आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसे 'रास पूर्णिमा' भी कहते हैं। इसके अन्य नाम 'कोजागर व्रत' व 'कौमुदी व्रत' भी हैं। इस पूर्णिमा पर चन्द्रमा के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी विशेष पूजा की जाती है।
शरद पूर्णिमा की विशेषता -
शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ़ रहता है, इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं और न ही धूल का गुबार। इस रात्रि में चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है और माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा से कुछ विशेष दिव्य गुण प्रवाहित होते हैं। इस रात चन्द्रमा अमृत वर्षा करता है, जिस कारण इस व्रत का महत्त्व और भी बढ़ जाता है।
रात्रि जागरण का महत्त्व -
मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को माता लक्ष्मी स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर आती हैं। इसलिए इस रात्रि जागरण करना भी शुभ माना जाता है, कहते हैं कि माता किसी को भी जागरण करते हुए देख ले तो उसकी तिजोरी धन सम्पदा से भर देती हैं। इसका एक वैज्ञानिक महत्त्व भी है, चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच चांदनी में कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।
पूजा की विधि-
इस पूजन को रात्रि के समय जब चन्द्रमा की चांदनी धरती पर बिखरी हो उस समय करना उपयुक्त माना गया है। सबसे पहले चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए। रात्रि के समय जब चाँद निकल आये, तो पानी का अर्घ्य देना चाहिए, उसके बाद धुप, दीप और फल आदि से उनका पूजन करें, तत्पश्चात आरती करें। इस रात को खीर बनाकर खुले आसमान के तले रखा जाता है, क्योकि इस दिन चंद्रमा से एक विशेष प्रकार का रस झरता है, जो अनेक रोगों में संजीवनी की तरह काम करता है।
उसके बाद विधिपूर्वक लक्ष्मी जी की पूजा करें। मां लक्ष्मी की पूजा में सुपारी का विशेष महत्व है। सुपारी को पूजा में रखें। पूजा के बाद सुपारी पर लाल धागा लपेट कर उसका अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि से पूजन करके उसे तिजोरी में रखें, धन से तिजोरी भरी रहेगी ।
क्या कहता है विज्ञान-
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा हमारी धरती के बहुत करीब होता है। इसलिए चंद्रमा के प्रकाश में मौजूद रासायनिक तत्व सीधे-सीधे धरती पर गिरते हैं। खाने-पीने की चीजें खुले आसमान के नीचे रखने से चंद्रमा की किरणे सीधे उन पर पड़ती है जिससे विशेष पोषक तत्व खाद्य पदार्थों में मिल जाते हैं जो हमारी सेहत के लिए अनुकूल होते हैं।
शरद पूर्णिमा की व्रत कथा
एक साहूकार की दो पुत्रियां थीं। वे दोनों पूर्णमासी का व्रत करती थीं। बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती थी पर छोटी बहन अधूरा। छोटी बहन की जो भी संतान होती, वह जन्म लेते ही मर जाती। परन्तु बड़ी बहन की सारी संतानें स्वस्थ थी। एक दिन छोटी बहन ने बड़े-बड़े पण्डितों को बुलाकर अपना दु:ख बताया तथा उनसे कारण पूछा। पण्डितों ने बताया- 'तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इसीलिए तुम्हारी संतानों की अकाल मृत्यु हो जाती है। पूर्णिमा का विधिपूर्वक पूर्ण व्रत करने से तुम्हारी संतानें जीवित रहेंगी।' तब उसने पण्डितों की आज्ञा मानकर विधि-विधान से पूर्णमासी का व्रत किया। कुछ समय बाद उसे एक लड़का हुआ, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गया। तब उसने लड़के को पीढ़े पर लेटाकर उसके ऊपर कपड़ा ढक दिया। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे वही पीढ़ा बैठने को दे दिया। जब बड़ी बहन बैठने लगी तो उसके वस्त्र बच्चे से छूते ही लड़का जीवित होकर रोने लगा। तब क्रोधित होकर बड़ी बहन बोली- 'तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी। यदि मैं बैठ जाती तो लड़का मर जाता।' तब छोटी बहन बोली- 'यह तो पहले से ही मरा हुआ था। तेरे भाग्य से तो ये जीवित हुआ है। हम दोनों बहनें पूर्णिमा का व्रत करती हैं, तू पूरा करती है और मैं अधूरा, जिसके दोष से मेरी संतानें मर जाती हैं। लेकिन तेरे पुण्य से यह बालक जीवित हुआ है।' इसके बाद उसने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि आज से सभी पूर्णिमा का पूरा व्रत करें, यह संतान सुख देने वाला है।