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अक्षय नवमी: आंवला पूजन से कैसे होते हैं शिव और विष्णु जी प्रसन्न?

 अक्षय नवमी मुहूर्त :-

05 नवम्बर 2019 (मंगलवार)

अक्षय नवमी पूजा समय = 06:40 से 12:04 (5 घंटे 25 मिनट)

नवमी तिथि प्रारम्भ = 04:57 (05 नवम्बर 2019)

नवमी तिथि समाप्त = 07:21 (06 नवम्बर 2019)

तिथि : 24, कार्तिक शुक्ल पक्ष, नवमी, विक्रम सम्वत

कार्तिक का मास हिन्दुओं के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है, इस मास में कई व्रत तथा पर्व आते हैं जिन्हे सभी लोग बड़ी श्रद्धा से मनाते हैं। कार्तिक मास में ही शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी के नाम से जाना जाता है। अक्षय नवमी पर स्नान का अत्यंत महत्व है, मान्यता है की इस दिन स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। अक्षय नवमी पर द्वापर युग का प्रारम्भ माना जाता है, इसलिए इस दिन कई लोग व्रत रखते हैं और व्रत कथा सुनते हैं।

अक्षय नवमी को आंवला नवमी भी कहा जाता है, क्योकि इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में भगवान शिव और विष्णु जी का वास होता है। यह अक्षय नवमी उतनी ही फलदायी है जितनी की वैसाख मास की अक्षय तृतीया। इस दिन जो व्यक्ति व्रत रखकर आंवले के वृक्ष की पूजा करते हैं उन्हें अगले जन्म में इसका अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।

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आंवला नवमी की पूजन सामग्री :-

आंवले का वृक्ष, फल, तुलसी का पौधा और कुछ पत्तियां, जल से भरा कलश, कुमकुम, सिंदूर, हल्दी, अक्षत, नारियल, रक्षा धागा, धूप-दीप, श्रंगार का सामान, दान के लिए अनाज !

आंवला नवमी की पूजन विधि :-

आंवले की पूजा के लिए प्रातःकाल का समय सबसे उपयुक्त रहता है, इसलिए प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान आदि कर के वृक्ष की पूजा की तैयारी करनी चाहिए। सर्वप्रथम वृक्ष के पास पूर्व दिशा की ओर मुँह कर के बैठें तत्पश्चात उसकी षोडशोपचार से पूजा करें। दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें और ध्यान मन्त्र पढ़ें - " ऊँ धात्र्यै नम: "

इसके बाद वृक्ष की जड़ में दूध मिश्रित जल चढ़ाएं। फिर कुमकुम, अक्षत आदि चढ़ाते हुए धूप दीप से आरती करें।

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आंवला नवमी की पौराणिक कथा :-

यह पूजा समूह में की जानी चाहिए, सभी व्रती वृक्ष के नीचे एकत्रित होकर पूजन करें व व्रत कथा सुनें। पूजा के पश्चात् वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें और सूत (रक्षा धागा) भी लपेटें। कई लोग 108 परिक्रमा भी करते हैं जो की अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन व्रती को आंवले के वृक्ष के नीचे ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। पूजन के पश्चात् किसी ब्राह्मण महिला को अथवा निर्धन स्त्री को वस्त्र भेंट करें।

मान्यता है की इस व्रत की शुरुआत माता लक्ष्मी ने की थी, इस कथा के अनुसार एक दिन माता लक्ष्मी की इच्छा हुई की वे एक साथ भगवान् विष्णु एवं शिव की पूजा करें। तब उन्होंने आंवले के वृक्ष की पूजा की क्योकि इसमें तुलसी और बेल दोनों के ही गुण विद्यमान हैं। तुलसी विष्णु जी को प्रिय है और बेल शिव जी को, अतः उन्होंने आंवले के वृक्ष का पूजन किया जिससे दोनों देव प्रसन्न हुए और लक्ष्मी जी के समक्ष प्रकट हुए। लक्ष्मी जी ने दोनों को उसी वृक्ष के नीचे भोजन कराया और फिर स्वयं भोजन ग्रहण किया। यह तिथि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी की थी, इसीलिए इस दिन से आंवले की पूजा करने का विधान बन गया। 

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