मन तड़पत हरि दरशन को आज
मन तड़पत हरि दरशन को आज रे तुम बिन बिगड़े सकल काज आ विनती करत हूँ रखियो लाज ॥
तुम्हरे द्वार का मैं हूँ जोगी मेरी ओर नजर कब होगी सुन मेरे व्याकुल मन की बात ॥
बिन गुरू ग्यान कहाँ सेे पाऊं दीजो दान हरि गुन गाऊं सब गुनी जन पे तुम्हारा राज ॥
मुरली मनोहर आस न तोड़ो दु:ख भंजन मेरा साथ न छोड़ो मोहे दरशन भिक्षा दे दो आज ॥