महाराज युधिष्ठिर के कहने पर श्री कृष्ण उन्हें श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी की व्रत कथा सुनते हुए कहते हैं-
“प्राचीन समय में एक राज्य था भद्रावती, जिसमे सुकेतुमान नाम का राजा राज्य करता था। उसकी प्रजा हर प्रकार से प्रसन्न थी, किन्तु राजा सहित प्रजा को एक ही दुःख था की उस राज्य का कोई वारिस नहीं था। जिस राज्य में कोई राजकुमार नहीं होता उसमे देवता अपनी कृपा नहीं करते, इसीलिए प्रजा चिंतित रहती थी यदि कोई वारिस न हुआ तो राज्य में वर्षा रुक जायगी, जिससे सभी को बहुत नुकसान होगा। राजा भी चिंतित रहता था की उसके मरने के बाद कौन उसे पिंड दान देगा।
राजा के पास हर प्रकार की संपत्ति थी किन्तु फिर भी वह सुखी न था। कभी कभी यह सोचकर की पुत्र न होने के कारण वह पितरों और देवताओं का ऋण नहीं उतार पाएगा, वह आत्महत्या पर विचार करने लगता। किन्तु यह एक घोर पाप था इसलिए फिर वह इस विचार को त्याग देता।
किन्तु एक दिन अत्यधिक व्यथित होने के कारण वह राज्य छोड़कर अकेला वन को निकल गया। वन में अनेकों पशुपक्षी विचर रहे थे, वह हाथी, घोड़े, मोर, मृग आदि को देखते हुए आगे बढ़ा जा रहा था। पशु पक्षी भी अपने अपने परिवारों के साथ आनंद पूर्वक वन में रह रहे थे, उन्हें देख वह और दुखी हो गया। उसे अपना राजसी वैभव उन पशु पक्षियों के सामने तुच्छ दिखाई दे रहा था।
इन्ही विचारों में वह आगे बढ़ रहा था की उसे एक सरोवर दिखाई दिया। यह सरोवर अत्यंत शांत एवं दिव्य दिखाई दे रहा था, वह उसके पास गया तो देखा उसके किनारे कई आश्रम बने हुए हैं जहाँ ऋषि मुनि ध्यान मग्न हैं।
उन्हें देखकर राजा अपने घोड़े से उतरा और उनके पास जाकर उन्हें प्रणाम किया। ऋषिवर आशीर्वाद देते हुए बोले, कहिये महाराज, आप इस घने वन में क्या कर रहे हैं और हम आपकी क्या सहायता कर सकते हैं?
राजा ने अपना परिचय दिया और कहा - हे ब्राह्मण देव, मेरी कोई संतान नहीं है। बिना संतान के राजा को अनेक दुःख होते हैं, कोई भी राज्य बिना राजकुमार के बलहीन और देवताओं की कृपा से वंचित हो जाता है। यदि आप मुझे पुत्र प्राप्ति का कोई उपाय बता दें तो बड़ी कृपा होगी।
राजा की बात सुनकर ऋषियों ने कहा, बहुत उचित समय पे पधारे हो। कल पुत्रदा एकादशी है, पुत्र की इच्छा रखने वाले को इस दिन व्रत रखना चाहिए और विधिपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन कर दूसरे दिन इस व्रत का पारण करना चाहिए। श्री हरी विष्णु की कृपा से यदि तुम इस व्रत को निष्ठापूर्वक करोगे तो अवश्य ही तुम्हे पुत्र की प्राप्ति होगी।
ऋषियों की बात सुनकर राजा प्रसन्नतापूर्वक अपने महल को लौट गया। वापस आकर उसने अपनी पत्नी को सारी बात बताई, और फिर दोनों ने बताई गयी विधि से व्रत का संकल्प लिया और पुत्रदा एकादशी का व्रत पूर्ण कर द्वादशी को पाराण किया। प्रभु कृपा से उसकी पत्नी कुछ दिनों बाद ही गर्भ धारण कर गयी और नौ माह पश्चात् एक ओजस्वी बालक राजा के घर पैदा हुआ। राजकुमार के आने की ख़ुशी से सारी प्रजा उत्सव मनाने लगी। भगवान विष्णु की कृपा से बालक युवा होकर बलवान, यशस्वी और प्रजापालक सिद्ध हुआ।“
अतः हे युधिष्ठिर! पुत्रदा एकादशी का व्रत पुत्र दायक व सम्मान- प्रतिष्ठा दिलाने वाला व्रत है, जिसे करने से वाजपेयी यज्ञ का फल मिलता है।