुफा की बाह्य संरचना देखकर ऐसा लगता है जैसे बहुत सारे वेदों के पन्ने एक के ऊपर एक करके रखें हो। कहा तो यह भी जाता है की यह भी महाभारत ग्रन्थ का ही हिस्सा थे किन्तु किसी कारणवश इन्हे उसमे शामिल नहीं किया गया और इन्हे गुप्त रखने के लिए वेदव्यास जी ने अपने मन्त्र बल से इन पन्नों को पत्थर में बदल दिया।

 

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