अर्जुन ने कहा- "हे जगदीश्वर! आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा इस व्रत के करने से कौन से फलों की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए।"
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- "हे कुंतीनंदन! आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा है। इसका व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा व्रत करने वाला अक्षय पुण्य का भागी होता है।
इस एकादशी के दिन इच्छित फल की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। इस पूजन के द्वारा मनुष्य को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। हे अर्जुन! जो मनुष्य कठिन तपस्याओं के द्वारा फल की प्राप्ति करते हैं, वह फल इस एकादशी के दिन क्षीर-सागर में शेषनाग पर शयन करने वाले भगवान विष्णु को नमस्कार कर देने से मिल जाता है और मनुष्य को यम के दुख नहीं भोगने पड़ते। हे पार्थ! जो विष्णुभक्त शिवजी की निंदा करते हैं अथवा जो शिवभक्त विष्णु भगवान की निंदा करते हैं, वे नरक को जाते हैं।
इस एकादशी के समान विश्व में पवित्र तिथि नहीं है। जो मनुष्य एकादशी व्रत नहीं करते हैं, वे सदा पापों से घिरे रहते हैं। जो मनुष्य किसी कारणवश केवल इस एकादशी का भी उपवास करता है तो उसे यम के दर्शन नहीं होते।
इस एकादशी के व्रत करने वाले मनुष्यों के मातृपक्ष के दस पुरुष, पितृपक्ष के दस पुरुष तथा स्त्री पक्ष के दस पुरुष, भगवान विष्णु का रूप धरकर व सुंदर आभूषणों से परिपूर्ण होकर विष्णु लोक को जाते हैं। जो मनुष्य आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पापांकुशा एकादशी का विधानपूर्वक उपवास करते हैं, उन्हें विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य एकादशी के दिन भूमि, गौ, अन्न, जल खड़ाऊं, वस्त्र, छत्र आदि का दान करते हैं, उन्हें यम के दर्शन नहीं होते।
जो मनुष्य तालाब, बगीचा, धर्मशाला, प्याऊ आदि बनवाते हैं, उन्हें नरक के कष्ट नहीं भोगने पड़ते। वह मनुष्य इस लोक में निरोगी, दीर्घायु वाले, पुत्र तथा धन-धान्य से परिपूर्ण होकर सुख भोगते हैं तथा अंत में स्वर्ग लोक को जाते हैं। भगवान श्रीहरि की कृपा से उनकी दुर्गति नहीं होती।" अब इस व्रत से जुडी एक कथा सुनो-
प्राचीन काल में एक बहेलिया था जिसका नाम था क्रोधन, वह विंध्य के पर्वत में रहा करता था। अपने नाम की ही भांति वह अत्यंत क्रूर था, उसने अपना सारा जीवन नितांत पापों में व्यतीत कर दिया। किन्तु जब उसका अंत समय आया तो उसके मन में मृत्यु का भय जाग उठा, उसे सोते जागते भयानक यमदूत दिखाई देने लगे। इस से घबराकर वह एक दिन ऋषि अंगिरा के आश्रम आ गया और उनसे हाथ जोड़कर कहने लगा- हे ऋषिवर! मैंने अपना पूर्ण जीवन केवल पाप कर्मों में ही व्यतीत कर दिया। मेरा उद्धार हो सके इसके लिए मेरे पास कोई संचित पुण्य नहीं हैं। क्या कोई उपाय है की अंत समय में भी मेरा उद्धार हो सके और मोक्ष की प्राप्ति हो सके। ऋषि अंगीरा ने सारी बात सुनकर कहा की केवल पापांकुश एकादशी का व्रत करने से ही तुम्हे तुम्हारे पापों से मुक्ति मिल सकती है।
यह सुनकर क्रोधन ने बड़ी तन्मयता और श्रद्धा से पापांकुश एकादशी का व्रत किया। महर्षि के कहे अनुसार ही उसे उसके किये पापों से मुक्ति मिल गयी, उसका मन निर्मल हो गया और उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई।